यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी सुपरटेक ने किया है घोटाला, इस तरह किया गया 'खेल'

सुपरटेक बिल्डर को 2009 में यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में फ्लैटों का निर्माण करने के लिए ग्रप हाउसिंग का 100 एकड़ का भूखंड आवंटित हुआ। बिल्डर के करीब डेढ़ गुणा फ्लैट अधिक बन गए। इन्हें बेचकर बिल्डर ने मोटी कमाई कर ली।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sun, 05 Sep 2021 11:40 AM (IST) Updated:Sun, 05 Sep 2021 11:40 AM (IST)
यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी सुपरटेक ने किया है घोटाला, इस तरह किया गया 'खेल'
यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी सुपरटेक ने किया है घोटाला

नोएडा [धर्मेंद्र चंदेल]। सुपरटेक बिल्डर के नोएडा सेक्टर 93-ए स्थित एमराल्ड कोर्ट में हुए घोटाले के बाद अब यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में भी इसी तरह गड़बड़झाला सामने आया है। बिल्डर ने नियमों को ताख पर रखकर ग्रुप हाउसिंग के लिए आवंटित भूखंड पर निर्धारित ग्राउंड कवरेज से अधिक फ्लैटों का निर्माण कर लिया। उस समय यमुना प्राधिकरण के सीईओ मोहिंदर सिंह थे। इमारत का मानचित्र भी पास कर दिया गया। 23 मंजिला निर्माण के बाद 2015 में जब कंप्लीशन की बारी आई तो तत्कालीन सीईओ संतोष यादव ने घोटाले को पकड़ा।

उन्होंने कंप्लीशन पर रोक लगाकर बिल्डर के खिलाफ मामला दर्ज करने के निर्देश दिए। आधे घंटे के अंदर ही सीईओ का तबादला हो गया। इतना ही नहीं फर्जीवाड़े को सही साबित करने के लिए बिल्डर ने शासन और एयरपोर्ट अथारिटी का फर्जी पत्र भी यमुना प्राधिकरण में जमा करा दिया। तत्कालीन अधिकारियों ने पत्र को शासन स्तर पर सत्यापित कराने के बजाय उसे सही मानकर फाइल में अटैच कर दिया।

सुपरटेक बिल्डर को 2009 में यमुना प्राधिकरण क्षेत्र में फ्लैटों का निर्माण करने के लिए ग्रप हाउसिंग का 100 एकड़ का भूखंड आवंटित हुआ। उस समय प्राधिकरण के सीईओ ललित श्रीवास्तव थे। आवंटन की नियम व शर्तों के मुताबिक बिल्डर को भूखंड के 25 फीसद क्षेत्रफल पर फ्लैटों का निर्माण करना था।

बिल्डर ने 100 एकड़ के भूखंड पर अलग-अलग चरणों में निर्माण शुरू किया। पहले चरण के एक हिस्से के निर्माण पर 25 के बजाय 40 फीसद ग्राउंड कवरेज कर तय मानक से अधिक जमीन पर फ्लैट बना दिए।

इससे बिल्डर के करीब डेढ़ गुणा फ्लैट अधिक बन गए। इन्हें बेचकर बिल्डर ने मोटी कमाई कर ली। हालांकि, 2015 में जब पहले चरण में बनाए गए फ्लैटों के कंप्लीशन की फाइल तत्कालीन सीईओ संतोष यादव के सामने आई तो मामला पकड़ में आया। फाइल पर निर्माण की ग्राउंड कवरेज 40 फीसद थी। जबकि अन्य बिल्डरों को 25 फीसद ग्राउंड कवरेज की अनुमति थी। दोनों के बीच अधिक अंतर की जांच कराने पर पता चला कि सुपरटेक के लिए शासन से ग्राउंड कवरेज बढ़ाने के लिए पत्र आया था।

वहीं एनसीआर में 20 से अधिक मंजिल भवन निर्माण के लिए एयरपोर्ट अथार्टी से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओससी) लेना आवश्यक है। बिल्डर की फाइल में यह एनओसी लगी हुई थी। शक होने पर सीईओ ने जांच कराई तो शासन का पत्र और एयरपोर्ट अथार्टी की एनओसी फर्जी पाई गई।

इतना ही नहीं बिल्डर ने प्राधिकरण से आवंटित भूखंड को मोर्गेज (जमीन को गिरवी रखकर बैंकों से कर्ज लेना) के जरिये 150 करोड़ रुपये का कर्ज बैंकों से लेकर प्राधिकरण में जमा नहीं किया। उक्त धनराशि को दूसरे कार्यों में इस्तेमाल कर लिया। फर्जीवाड़ा सामने आने पर बिल्डर के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी हो गई थी। भनक लग जाने पर बिल्डर ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर उसी दिन सीईओ का तबादला करा दिया। हालांकि, एफआइआए के आदेश हो गए थे।

सीईओ के तबादले के बाद कासना कोतवाली में अज्ञात के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज की गई। बाद में प्राधिकरण ने बिल्डर पर कार्रवाई करते हुए इस मामले में 13 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया।

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