बस पानी, फलों के छिलके व गुड़ से बना रहे बायोक्लीनर

विकास की दौड़ में अपेक्षाकृत पिछड़े अवध के इस जिले में परिषदीय स्कूल के बचे कुछ हटकर अनूठी पहल कर रहे हैं। कई स्कूलों में नवाचार हो रहा है। इसके जरिए विद्यार्थियों में विकसित हो रही वैज्ञानिक सोच उन्हें बड़े बड़े शहरों के नामी गिरामी स्कूलों में पढ़ने वाले मेधावी बचों के मुकाबले में खड़ा कर रही है। ग्रामीण परिवेश के बाबा बेलखरनाथ धाम क्षेत्र स्थित उच प्राथमिक विद्यालय मरुआन के विद्यार्थियों की खोज बायो एंजाइम बायोक्लीनर इसी कड़ी में गिनी जा सकती है। इसे वह अपने घरों में ही बना रहे हैं। यह जैविक क्लीनर महज जल खट्टे फलों के छिलके और गुड़ से बनाया जाता है। लगभग तीन महीने में तैयार होने वाले इस जैविक क्लीनर का रिस्पांस बेहतर रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 28 Feb 2021 11:08 PM (IST) Updated:Sun, 28 Feb 2021 11:08 PM (IST)
बस पानी, फलों के छिलके व गुड़ से बना रहे बायोक्लीनर
बस पानी, फलों के छिलके व गुड़ से बना रहे बायोक्लीनर

रमेश त्रिपाठी, प्रतापगढ़ : विकास की दौड़ में अपेक्षाकृत पिछड़े अवध के इस जिले में परिषदीय स्कूल के बच्चे कुछ हटकर अनूठी पहल कर रहे हैं। कई स्कूलों में नवाचार हो रहा है। इसके जरिए विद्यार्थियों में विकसित हो रही वैज्ञानिक सोच उन्हें बड़े बड़े शहरों के नामी गिरामी स्कूलों में पढ़ने वाले मेधावी बच्चों के मुकाबले में खड़ा कर रही है। ग्रामीण परिवेश के बाबा बेलखरनाथ धाम क्षेत्र स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय मरुआन के विद्यार्थियों की खोज बायो एंजाइम बायोक्लीनर इसी कड़ी में गिनी जा सकती है। इसे वह अपने घरों में ही बना रहे हैं। यह जैविक क्लीनर महज जल, खट्टे फलों के छिलके और गुड़ से बनाया जाता है। लगभग तीन महीने में तैयार होने वाले इस जैविक क्लीनर का रिस्पांस बेहतर रहा है।

उच्च प्राथमिक विद्यालय मरुआन की पहचान पिछले कुछ सालों से मेधा उभारने वाले स्कूल के रूप में होने लगी है। वजह है यहां विद्यार्थियों में वैज्ञानिक सोच विकसित करने की पहल। कक्षा सात के प्रिस यादव और कक्षा आठ के पुनीत कुमार पाल ने विज्ञान शिक्षिका रश्मि मिश्रा के निर्देशन में समाज के लिए उपयोगी ईजाद के रूप में जो जैविक क्लीनर्स बनाया है, उसका पेटेट तो नहीं हुआ है अभी, लेकिन हौसले की उड़ान देखते ही बनती है। यह बायो क्लीनर आसानी से घरों में बनाया जा सकता है। महज 10 भाग जल, तीन हिस्सा खट्टे फलों के छिलके और एक भाग गुड़ मात्र से इसे तैयार किया जाता है। यूं तो इसके तैयार होने में करीब तीन माह का समय लगता है। यदि और जल्दी बायो क्लीनर चाहिए तो इसमें यीस्ट डालना होता है। इससे यह सिर्फ डेढ़ माह में ही तैयार हो जाता है।

पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित

प्रिंस व पुनीत के बायो एंजाइम बायोक्लीनर की खासियत इसका बहुपयोगी होना है। इससे कपड़े तो धोए ही जा सकते हैं, शौचालय, फर्श साफ करने के अलावा बर्तन धुलने में इसका प्रयोग किया जा सकता है। शिक्षिका रश्मि बताती हैं कि रासायनिक क्लीनर जहां पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालते हैं, वहीं यह बायो क्लीनर पर्यावरण, मानव स्वास्थ्य, मवेशियों के लिए पूर्णतया सुरक्षित हैं। लॉकडाउन के दौरान जब रासायनिक क्लीनर की उपलब्धता कम हो गई थी, वहीं उसकी अधिक कीमत ग्रामीणों की जेब पर भारी पड़ने लगी। उसी दौरान प्रिस और पुनीत ने यह पहल की। सूक्ष्मदर्शी से एक-एक सतह की पूरी जांच की। इस ईजाद पर दोनों बच्चों ने शोधपत्र भी तैयार किया है। जैविक क्लीनर के सैंपल बच्चों ने अपने अध्यापकों और आसपास के लोगो में भी बांटे हैं। 'बायो क्लीनर तैयार करने वाले दोनों बच्चों को उनकी वैज्ञानिक सोच और अन्वेषण क्षमता के लिए इंस्पायर अवार्ड द्वारा छात्रवृत्ति प्रदान की गई है। निश्चित तौर पर जिस उम्र में उन्होंने यह खोज की है, वह बड़ी उपलब्धि ही कही जाएगी।'

अशोक कुमार सिंह, बेसिक शिक्षा अधिकारी, प्रतापगढ़

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