पीलीभीत में त्रिपुरा से आएगी डोलू बांस की पौध

शासन की एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में शामिल बांसुरी उद्योग को डोलू प्रजाति का बांस सस्ते दामों पर मिल सके इसके लिए सामाजिक वानिकी विभाग को जिम्मेदारी सौंपी गई है। विभाग की ओर से त्रिपुरा से इस प्रजाति के बांस की पौध मंगाकर यहां नर्सरी तैयार की जाएगी।

By JagranEdited By: Publish:Fri, 25 Jun 2021 01:32 AM (IST) Updated:Fri, 25 Jun 2021 01:32 AM (IST)
पीलीभीत में त्रिपुरा से आएगी डोलू बांस की पौध
पीलीभीत में त्रिपुरा से आएगी डोलू बांस की पौध

पीलीभीत, जेएनएन : शासन की एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में शामिल बांसुरी उद्योग को डोलू प्रजाति का बांस सस्ते दामों पर मिल सके, इसके लिए सामाजिक वानिकी विभाग को जिम्मेदारी सौंपी गई है। विभाग की ओर से त्रिपुरा से इस प्रजाति के बांस की पौध मंगाकर यहां नर्सरी तैयार की जाएगी। कोविड महामारी के कारण इसकी प्रक्रिया रुक गई थी लेकिन अब जल्द ही पौध मंगाकर वन महोत्सव के दौरान नर्सरी लगाने की तैयारी है।

जिस प्रजाति के बांस से बांसुरी का निर्माण होता है, वह असोम के सिल्चर जिले के आता है। पहले मीटरगेज की रेलगाड़ियों का संचालन पीलीभीत से लेकर असोम तक होता रहा है। ऐसे में बांसुरी के बड़े कारोबारी ट्रेन के माध्यम से डोलू प्रजाति का बांस सीधे यहां मंगा लेते थे। बाद में मीटरगेज की रेलगाड़ियों का चलन असोम राज्य में बंद हो गया। फिर यहां भी मीटर गेज खत्म कर दिया गया। ऐसे में बांसुरी वाले बांस को सड़क मार्ग से मंगाया जाता है। ऐसे में बांसुरी की लागत बढ़ गई. इसका परिणाम यह हुआ कि बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की संख्या काफी घट गई. पहले करीब साढ़े तीन सौ परिवार इस हुनर से जुड़े थे लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या घटकर सवा सौ के आसपास रह गई. बांसुरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने इसे एक जिला एक उत्पाद योजना में शामिल किया लेकिन बांस की दिक्कतें बरकरार रहीं। इस पर डीएम ने यहीं की मिट्टी में डोलू प्रजाति के बांस उगाने की संभावनाओं का पता लगाने की जिम्मेदारी सामाजिक वानिकी को सौंपी। सामाजिक वानिकी ने पाया कि ज्यादा नमी और दलदली भूमि पर इसे आसानी से उगाया जा सकता है। सामाजिक वानिकी के डीएफओ संजीव कुमार के अनुसार डोलू बांस की पौध त्रिपुरा से मंगाई जाएगी। वहां की नर्सरियों से संपर्क किया गया है लेकिन पौध मंगाने से पहले जमीन का चयन होना है। जिले में कहीं पर भी नदी किनारे पांच हेक्टेयर जमीन का चयन होना है। इसके लिए तलाश चल रही है। जमीन मिलने के बाद पौध मंगाई जाएगी। यह डेढ़ महीने में तैयार हो जाएगा।

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