दहकती राह से गुजरी थी जिदगी, फिर से भर रही रफ्तार

कोरोना महामारी के दर्द से लाखों लोगों को दो-चार होना पड़ा। कइयों को कई-कई दिन दहकती राह से होकर गुजरना पड़ा था और जब किसी तरह गांव पहुंचे तो अपनों से लिपटकर बहुत रोए थे। कइयों की जिदगी की शाम बीच राह में ही हो गई। अपनो को खोने का गम आज भी उनके चेहरे पर छायी उदासी से महसूस किया जा सकता है। हालांकि एक बार फिर जिदगी रफ्तार भर रही है। उम्मीदों के दिए फिर से जल उठे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 24 Mar 2021 11:57 PM (IST) Updated:Wed, 24 Mar 2021 11:57 PM (IST)
दहकती राह से गुजरी थी जिदगी, फिर से भर रही रफ्तार
दहकती राह से गुजरी थी जिदगी, फिर से भर रही रफ्तार

जासं, प्रतापगढ़ : कोरोना महामारी के दर्द से लाखों लोगों को दो-चार होना पड़ा। कइयों को कई-कई दिन दहकती राह से होकर गुजरना पड़ा था और जब किसी तरह गांव पहुंचे तो अपनों से लिपटकर बहुत रोए थे। कइयों की जिदगी की शाम बीच राह में ही हो गई। अपनो को खोने का गम आज भी उनके चेहरे पर छायी उदासी से महसूस किया जा सकता है। हालांकि एक बार फिर जिदगी रफ्तार भर रही है। उम्मीदों के दिए फिर से जल उठे हैं।

पिछले साल मार्च माह में कोरोना ने देश-दुनिया में पैर पसारना शुरू किया तो यह जिला भी उससे अछूता ना रहा। अचानक लाक डाउन की घोषणा हुई तो महानगरों में यहां के बसे लोगों की रोजी-रोटी का जुगाड़ छिन गया। किसी की नौकरी गई तो बहुतों का व्यवसाय चौपट हो गया। पैंतीस लाख आबादी वाले इस जिले के बहुत से लोग रोजगार के सिलसिले में मुंबई, दिल्ली, सूरत, अहमदाबाद और बंगलौर जैसे महानगरों में बसे हैं। लाकडाउन में जब रेल, वायु और सड़क मार्ग पर आवागमन बंद हो गया था, लोग पैदल और निजी साधनों से घरों की तरफ निकल पड़े थे। कोरोना काल में जिदगी की जिद्दोजहद से गुजरे ऐसे ही लोगों में थे पट्टी तहसील क्षेत्र के दुखियापुर गांव के दिनेश पांडे, सुरेश पांडे, शारदा पांडे और रमेश पांडेय। यह लोग मुंबई में टैक्सी चलाकर परिवार का खर्च चला रहे थे। पिछले साल के मार्च माह में जब मुंबई में कोरोना के कारण लाक डाउन की घोषणा कर दी गई तो इन्हें भी अपने वतन वापस आना पड़ा। शारदा पांडेय और सुरेश पांडे बीते दिनों की याद ताजा कर सिहर उठते हैं। मुंबई से ही जागरण से बातचीत में वह कहते हैं कि मुंबई में पिछले वर्ष अप्रैल माह में कई दिनों तक कमरे में बंद रहे और जब लाक डाउन का समय बढ़ने लगा तो फिर अपनी टैक्सी से गृह जनपद प्रतापगढ़ की याद आई। एक रात निकल पड़े और पहाड़ों से होते हुए जब खतरनाक मोड़ पर कई बार मौत का सामना हुआ, तो अपने बहुत याद आए। किसी तरह दहकती राह से होते हुए 45 घंटे बाद अपने गांव पहुंचे थे। अपनों को सामने देख व्याकुलता आंखों से नीर बनकर बह गई थी। छह माह पहले ही फिर मुंबई वापसी हो गई और अब जिदगी ढर्रे पर आ रही है, फिर भी उन्हें कोरोना के फिर से बढ़ता संक्रमण किसी खतरे की घंटी से कम नजर नहीं आ रहा। हर दिन धड़कते दिल से कट रहा है। कोरोना काल में मुंबई की सड़कों पर टैक्सी चलाना अपने आप में बड़ी चुनौती है। इसी तरह हजारों लोग कोरोना के संकट से जुझते हुए फिर से खड़े हुए हैं। इसी बात को आगे बढ़ाते हुए शहर के प्रतिष्ठित सर्राफ अश्वनी केसरवानी कोरोना के संकट को प्रभु की इच्छा मानते हुए कहते हैं कि व्यापारियों ने सबकुछ झेल लिया। हमें यह सीखने को मिला कि किस तरह से देश-काल के हिसाब से अपने को मुश्किलों में ढाल लेना चाहिए। कोरोना का संकट खत्म हुआ तो व्यापार भी धीरे-धीरे अपने स्वरूप में लौटने लगा था। इधर, फिर से कोरोना का दूसरा फेज आ गया, अब फिर डर लगने लगा है। हम सिर्फ यही चाहते हैं कि इस संकट में भी हम सभी को राष्ट्र के साथ एकजुट होकर खड़े होना है। हम सबको मिलकर कोरोना महामारी को हराना है। ऐसी ही भावना से यह ऐतिहासिक शहर ओत-प्रोत है, तभी जिदगी है कि अपनी रफ्तार भर रही है।

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