जिद पर आई सिमरनजीत की हाकी, पदक तक पहुंची

छह वर्ष की उम्र ही क्या होती है। हर बच्चे का अलग खेल होता है सिमरनजीत का भी था। हां वह अन्य बच्चों की तरह कार-बंदूक वाले खिलौने या क्रिकेट के बजाय हाकी की ओर दौड़ता था। घर में खेती-किसानी का माहौल था मगर न जाने उसे कहां से इस खेल की जिद सवार हो गई। अड़ गया कि हाकी और गेंद से ही खेलेगा। आखिरकार पिता ने उसकी जिद पूरी की।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 05 Aug 2021 11:14 PM (IST) Updated:Thu, 05 Aug 2021 11:14 PM (IST)
जिद पर आई सिमरनजीत की हाकी, पदक तक पहुंची
जिद पर आई सिमरनजीत की हाकी, पदक तक पहुंची

पीलीभीत,जेएनएन: छह वर्ष की उम्र ही क्या होती है। हर बच्चे का अलग खेल होता है, सिमरनजीत का भी था। हां, वह अन्य बच्चों की तरह कार-बंदूक वाले खिलौने या क्रिकेट के बजाय हाकी की ओर दौड़ता था। घर में खेती-किसानी का माहौल था मगर, न जाने उसे कहां से इस खेल की जिद सवार हो गई। अड़ गया कि हाकी और गेंद से ही खेलेगा। आखिरकार पिता ने उसकी जिद पूरी की। उसी खेल से बेटा पूरे देश का दुलारा हो जाएगा, ऐसा नहीं सोचा था।

उत्साह और भावनाओं के संगम से भरी आवाज से मंजीत कौर अपने बेटे सिमरनजीत सिंह के पुराने किस्से साझा करती गई। परिवार ने मझोला के मझरा फार्म में घर बना लिया था। वर्ष 1997 में सिमरजीत का जन्म हुआ। परिवार खेती-बाड़ी में लगा रहता था, बेटे को नर्सरी की शिक्षा के लिए मझोला के ही सेंट पैट्रिक स्कूल में दाखिल करा दिया था। बाद में पांचवीं तक की पढ़ाई एसके पब्लिक स्कूल में की। इसके बाद एक वर्ष तक पीलीभीत के बेनहर पब्लिक स्कूल में पढ़ाया। उस समय सिमरजीत घर में ही हाकी खेलने लगे थे। वर्ष 2006 में उनके ताऊ रक्षपाल सिंह पंजाब से आए थे। हाकी खेलते देख कहा कि इसे खिलाड़ी बनाएंगे। अपने साथ पंजाब ले जाकर वहीं प्रशिक्षण दिलाने की बात कही तो मां मंजीत कौर व पिता इकबाल सिंह ने हामी भर दी।

पंजाब टीम में शामिल हुए तो लगा कि अब आगे तक जाएगा

मंजीत कौर कहती हैं कि पंजाब में हाकी खेलते हुए बेटा वहां की टीम में शामिल हुआ तो लगा कि अब देश के लिए भी खेल सकता है। वह उम्मीदों पर खरा उतरता गया। विश्वकप के लिए टीम में उसका चयन मेरे के लिए सबसे बड़ी खुशी थी। वहां से जीत के बाद यहां आकर बताया था कि ओलंपिक की तैयारी में लगा हूं, देश के लिए पदक जीतने की इच्छा है। हम सभी का सपना था, जोकि बेटे ने आज पूरा कर दिया। बेंग्लुरू कैंप के दौरान भी वह रोजाना फोन कर बताता था कि प्रैक्टिस अच्छी चल रही है। उम्मीद है कि मैदान पर उतरने का मौका मिलेगा। आज जब लोग कहते हैं कि तुम्हारा बेटे हाकी टीम के लिए लकी है तो बेहद खुशी होती है।

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