Loan Apps: फटाफट कर्ज का जानलेवा मर्ज, क्या ऐसे गोरखधंधों पर कभी लगाम लग पाएगी!

मोबाइल एप्स के जरिये छोटी-छोटी रकम कर्ज देने वाली कई कंपनियां लोगों से मूलधन का 20 से 30 गुना तक रकम वसूल रही हैं। विभिन्न मोबाइल लोन एप्स से आसान कर्ज लेने के कारण बड़ी संख्या में लोग इसके चंगुल में फंस रहे। फाइल

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Fri, 15 Jan 2021 10:32 AM (IST) Updated:Fri, 15 Jan 2021 10:32 AM (IST)
Loan Apps: फटाफट कर्ज का जानलेवा मर्ज, क्या ऐसे गोरखधंधों पर कभी लगाम लग पाएगी!
क्या ऐसे गोरखधंधों पर कभी लगाम लग पाएगी।

डॉ. संजय वर्मा। देश में पिछले कुछ वर्षो से जारी डिजिटल साक्षरता और वित्तीय जागरूकता का कुछ विडंबनाओं ने किस कदर कबाड़ा किया है, अगर इस पर सरकारों, वित्तीय प्रतिष्ठानों और खुद हमारी नजर जाएगी, तो माथा पीटने के अलावा हमें कोई और बात नहीं सूङोगी। ताजा मामला लोन एप्स से जुड़े फर्जीवाड़ों और उनमें फंसकर हताश होने, प्रताड़ना का सामना करने और अपनी जान लेने तक के किस्सों का है। यह बड़ी हैरानी का विषय है कि एक अमीर तबका हमारे देश में ऐसा है जिसे ऐयाशी के लिए पूंजी की कमी पड़ती है तो वह सरकारी बैंकों तक से हजारों करोड़ रुपये लेकर स्वाहा कर डालता है और विजय माल्या व नीरव मोदी की तरह विदेशों में जाकर कानूनों से बचने के रास्ते निकालने की जुगत भिड़ाने लगता है।

वहीं दूसरी तरफ निम्न मध्यवर्ग से लेकर गरीब-गुरबों की लाखों की फौज है जो लिखा-पढ़ी के तमाम झंझट से बचने के चक्कर में या तो कर्ज दिलाने वाले लोन एप्स जैसे जालों में फंस जाती है या फिर डिजिटल अपराधियों की चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसकर जीवन भर की अपनी गाढ़ी कमाई उनके हवाले कर हाथ मलती रह जाती है और कोई उसे बचाने नहीं आता है। पूछा जा सकता है कि जब हमारे देश में भारतीय रिजर्व बैंक से लेकर तमाम वित्तीय संस्थाएं बैंकिंग आदि मामलों में कायदे-कानून बना रही हैं, कथित तौर पर वे जागरूकता के कई अभियान भी चला रही हैं तो आखिर लोन एप्स से लेकर डिजिटल हेराफेरी और चिटफंड के नाम पर चूना लगाने वाली वारदातें कैसे मुमकिन हो पा रही हैं।

बैंकों से इतर एप्स के जरिये लोन : अभी तक ऐसे ज्यादातर किस्से आम तौर पर प्राइवेट बैंकों से जुड़े होते थे, जिनमें दावा किया जाता था कि कर्ज वसूली के लिए उनके एजेंट लोगों को धमकाते थे और उन्हें उनकी संपत्ति आदि से जबरन बेदखल कर देते थे। लोन नहीं चुकाने के बदले कार उठा ले जाने वाले और मारपीट तक कर डालने वाली वारदातों की रोशनी में जब सरकारों और वित्तीय संस्थाओं ने घटनाओं का कुछ संज्ञान लिया तो इनमें कुछ कमी अवश्य आई। पर इधर लोन एप्स से जुड़ी घटनाओं ने एक बार फिर कर्ज देने वाली कंपनियों के खौफनाक इरादों को जाहिर करते हुए यह सवाल पैदा किया है कि क्या ऐसे गोरखधंधों पर कभी लगाम लग पाएगी।

दावे हैं कि कोरोना के संकट काल में जब कई लोगों को मजबूरी में कहीं से रोजी-रोटी चलाने का कोई जरिया नहीं मिला, तो उनमें से कुछ का ध्यान मोबाइल एप्स के जरिये फटाफट कर्ज दिलाने वाली स्कीमों की तरफ गया और मिनटों में अपनी जरूरत भर का पैसा अपने अकाउंट में ट्रांसफर करवा लिया। लेकिन ऐसा कर्ज जितनी आसानी से मिला, बाद की घटनाओं से साफ हुआ कि उतनी ही आसानी से इनसे जुड़ी मुसीबतें लोगों के गले पड़ती गईं। जैसे देश की राजधानी दिल्ली में घटित एक वाकये में द्वारका इलाके के एक युवक को इसलिए आत्महत्या करनी पड़ी, क्योंकि एक तो कर्ज ली गई धनराशि के बदले उससे 30 गुना ज्यादा रकम चंद महीनों के ब्याज और जुर्माने के रूप में मांगी जा रही थी और दूसरे, उसे व उसके परिवार को कर्ज नहीं चुका पाने के कारण पूरी सोसायटी में जलील करवाने की कोशिश हो रही थी।

बताया गया है कि एप के जरिये उसे कर्ज देने वाली कंपनी के रिकवरी एजेंटों ने उस युवक और उसके पिता के नाम से एक वाट्सएप ग्रुप बनाकर उनके संपर्क सूची (कॉन्टैक्ट लिस्ट) से जुड़े सभी लोगों को जलालत भरे मैसेज भेजने शुरू कर दिए थे। इसकी जानकारी जब उस युवक को लगी तो हताशा में आत्महत्या करने के अलावा उसे कोई और रास्ता नहीं सूझा।

लॉकडाउन के दौरान आई तेजी : ज्यादातर मामले कोरोना काल में आई आíथक दिक्कतों के चलते छोटे-मोटे कर्ज से जुड़े हैं, लेकिन यह छोटा कर्ज भी वक्त पर चुकता नहीं किए जाने या उसे चुकाने के लिए नए कर्ज लेकर उनमें भी डिफॉल्ट करने के कारण रिकवरी एजेंटों के जरिये मिलने वाली प्रताड़नाओं की वजह बन गया। अब तक आई सूचनाओं के अनुसार देश में तेलंगाना, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और दिल्ली तक से ऐसे डेढ़ दर्जन से ज्यादा मामलों का पर्दाफाश हो चुका है, जिनमें एप के जरिये कर्ज देने वाली कंपनी के एजेंटों की प्रताड़ना और बेइज्जती से परेशान लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है। कर्ज का यह नया मर्ज वैसे तो कई गंभीर सवाल उठाता है और इन मामलों में वित्तीय संस्थाओं के निगरानी तंत्र को सवालिया घेरे में लाता है। हालांकि पहला सवाल यही है कि आखिर लोग इन लोन एप्स के जाल में फंसते ही क्यों हैं। क्यों वे कर्ज के लिए बैंकों या फिर किसी अन्य वित्तीय संस्थाओं के पास नहीं जाते, जहां के कायदे-कानून भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी के कारण काफी स्पष्ट हैं।

इसकी कई वजहें हैं, जिनमें पहली है कर्ज मिलने में देरी और छोटी सी रकम के कर्ज के लिए भी तमाम लिखा-पढ़ी का झंझट। जिस तरह चंद मिनटों में बिना ज्यादा पूछताछ के छोटे कर्ज लोन एप्स की मार्फत मिल जाते हैं, वैसी सुविधा शायद ही रिजर्व बैंक से पंजीकृत कोई बैंक या रजिस्टर्ड नॉन बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनी (एनबीएफसी) जैसी संस्थाएं दे पाती हैं। बैंकों या एनबीएफसी से कर्ज चाहिए तो इसके लिए सैलरी स्लिप, बैंकों के स्टेटमेंट, नियोक्ता कंपनी का नाम और कई मामलों में अच्छे सिबिल स्कोर तक की जरूरत पड़ती है। लेकिन जिस व्यक्ति के पास ये सारे कागजात न हों, उसे छोटी राशि का और जल्द ही कर्ज चाहिए, तो ऐसी कथित सहूलियत कैश मामा, लोन जोन, धनाधन लोन, कैश-अप, कैश बस, मेरा लोन जैसे दर्जनों लोन एप मुहैया कराते हैं। दावा है कि गूगल के एप स्टोर से डाउनलोड करने के बाद इनमें अपने संपर्क की जानकारी (कॉन्टैक्ट डिटेल) और निजी जानकारी (पर्सनल डिटेल) ही भरने होते हैं, जिसके बाद कोई गारंटी या इनकम प्रूफ नहीं देने के बावजूद दो से 10 हजार तक की रकम फौरन ही आपके बैंक खाते में आ जाती है। ऐसे छोटे कर्ज को चुकाने के लिए सात से 15 दिन की मोहलत दी जाती है।

हालांकि इसमें पेच यही है कि लोन की किस्त ब्याज समेत समय पर नहीं भरी, तो कर्ज पर ब्याज और जुर्माना 30 से लेकर हजार गुना तक हो सकता है। साथ ही लोन देने वाली कंपनी के रिकवरी एजेंट कर्ज लेने वाले की फोटो सार्वजनिक करने लगते हैं, कॉन्टैक्ट लिस्ट में दर्ज लोगों के बीच उसे बदनाम किया जाता है और ऐसी भारी जलालत के बीच कुछ लोग या तो दूसरे एप डाउनलोड कर पहला वाला कर्ज चुकाने की एक और गलती करते हैं या फिर आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। चूंकि इन लोन एप्स पर रिजर्व बैंक का कोई नियंत्रण नहीं है, इसलिए इन पर हमारे देश के वित्तीय कानून भी लागू नहीं होते हैं। ऐसे में ये लोन कंपनियां मामूली लोन की किस्त नहीं चुकाने वालों पर प्रतिदिन हजार रुपये तक की पेनाल्टी लगा देते हैं तो लोग छटपटाकर रह जाते हैं।

सस्ते और जल्दी कर्ज दिलाने के नाम पर हमारे देश में आजकल स्मार्टफोन से संचालित होने वाले मोबाइल एप्लीकेशन (लोन एप्स) की अचानक बाढ़ आ गई है और उनके जाल में फंसकर लोगों को अपनी जान तक गंवानी पड़ रही है। लिहाजा इस तरह की घटनाओं ने एक बार फिर कर्ज देने वाली कंपनियों के खौफनाक इरादों को जाहिर करते हुए यह सवाल पैदा किया है कि क्या ऐसे गोरखधंधों पर कभी लगाम लग पाएगी।

[असिस्टेंट प्रोफेसर, बेनेट यूनिवर्सिटी, ग्रेटर नोएडा]

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