गरीबों के शव की अंतेष्टि के खेवनहार बने हरिमंगल

ब्रह्मदीपक मिश्र पीड़ितों को कानूनी मदद देने के साथ गरीबों के शव की अंतेष्टि का हरिमंगल ि

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Nov 2021 10:34 PM (IST) Updated:Wed, 24 Nov 2021 10:34 PM (IST)
गरीबों के शव की अंतेष्टि के खेवनहार बने हरिमंगल
गरीबों के शव की अंतेष्टि के खेवनहार बने हरिमंगल

ब्रह्मदीपक मिश्र : पीड़ितों को कानूनी मदद देने के साथ गरीबों के शव की अंतेष्टि का हरिमंगल सिंह खेवनहार बने हैं। उनके द्वारा चलाए गए शव वाहन से गरीबों के शव को निश्शुल्क गंगा तट पर भेजवाने का कार्य किया जाता है। संडवा चंद्रिका ब्लाक के अर्जुनपुर निवासी हरिमंगल सिंह पेशे से अधिवक्ता हैं। इनके द्वारा क्षेत्र के पीड़ित लोगों को निश्शुल्क कानूनी हलाह देने के साथ कोर्ट में मुकदमें की पैरवी भी की जाती है। इसके लिए वह महीने के दूसरे व चौथे रविवार को अर्जुनपुर पहुंच कर यहीं पर पीड़ित लोगों से मिल कर उनकी समस्या भी सुनते हैं। इसी के साथ वह समाज में गरीबी के चलते जो लोग अपने स्वजनों की मृत्यु हो जाने पर शव अंतेष्टि के लिए मोक्षदायिनी गंगा तट तक नहीं ले जा पाते थे। उनके द्वारा शव को गांव के आस-पास ही दफन किया जाता है। ऐसे परिवार को शव घाट तक ले जाने के लिए चंडिका मेला कमेटी के अध्यक्ष हरि मंगल सिंह ने शव वाहन की व्यवस्था की है। चार साल पहले शुरू की गई बस सेवा से अब तक सैकड़ों शव को गंगा घाट तक भेज चुके हैं। उनके इस कार्य से क्षेत्र के लोगों को सहूलियत मिली है। वहीं इस कार्य से उन्हें सूकून मिलता है। उन्होंने बताया है कि बस पर मोबाइल नंबर लिखा है। जरूरतमंद लोग मोबाइल पर फोन करके शव के लिए गाड़ी की बुंकिग करते हैं। तब उनके परिवार की दयनीय स्थित होने की जानकारी प्रधान व अन्य माध्यमों से की जाती है। इसके बाद शव वाहन से उनके शव को स्वजनों के बताए हुए स्थान गंगाघाट पर भेजा जाता है। कभी-कभी तो बस को घाट का दो- दो चक्कर लगाना पड़ता है। यह शव वाहन गरीब लोगों के स्वजनों के शव की मोक्ष के लिए खेवनहार बनी हुई है। उनके इस पुनीत कार्य की क्षेत्र में सराहना होती है। वह बताते हैं उन्होंने गरीबी बहुत नजदीक से देखा है। बचपन में गांव व आसपास के गांव में किसी की मौत हो जाने पर गरीब अपने स्वजनों के शव को गांव के किनारे दफन करने के साथ अंतेष्टि कर देते थे। धनाड्य परिवार के लोग स्वजनों के शव को वाराणसी, अयोध्या व प्रयागराज ले जाते थे। तब ही उनके मन में गरीब के शव को भी गंगा की रेती तक पहुंचाने का एक संकल्प लिया था। अब इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाने के बाद मन को सुकून मिल रहा है।

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