सत्ता के गलियारे में सुकून तलाश रहे बड़े-बड़े 'तीसमारखां'
शिक्षा माफिया से लेकर सरकारी विभागों में सिक्का चलाने वाले ठेकेदार तक आजमा रहे भाग्य
रायबरेली : शिक्षा क्षेत्र का माफिया है तो कोई सरकारी विभागों में राज करने वाला ठेकेदार। इसी तरह अलग-अलग क्षेत्रों के तमाम लोग सत्ता के गलियारे में सुकून तलाशते फिर रहे हैं। सबसे अधिक संख्या जिला पंचायत सदस्य पद से लड़ने वालों की हैं।
सरकारी शिकंजे और पंजे से बचने का सबसे आसान रास्ता राजनीति हैं। एक बार जो सत्ता में आ गया, फिर उसे किसी अन्य के संरक्षण की जरूरत नहीं पड़ती। यही कारण है कि नियम तोड़ने और उनसे खेलने वाले अक्सर सत्ताधारी दल के इर्द-गिर्द नजर आते हैं। ऐसे ही तमाम लोग पंचायत चुनाव के सहारे खुद सत्ता पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। एक पार्टी के समर्थन से चुनाव मैदान में उतरे एक स्कूल संचालक जनता के बीच जाकर सेवा की दुहाई दे रहे हैं। जबकि पूरे लॉकडाउन इनके स्कूल के कर्मचारी वेतन मांगते रह गए, फिर भी नए नवेले नेताजी का दिल न पसीजा। इसी पद पर दूसरी सीट से खड़े एक ठेकेदार ऐसे हैं, जिनकी सरकारी विभागों में तूती बोलती है। जो ठेका ये चाह लें, वह दूसरे को नहीं मिल सकता। रेलवे के एक ठेकेदार को भी इन दिनों राजनीति का चस्का लगा है। ब्लॉक प्रमुख बनने का सपना देख रहे यह ठेकेदार बीडीसी से मैदान में उतरे हैं। देखना यह है कि एक चुटकी में अफसरों का दिल जीतने वाले ये ठेकेदार जनता का मन मोह पाते हैं या नहीं।
इनसेट
पार्टी ने मायूस किया तो खुद ही खड़े हो गए
चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे ऐसे तमाम लोग किसी न किसी दल से समर्थन के पूरी कोशिश कर चुके हैं। जिन्हें सफलता मिल गई, उनके साथ दल के नेता प्रचार-प्रसार में हैं। वहीं जिनको समर्थन नहीं मिला, वे उसी दल के प्रत्याशी के खिलाफ खड़े हो गए, जिस संगठन का अब तक उन पर हाथ था। जिला पंचायत सदस्य और क्षेत्र पंचायत सदस्य में जिनकी दाल न गली, वे प्रधान की सीट से किस्मत आजमा रहे हैं।