मिट्टी की मूर्तियां बनाने व बर्तन पकाने की विधा परंपरागत
पीलीभीतजेएनएन बदलते समय से साथ माटी कला के शिल्पकारों ने विधा में भी नवीन प्रयोग किए हैं। हालांकि मिट्टी के बर्तन हों या मूर्तियां उन्हें पकाने का तरीका परंपरागत ही रहा है। मूर्तियां बनाने और उन्हें सुखाने के उपरांत मजबूती देने के लिए आग से पकाते हैं। इसके लिए परंपरागत ढंग से आवा तैयार किया जाता है। इसमें ज्यादातर गोबर के उपले इस्तेमाल किए जाते हैं। आग इस तरह से सुलगाई जाती है कि धीमी न जाए और ज्यादा तेज भी न हो। देर तक आग बनी रहे जिससे मूर्तियां और बर्तन अच्छी तरह से पक जाएं।
पीलीभीत,जेएनएन : बदलते समय से साथ माटी कला के शिल्पकारों ने विधा में भी नवीन प्रयोग किए हैं। हालांकि मिट्टी के बर्तन हों या मूर्तियां, उन्हें पकाने का तरीका परंपरागत ही रहा है। मूर्तियां बनाने और उन्हें सुखाने के उपरांत मजबूती देने के लिए आग से पकाते हैं। इसके लिए परंपरागत ढंग से आवा तैयार किया जाता है। इसमें ज्यादातर गोबर के उपले इस्तेमाल किए जाते हैं। आग इस तरह से सुलगाई जाती है कि धीमी न जाए और ज्यादा तेज भी न हो। देर तक आग बनी रहे, जिससे मूर्तियां और बर्तन अच्छी तरह से पक जाएं।
काफी पहले मूर्तियां बनाने के लिए सांचे का चलन नहीं था। शिल्पकार हाथ से ही मूर्तियां गढ़ते थे। उन्हें सजाने के लिए रंग रोगन किया जाता था लेकिन फिर भी मूर्तियां ज्यादा आकर्षक नहीं बन पाती थीं। अब मूर्तियां बनाने वाले हर शिल्पकार के घर विभिन्न तरह के सांचे उपलब्ध है। सांचे में मिट्टी को ढालकर मूर्ति बनाते हैं। पहले मूर्तियों पर लगने वाले रंग ज्यादा पक्के नहीं होते थे। मूर्ति हाथ में पकड़ते ही रंग छूटने लगता था लेकिन अब ऐसा नहीं है। शहर के मुहल्ला तुलाराम में रहने वाले माली कला के शिल्पकार सोबरन लाल लंबे समय से इस कुटीर उद्योग से जुड़े हुए हैं। उनका कहना है कि समय के साथ माटीकला के कार्यों में भी बदलाव आया है। इलेक्ट्रिक चाक का चलन शुरू हो जाने से काम करने में कुछ आसानी हो गई है लेकिन सबके पास तो ये उपलब्ध नहीं हैं। बाजार में प्रतिस्पर्धा रहती है। ऐसे में मूर्तियों को आकर्षक बनाने पर सबसे ज्यादा ध्यान दिया जाता है। वैसे भी अब चीन से आने वाली मूर्तियां खरीदना लोग पसंद नहीं करते। इस कारण देसी मिट्टी की मूर्तियों का चलन बढ़ रहा है।