तर्पण कर पितरों से आशीर्वाद मांग रहे स्वजन

प्रतापगढ़। पितृपक्ष में लोग पितरों के प्रति श्रद्धा के भाव व्यक्त कर रहे हैं। वह तर्पण कर रहे

By JagranEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:42 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:42 PM (IST)
तर्पण कर पितरों से आशीर्वाद मांग रहे स्वजन
तर्पण कर पितरों से आशीर्वाद मांग रहे स्वजन

प्रतापगढ़। पितृपक्ष में लोग पितरों के प्रति श्रद्धा के भाव व्यक्त कर रहे हैं। वह तर्पण कर रहे हैं। भोर में स्नान करके उनको जन अर्पित कर रहे हैं, ताकि परिवार को पुरखों का आशीर्वाद मिले। नगर के बेल्हा देवी सई घाट के साथ ही मानिकपुर नगर के शाहाबाद गंगा तट और राजघाट गंगा तट पर लोग अपने पूर्वजों को याद कर मां गंगा में स्नान कर रहे हैं। अपने पूर्वजों के निमित्त गंगा जल से तर्पण और पिडदान कर रहे हैं। भोर में यहां काफी संख्या में लोग आ जाते हैं।

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श्रद्धा का कार्य ही श्राद्ध : रामानुजदास

पितृपक्ष के महत्व के बारे में जनपद के धर्माचार्य ओम प्रकाश पांडेय अनिरुद्ध रामानुजदास बताते हैं कि पितरों के लिए श्रद्धा से किया गया कार्य श्राद्ध कहलाता है। शास्त्रों में ऐसी मान्यता है कि पृतिपक्ष में पितर गण 15 दिनों तक पृथ्वी पर आकर फिर अपने लोक को वापस लौट जाते हैं। इस दौरान पितृगण अपने स्वजनों के आसपास होते हैं, इसलिए ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिसके कारण वह नाराज हों। इस अवधि में दरवाजे पर आए हुए किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए। प्रत्येक दिन भोजन का एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ता, कौवा अथवा बिल्ली को देना चाहिए। ऐसा करने से वह सीधे पितरों को प्राप्त होता है। सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा के उर्धव कक्षा में पितरलोक है। इस लोक को आंखों से नहीं देखा जा सकता। जीवात्मा जब से स्थूल देह से अलग होती है उस स्थिति को मृत्यु कहते हैं। मृत्यु को प्राप्त हो जाने पर भी सूक्ष्म शरीर विद्यमान रहता है। इसलिए हमें श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में दान इत्यादि करना चाहिए। ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों के उद्देश्य जो ब्राह्मणों को दान दिया जाता है, यानि द्रव्य, भोजन, वस्त्र, शैय्या वही श्राद्ध है। भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जो जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरा है उसका जन्म भी निश्चित है। पद्मपुराण में आया है कि जैसे भूला हुआ बछड़ा अपनी मां को हजारों गायों के बीच में पहचान लेता है। उसी प्रकार मंत्रों एवं क्रिया द्वारा शोधित वस्तु समुचित प्राणी के पास तक पहुंच जाती है, वह चाहे जहां पर हो। ब्राह्मणों को दिया गया दान उस जीव को किसी न किसी रूप में मिल जाता है, चाहे वह कितनी भी योनियां बदल चुका है। पिता की मृत्यु की तिथि पर पितृपक्ष में ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए। यदि तिथि ना मालूम हो तो अंतिम दिवस अमावस्या के दिन पिडदान और भोजन कराएं।

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