एकता के आदर्शो के पालन से बनेगा महानतम राष्ट्र

पीलीभीतजेएनएन भारत का स्वाधीनता संग्राम विश्व भर में आजादी के लिए किए गए संघर्षों में विशिष्ट स्थान रखता है। यह संग्राम दो ऐसी ताकतों के बीच था जिनमें गहरी असमानता थी। एक तरफ ब्रिटिश साम्राज्य था जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था। दूसरी तरफ विभिन्न जातियों धर्मों परंपराओं में आबद्ध समाज था जो मध्यकालीन मूल्यों से निकलने की चेष्टा कर रहा था।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 15 Sep 2021 11:23 PM (IST) Updated:Wed, 15 Sep 2021 11:23 PM (IST)
एकता के आदर्शो के पालन से बनेगा महानतम राष्ट्र
एकता के आदर्शो के पालन से बनेगा महानतम राष्ट्र

पीलीभीत,जेएनएन : भारत का स्वाधीनता संग्राम विश्व भर में आजादी के लिए किए गए संघर्षों में विशिष्ट स्थान रखता है। यह संग्राम दो ऐसी ताकतों के बीच था, जिनमें गहरी असमानता थी। एक तरफ ब्रिटिश साम्राज्य था, जिसका सूरज कभी नहीं डूबता था। दूसरी तरफ विभिन्न जातियों, धर्मों, परंपराओं में आबद्ध समाज था, जो मध्यकालीन मूल्यों से निकलने की चेष्टा कर रहा था। अशिक्षा, गरीबी, रूढ़वादिता तत्कालीन भारतीय समाज में स्थायी स्थान बना चुके थे। ऐसे समाज ने दुनिया के सबसे ताकतवर समाज से अद्भुत युद्ध लड़ा और विजयी हुए। यह जिन आदर्शों पर संभव हुआ, अब हम उन आदर्शों की बात करते हैं।

धर्म निरपेक्षता या सांप्रदायिक सौहार्द

पूरे स्वाधीनता संग्राम कुछ छिटपुट घटनाओं को छोड़कर हममें अछ्वुत हिदू-मुस्लिम एकता के साथ अंग्रेजों का मुकाबला किया। वर्ष 1857 के स्वाधीनता संग्राम में हिदू-मुस्लिम सभी सिपाहियों ने मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को अपना नेता स्वीकार किया। यह तत्कालीन भारत के सांप्रदायिक सौहार्द का अनोखा उदाहरण है। इसी तरह बंग भंग आंदोलन, स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन, भारत छोड़ो आंदोलन अनगिनत संघर्षों में हमने सांप्रदायिक एकता की मिसाल पेश की। आज का भारत अपने स्वतंत्रता सेनानियों से सांप्रदायिक एकता के इस आदर्श से सीखकर एक शांतिपूर्ण प्रगतिशील समाज की स्थापना में अपना योगदान दे सकता है। स्वतंत्रता संग्राम में लगभग संपूर्ण भारत ने भाषा, क्षेत्र की दीवारों को तोड़ते हुए पूरे उत्साह से भाग लिया। कश्मीर से कन्या कुमारी तक एक स्वर में अंग्रेजों का विरोध किया। महात्मा गांधी के आह्वान पर गुजरात, महाराष्ट्र, बंगाल, संयुक्त प्रांत सहित संपूर्ण भारत अपनी क्षेत्रीय विशिष्टता छोड़कर स्वाधीनता संग्राम में कंधा से कंधा मिलाकर भाग लेने के लिए तैयार हो जाता था। इतने उत्साह से भाग लेना शायद इतना कौतूहल पैदा न करे लेकिन तत्कालीन सामंती मूल्यों वाले भारत में महिलाओं का इतने बड़े पैमाने पर भाग लेना सचमुच अविस्मरणीय घटना थी। यह सिलसिला रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल से प्रारंभ होकर कादम्बिनी गांगुली, दुर्गा भाभी, सरोजनी नायडू, हंसा मेहता तक अनवरत जारी रहता है। वर्तमान भारत स्वतंत्रता संग्राम महिलाओं की भागीदारी वाले आदर्श को अपनाकर एक बिना लैंगिक भेदभाव वाले सशक्त, प्रगतिशील देश का निर्माण कर सकता है। भारत से स्वाधीनता संघर्ष में सभी जातियों, वर्गों ने पूरी ताकत से भाग लिया। जातियों में बंटे समाज के तत्कालीन तथाकथित सबसे निचले पायदान की जातियों अपने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए राष्ट्र का मान बढ़ाया। बिरसा मुंडा, झलकारी बाई अनगिनत योद्धाओं ने भारत की आजादी की लड़ाई में भाग लिया। आज यदि स्वतंत्रता संग्राम के इस जातीय व वर्गीय एकता के मूल्य को आत्मसात कर ले तो हमें विश्व का श्रेष्ठतम राष्ट्र बनने से कोई रोक नहीं सकता। हम कह सकते हैं कि सांप्रदायिक सौहार्द, अखंड राष्ट्रवाद, त्याग, शौर्य, स्त्री, अनुसूचित जाति एवं जनजाति अर्थात वंचित समाज का भी पूरे उत्साह से भाग लेना भारत के स्वतंत्रता संग्राम के केंद्रीय मूल्य थे। इन मूल्यों या आदर्शों की आवश्यकता आज के भारत को तत्कालीन भारत से भी ज्यादा है, इसलिए हम सबको इन आदर्शों का पालन करते हुए अपने महान राष्ट्र को महानतम राष्ट्र बनाने का प्रयास करना चाहिए।

-अनुज कुमार मिश्र, प्रवक्ता इतिहास, सनातन धर्म बांकेबिहारी राम इंटर कालेज पीलीभीत

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