अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस: जब ऊंची है हौसलों की उड़ान तो देखना फिजूल है कद आसमान का

नोएडा की बास्केटबाल खिलाड़ी आरुषि शर्मा ने भी ऐसा ही उदाहरण पेश करती हैं उन्होंने 2019 में आबू धाबी में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में दिल्ली की टीम से बास्केटबाल खेलते हुए रजत पदक हासिल किया है। आरुषि शर्मा स्पेशल श्रेणी में आती हैं।

By Vinay TiwariEdited By: Publish:Thu, 03 Dec 2020 12:57 PM (IST) Updated:Thu, 03 Dec 2020 12:57 PM (IST)
अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस: जब ऊंची है हौसलों की उड़ान तो देखना फिजूल है कद आसमान का
बास्केटबॉल और नेट बॉल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल कर चुकी हैं।

सुनाक्षी गुप्ता, नोएडा। कहते हैं जिनके इरादे सच्चे हों उनकी उड़ाने भी उतनी ही ऊंची होती हैं। फिर चाहे बारिश आए या तूफान व बाज की तरह उड़ान नहीं रोकते और सभी मुश्किलें पार कर आसमां का सफर तय करता है। इसी तरह नोएडा की शान बन रहे हैं कुछ ऐसे चमकते सितारे जोकि जीवन की कठिनाइयों को पार पर आज राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमक रहे हैं।

नोएडा की बास्केटबाल खिलाड़ी आरुषि शर्मा ने भी ऐसा ही उदाहरण पेश करती हैं, उन्होंने 2019 में आबू धाबी में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में दिल्ली की टीम से बास्केटबाल खेलते हुए रजत पदक हासिल किया है। बचपन से मानसिक रूप से कमजोरी का सामना करने के बावजूद आज वह उस मुकाम पर पहुंच चुकी हैं जहां वह देशभर के स्पेशल बच्चों को खेल के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

अपनी कहानी सुनाकर दूसरों के अंदर जगाती हैं हौसला

सेक्टर-45 निवासी 23 वर्षीय आरुषि शर्मा स्पेशल श्रेणी में आती हैं। उनकी मां पूजन शर्मा बताती हैं कि शुरुआत के दिनों में उन्हें काफी समस्या आती थी और वह किसी से बात करने में बहुत डरती थी, उनका आईक्यू स्तर कम होने के कारण अकसर लोग उन्हें ताने भी देते थे कि यह अपना भविष्य कैसे बना पाएंगी, क्योंकि उनका मन पढ़ाई में नहीं लग पाता था। आरुषि के स्पोर्ट्स शिक्षक रोहित मनचंदा ने उन्हें खेल में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। अब वह बास्केटबॉल के साथ नेट बॉल, बैडमिंटन, हॉकी व स्किपिंग आदि खेलों में खुद को तैयार कर रही हैं, इससे उनके अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ।

वह 2017 और 2018 में बास्केटबॉल और नेट बॉल के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक हासिल कर चुकी हैं। आरुषि बताती हैं कि आज वह स्पेशल ओलंपिक भारत में युवा खिलाड़ियों की कमेटी की सदस्य होने के साथ प्रेरक वक्ता है। वह देशभर के स्पेशल बच्चों को अपनी कहानी के जरिए प्रेरित करती हैं ताकि वह भी आगे आएं और अपनी पहचान बना सके। साथ ही खुद के अंदर छुपी प्रतिभा की पहचान कर उसका सही तरह से प्रशिक्षण ले सकें, इस कार्य में वह उनकी मदद करती हैं।

पैरालंपिक टेबल टेनिस खिलाड़ी अनूप सिंह बने शहर की शान

सेक्टर - 28 निवासी पैरालंपिक टेबल टेनिस खिलाड़ी अनूप सिंह 66 उम्र में भी जोश से भरे हुए हैं। जन्म के एक साल बाद पैरों से दिव्यांग हुए अनूप सिंह उस दौर के खिलाड़ी हैं जब स्पेशल खिलाड़ी तो दूर आम खिलाड़ियों के लिए भी खुद की पहचान बनना बेहद मुश्किल होता था। अनूप सिंह बताते हैं कि आज से दो से तीन दशक पहले देश में खेल के क्षेत्र में कई समस्याएं थी और स्पेशल खिलाड़ी होने के कारण उनके लिए चुनौतियां भी दूसरों से अधिक थी।

इसके बाद भी सभी मुश्किलों को पार कर 2009 में नेशनल पैरा टेबल टेनिस चैंपियनशिप में रजत पदक हासिल किया और उसके बाद भी लगातार तीन वर्ष तक दिल्ली के चैंपियन बने रहे। 2012 में खेल मंत्रालय द्वारा आयोजित प्रथम हैंडीकैप टेबल टेनिस टूर्नामेंट में स्वर्ण पदक हासिल कर नाम रोशन किया। 1995 में ह्यूमन वेलफेयर सोसायटी एंड भारतीय विकलांग सोसायटी की तरफ से भारतीय विकलांग भूषण अवार्ड से सम्मानित हो चुके हैं। 

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो

chat bot
आपका साथी