पूर्वजों ने की शुरुआत, पीढि़यों ने दी भव्यता

तराई के शहर में छठ पूजा का इतिहास लगभग सात दशक पुराना है। बिहार के जिला दरभंगा से रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनकर आए प्रयाग कामती ने अत्यंत छोटे स्तर पर जिस जगह छठ पूजा की परंपरा डाली थी। बाद की पीढि़यों ने अपनी इस परंपरा को न सिर्फ सहेजा बल्कि इसके आयोजन को भव्यता भी प्रदान कर दी।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 21 Nov 2020 12:14 AM (IST) Updated:Sat, 21 Nov 2020 12:14 AM (IST)
पूर्वजों ने की शुरुआत, पीढि़यों ने दी भव्यता
पूर्वजों ने की शुरुआत, पीढि़यों ने दी भव्यता

पीलीभीत,जेएनएन : तराई के शहर में छठ पूजा का इतिहास लगभग सात दशक पुराना है। बिहार के जिला दरभंगा से रेलवे में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बनकर आए प्रयाग कामती ने अत्यंत छोटे स्तर पर जिस जगह छठ पूजा की परंपरा डाली थी। बाद की पीढि़यों ने अपनी इस परंपरा को न सिर्फ सहेजा बल्कि इसके आयोजन को भव्यता भी प्रदान कर दी।

सूर्य की उपासना प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति की परंपरा में शामिल है। द्वापर युग में दानवीर कर्ण ने सूर्य की उपासना सबसे पहले की थी। द्रोपदी ने अज्ञातवास के दौरान सूर्य का पूजन किया,जिससे फलस्वरूप सूर्यदेव ने एक ऐसा पात्र दिया था। खाने के लिए जो मांगा जाता था वह मिल जाता था,लेकिन इस पात्र का एक समय निर्धारित था। त्रेता युग में लंका विजय के उपरांत मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने अयोध्या लौटने पर जानकी के साथ सूर्य की उपासना की थी। छठ पूजा में अस्ताचलगामी और उदीयमान दोनों स्थितियों में सूर्यदेव की उपासना की जाती है। धरती पर जीवन सूर्यदेव की देन है। बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में छठ पूजा का विशेष महत्व है लेकिन अब यह पूरे देश का महापर्व बन चुका है। तराई के इस जिले की बात करें तो करीब 70 साल पहले बिहार के दरभंगा से रेलवे में कर्मचारी बनकर आए परिवार ने छठ पूजा की परंपरा शुरू की। तब परिवार के लोग बरहा क्रासिग के पास ब्रह्मदेव स्थल पर छठ पूजा करते थे। वहीं पर एक वेदी का निर्माण करा लिया था। बाद में जैसे-जैसे रेलवे कालोनी में बिहार और पूर्वांचल के लोगों की संख्या बढ़ती गई तो छठ पर्व के उत्सव का भी विस्तार होता गया। वहीं पर सरोवर विकसित किया गया। अंदर कई वेदियों का निर्माण कराने के साथ ही पक्की सीढि़यां भी बन गई। इस बार तो कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के कारण सामूहिक उत्सव नहीं हो रहा है लेकिन पिछले वर्षों तक यहां छठ पर्व पर उत्सव का ऐसा नजारा होता कि राह चलते लोग भी इसकी भव्यता देख ठिठक देखने लगते।

मेरे दादा प्रयाग कामती की नौकरी रेलवे में लगी थी। वह पचास के दशक में परिवार के साथ यहां रेलवे में चतुर्थ श्रेणी पद पर नौकरी करने आए थे। उन्होंने ही छठ पूजा की शुरुआत की थी, उनके बाद पिता मौजीलाल इस परंपरा को निभाते रहे। अब तीसरी पीढ़ी में मैं कर्तव्य निभा रहा हूं। रेलवे की नौकरी से रिटायर होने के बाद यहीं आवास बना लिया है।

उमेश कामती

यहां लंबा समय गुजर गया है। मैं भी रेलवे से रिटायर होने के बाद यहीं बस गया। पहले तो बेहद छोटे स्तर पर छठ पूजा का आयोजन होता था लेकिन समय के साथ नई पीढ़ी ने इसे भव्य बना दिया लेकिन परंपराएं उसी तरह से निभाते आ रहे हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं हुआ है।

श्याम लाल

मेरा परिवार भी मूल रूप से बिहार के जिला दरभंगा का रहने वाला है। यहां पर परिवार को छठ पूजा करते लंबा समय बीत गया है। रेलवे से रिटायर होने के बाद यहीं कालोनी के पास ही अपना आवास बना लिया है। अब तो पर्व की सभी तैयारियां बड़े उत्साह से नई पीढ़ी करती है।

गणेश कामती

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