बाघों के ज्यादा हिसक होने का तर्क बेबुनियाद

पीलीभीतजेएनएन सेव इंवायरमेंट सोसायटी के बाघों के स्वभाव पर अध्ययन किया है। इस अध्ययन में इस तर्क को खारिज कर दिया गया कि बाघ पहले से ज्यादा हिसक हो रहे। हालांकि जंगल की चौड़ाई कम होने से उनमें आपसी द्वंद बढ़ने की आशंका जरूर जताई गई है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 21 Sep 2021 11:11 PM (IST) Updated:Tue, 21 Sep 2021 11:11 PM (IST)
बाघों के ज्यादा हिसक होने का तर्क  बेबुनियाद
बाघों के ज्यादा हिसक होने का तर्क बेबुनियाद

पीलीभीत,जेएनएन : सेव इंवायरमेंट सोसायटी के बाघों के स्वभाव पर अध्ययन किया है। इस अध्ययन में इस तर्क को खारिज कर दिया गया कि बाघ पहले से ज्यादा हिसक हो रहे। हालांकि जंगल की चौड़ाई कम होने से उनमें आपसी द्वंद बढ़ने की आशंका जरूर जताई गई है।

सोसायटी के सचिव तहसीन हसन खान के अनुसार पिछले साल बाघों के स्वभाव पर उन्होंने टीम के साथ अध्ययन शुरू किया था। इसके तहत जंगल के अंदर और आसपास के गांवों में रहने वाले ग्रामीणों से बातचीत की गई। रात में जंगल के वाच टावर पर मौजूद रहकर वन्यजीवों की गतिविधियों का अध्ययन किया गया। इस अध्ययन में उन्होंने पाया कि जंगल से लाभ लेने वाले लोग ही इस बात का दुष्प्रचार करते हैं कि बाघ पहले से ज्यादा हिसक हो गए। जंगल किनारे बसे गांव ढक्का चांट का उदाहरण देते हुए वह बताते हैं कि वहां के ग्रामीण बाघों की मौजूदगी को अपने लिए फायदेमंद बताते हैं। गांव के कई लोगों ने टीम को बताया कि खेतों में जाने के दौरान अक्सर उन्हें बाघ दिख जाता है लेकिन उन्हें देखकर वह हमलावर नहीं होता बल्कि अपने को छिपाने का प्रयास करता है। अध्ययन में पाया गया कि जंगल किनारे के किसान बाघ को फायदेमंद मानते हैं। कई ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि अब बाघ के कारण नीलगाय उनकी फसलें नष्ट नहीं करते। बाघ से कभी कोई फसल को नुकसान नहीं हुआ। अध्ययन में पाया कि जंगल से लाभ उठाने वाले लोग, गौढ़ी संचालक, घास और लकड़ी की निकासी करने वाले लोग ही इस तरह का दुष्प्रचार करते रहते हैं कि यहां के बाघ अब ज्यादा हिसक हो गए हैं जबकि वास्तविकता में ऐसा कुछ नहीं है। अलबत्ता बाघों की वंश वृद्धि से जंगल छोड़ा पड़ने लगा है। ऐसे में बाघों में आपसी द्वंद होने की स्थितियां बनने लगी हैं। पिछले वर्षों में आपसी संघर्ष की कई घटनाएं हुईं। सोसायटी के सचिव ने बताया कि वह पहली से छह अक्टूबर तक मनाए जाने वाले वन्यजीव संरक्षण सप्ताह के दौरान अध्ययन रिपोर्ट को सार्वजनिक करेंगे।

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