पढ़िए एक गरीब परिवार की लड़की के खेल का जुनून, मेहंदी के रंग से साधा ‘सांड की आंख’ पर निशाना

टूट के डाली से हाथों पर बिखर जाती है यह तो मेहंदी है मेहंदी तो रंग लाती है / कभी संघर्ष तो कभी सफलता लेकर आती है..। ऐसे ही कई रंगों को जीवन में उतारकर सफलता की लकीरें खींचने की कोशिश में जुटी हैं पूजा वर्मा।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Publish:Fri, 05 Mar 2021 01:03 PM (IST) Updated:Fri, 05 Mar 2021 07:20 PM (IST)
पढ़िए एक गरीब परिवार की लड़की के खेल का जुनून, मेहंदी के रंग से साधा ‘सांड की आंख’ पर निशाना
घर-घर जाकर मेहंदी लगाकर और ड्राइविंग सिखाकर खेल के लिए पैसे जमा करती हैं पूजा वर्मा

सुनाक्षी गुप्ता, नोएडा। टूट के डाली से हाथों पर बिखर जाती है, यह तो मेहंदी है, मेहंदी तो रंग लाती है / कभी संघर्ष तो कभी सफलता लेकर आती है..। ऐसे ही कई रंगों को जीवन में उतारकर सफलता की लकीरें खींचने की कोशिश में जुटी हैं पूजा वर्मा। एक गरीब परिवार की लड़की, जिसने एक सपना देखा और उसे सच करने को कभी घर-घर जाकर मेहंदी लगाई। कभी स्कूटी सिखाई, तो कभी स्कूलों में जाकर खेल सिखाया।

संघर्षमय जीवन में कभी हिम्मत नहीं हारी। उत्तर प्रदेश की बेटी व बनारस की रहने वाली 24 वर्षीय पूजा वर्मा राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज हैं। वह नोएडा स्टेडियम शूटिंग रेंज में आयोजित 43वीं यूपी स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में 50 मीटर राइफल प्रोन शूटिंग अंतरराष्ट्रीय मानक में 609.8 के साथ श्रेष्ठ स्थान पर बनी हैं। इतना ही नहीं, वह यूपी महिला निशानेबाजों में 610 पॉइंट के साथ नंबर एक निशानेबाज के स्थान पर हैं। 

मां घरों में जाकर बनाती हैं खाना, पिता हैं ड्राइवर 

बनारस की रहने वाली पूजा बताती हैं कि स्कूल के समय से एनसीसी के जरिये खेलों में आई और 2013 से निशानेबाजी सीख रही हैं। घर की माली हालत खराब होने से उन्हें खेल से दो साल का ब्रेक भी लेना पड़ा था। उनकी मां घरों में जाकर खाना बनाती हैं। पिता व भाई ड्राइवर हैं। ऐसे में शूटिंग जैसे महंगे खेल के उपकरण खरीदने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे। तब वह अपने कोच बिपलाप गोस्वामी और पंकज श्रीवास्तव की मदद से उधार की राइफल लेकर प्रतियोगिता में हिस्सा लेती थी।

वर्ष 2015 में जब उन्हें राष्ट्रीय स्तर की तैयारी करनी थी, तो पैसे उधार लेकर पांच लाख की राइफल व किट खरीदी। दो साल तक स्कूलों में पढ़ाई करने से लेकर तीन शिफ्ट में तीन अलग नौकरी कर उधार चुकाने के साथ चैंपियनशिप में हिस्सा लेने के लिए पैसे इकट्ठे किए। वर्ष 2017 से दोबारा खेल में वापसी की और 2019 में नेशनल खेलों में 610.1 अंक का स्कोर बनाया। 2020 में नेशनल टीम की चयन प्रक्रिया में दो ट्रायल में 607.1 और 608 अंकों के साथ पास किया उसके बाद कोरोना के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। 

खुद के बूते उठाती हैं पढ़ाई व खेल का खर्च 

पूजा बताती हैं कि वह बीपीएड की पढ़ाई कर चुकी हैं। अब एमपीएड के साथ ही अप्रैल में होने वाले नेशनल ट्रायल की तैयारी कर रही हैं। वह खेलने के लिए पहले एक साल काम कर पैसे जमा करती हैं, क्योंकि उन्हें कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। पूजा राज्य स्तर पर सात स्वर्ण और चार रजत पदक हासिल कर चुकी हैं। 

बुल्सआइ शूटिंग यानी सांड की आंख 

शूटिंग प्रतियोगिता में एक विशेष श्रेणी होती है, जिसे बुल्सआइ शूटिंग यानी सांड की आंख के नाम से भी जाना जाता है। इस शूटिंग में सावधानीपूर्वक सटीक निशाना लगाते हुए खिलाड़ी को लक्ष्य के केंद्र में व उसके करीब सबसे अधिक निशाने लगाने होते हैं। इस टारगेट सेंटर को बुल्सआइ शूटिंग या बैल की आंख कहते हैं 

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