शौर्य गाथा-सियाचिन ग्लेशियर पर जिदा व टिके रहना ही जीत : मेजर डॉ.बीपी सिंह

मोहम्मद बिलाल नोएडा देशभक्तों से ही देश की शान है। देशभक्तों से ही देश का मान है। हम उस देश के फूल हैं यारों जिस देश का नाम हिदुस्तान हैं। कुछ इन्हीं भावनाओं को साथ लेकर डॉमेजर बीपी सिंह दुनिया के सबसे अधिक ऊंचाई पर बने युद्धस्थल पर साढ़े चार माह तक डटे रहे थे। देश की सुरक्षा जवानों की अग्रिम पंक्ति करती है। इन्हें चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सकों की टीम रहती है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 07:23 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 09:46 PM (IST)
शौर्य गाथा-सियाचिन ग्लेशियर पर जिदा व टिके रहना ही जीत : मेजर डॉ.बीपी सिंह
शौर्य गाथा-सियाचिन ग्लेशियर पर जिदा व टिके रहना ही जीत : मेजर डॉ.बीपी सिंह

मोहम्मद बिलाल, नोएडा : 'देशभक्तों से ही देश की शान है। देशभक्तों से ही देश का मान है। हम उस देश के फूल हैं यारों, जिस देश का नाम हिदुस्तान हैं।' कुछ इन्हीं भावनाओं को साथ लेकर डॉ'मेजर बीपी सिंह दुनिया के सबसे अधिक ऊंचाई पर बने युद्धस्थल पर साढ़े चार माह तक डटे रहे थे। देश की सुरक्षा जवानों की अग्रिम पंक्ति करती है। इन्हें चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराने के लिए चिकित्सकों की टीम रहती है। तीन माह के लिए पोस्टिग के बावजूद उन्होंने साढ़े चार माह का समय वहां गुजारा था। उस समय उनके ब्रिगेडियर वहां पहुंचे, लेकिन मौसम खराब होने से रात में वहीं रुकना पड़ा। उस दौरान उन्हें तैनाती से अधिक समय तक वहां रुकने की बात पता लगी, तो वह डॉ.मेजर बीपी सिंह को अपने साथ हेलीकाप्टर से वापस लेकर आए थे।

मेजर डॉ.बीपी सिंह बताते हैं कि सेना में उनकी भर्ती 1986 में कैप्टन पद पर हुई थी। पहली तैनाती दिल्ली के बेस हास्पिटल में थी। सेना में जाने से पूर्व ही वह एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद दिल्ली के ही मौलाना आजाद मेडिकल कालेज में जूनियर रेजिडेंट डॉक्टर थे। बेस हास्पिटल के बाद उनकी तैनाती जम्मू-कश्मीर में कर दी गई। वर्ष 1990 के करीब उनकी तैनाती सियाचिन ग्लेशियर पर की गई। वह सियाचिन ग्लेशियर के सबसे ऊंचे भीम पोस्ट पर साढ़े चार माह तक रहे। समुद्र तल से औसतन इसकी ऊंचाई 24 हजार फीट है। वहां का तापमान माइनस 55 डिग्री है। सियाचिन ग्लेशियर पर प्रतिदिन दुश्मन देशों की ओर से बमबारी की जाती थी। गोले सिर के ऊपर से होकर गुजरते थे। हर समय जान जाने का खतरा बना रहता था। सियाचिन ग्लेशियर पर सिर्फ चारों तरफ बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है।

वह बताते हैं कि जब सोते थे, तो पता नहीं होता था कि अगले दिन की सुबह देखेंगे भी या नहीं। माह में 20 दिन बर्फबारी होती रहती थी। मौसम ठीक नहीं होने से हेलीकाप्टर की ओर से जरूरत का सामान भी नहीं पहुंच पाता था। जब ग्लेशियर पर अखबार पढ़ने को मिलता था तो बहुत खुशी होती थी। उसे पूरी इत्मीनान से पढ़ते थे। सियाचिन ग्लेशियर पर तैनाती के दौरान वह अपने छह माह के बच्चे से दूर रहे। ड्यूटी कर लौटने के बाद जब धरती को पहली बार देखा तो जमीन को निहारते रह गए थे।

खुद के साथ दूसरे सैनिकों को स्वस्थ रहने के बताए उपाय : मेजर बीपी सिंह बताते है कि सियाचिन ग्लेशियर पर जिदा और टिके रहने ही जीत है। सियाचिन ग्लेशियर पर तैनाती के दौरान खुद के साथ दूसरे सैनिकों को स्वस्थ रहने के लिए लगातार प्रेरित करते रहे। जब हिमस्खलन की चेतावनी होती थी तो सभी बंकर में ही रहते थे। सियाचिन ग्लेशियर पर उनका काम साथी सैनिकों का इलाज करना था, क्योंकि जरा-सी लापरवाही पर सैनिक बीमार होने लगते हैं। युद्ध के समय पहाड़ी पर चढ़ाई में परेशानी न हो, इसलिए उन्हें शरीर को फिट रखने के बारे में बताते थे। सियाचिन ग्लेशियर पर आक्सीजन की भारी कमी होती है। इसलिए जिदा रहना बहुत कठिन होता है।

स्वास्थ्य सेवा में निभा रहे जिम्मेदारी : देशसेवा की भावना से जुड़े रहे मेजर डॉ.बीपी सिंह उत्तर प्रदेश के अंबेडकर नगर जिले के सीएमओ भी रह चुके हैं। साथ ही उत्तर प्रदेश में कुंभ मेले में बतौर वरिष्ठ चिकित्सक अपनी सेवा दे चुके हैं। वर्तमान में चाइल्ड पीजीआइ में सीनियर इमरजेंसी मेडिकल आफिसर है। कोरोनाकाल में उन्होंने संक्रमितों का इलाज भी किया।

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