Supreme Court Comments On Noida Authority: सरकार की छवि पर ग्रहण बने भ्रष्टाचारी अफसर
Supreme Court Comments On Noida Authority सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोएडा प्राधिकरण के नाक मुंह कान से ही नहीं बल्कि उसके चेहरे से भ्रष्टाचार टपक रहा है। इसकी पुष्टि इस बात से हो रही है कि मौजूदा सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के तमाम दावे किए।
नोएडा [कुंदन तिवारी]। नोएडा प्राधिकरण में हो रहे भ्रष्टाचार का आरोप सुप्रीम कोर्ट ने यूं ही नहीं लगाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोएडा प्राधिकरण के नाक, मुंह, कान से ही नहीं, बल्कि उसके चेहरे से भ्रष्टाचार टपक रहा है। इसकी पुष्टि इस बात से हो रही है कि मौजूदा सरकार ने भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के तमाम दावे किए। जनता को विश्वास दिलाया कि सभी प्राधिकरणों का केंद्रीयकरण कर दिया गया है।
शुरुआती दौर में यह देखने को मिला कि नोएडा प्राधिकरण में तैनात अधिकारियों का यूपी सीडा, गोरखपुर, कुशीनगर, आजमगढ़ प्राधिकरण तक तबादला किया गया। दावा किया गया कि कोई भी भ्रष्टाचारी नोएडा प्राधिकरण में अब तैनात नहीं रहेगा, लेकिन कुछ समय बाद सरकार के दावे फेल हो गए।
भ्रष्ट अधिकारियों को नोएडा प्राधिकरण से हटाकर ग्रेटर नोएडा, यमुना एक्सप्रेस-वे प्राधिकरण में फिर से मलाईदार पदों पर तैनात कर दिया गया। इससे मौजूदा सरकार की छवि पर धब्बा लगा है। भ्रष्टाचारी अफसरों ने स्पष्ट कर दिया कि सरकार किसी की भी हो चलेगी उन्हीं की। चूंकि पिछली सरकार में नोएडा समेत जिले के तमाम प्राधिकरण सीधे मुख्यमंत्री के हाथ में होते थे, लेकिन इस सरकार में प्राधिकरण के लिए औद्योगिक एवं अवस्थापना औद्योगिक विकास मंत्री पद सृजन किया गया, लेकिन इस सरकार में भी व्यवस्था पूर्व की भांति लागू रही।
कोर्ट के आदेश की अधिकारियों ने की अवहेलना
सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण अधिकारियों को आड़े हाथ लेकर फैसला सुरक्षित कर दिया है, लेकिन प्राधिकरण अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगा दिया है,क्योंकि सुपरटेक समूह का सेक्टर-93 स्थित एमराल्ड कोर्ट का ट्विन टावर के टावर 70 हजार वर्ग मीटर में बनाए गए है। दोनों टावरों की बिल्डर ने 40:40 मंजिल बनाने की अनुमति ले रखी है। 1,500 फ्लैट खरीदार इसमें शामिल है, जिनके बीच की दोनों के बीच की दूरी 16 मीटर निर्धारित किया गया।
इस परियोजना पर 750 करोड़ रुपये बिल्डर ने खर्च किया है। हालांकि हाई कोर्ट ने वर्ष 2014 में दोनों टावर को गिराने का निर्देश दिया था, लेकिन नोएडा प्राधिकरण अधिकारियों ने दलील दी थी कि उसने वर्ष 2005 के बिल्डर अप्रूवल प्लान के अनुसार बिल्डर को 40:40 माला तैयार करने की अनुमति प्रदान की है, जिसके तहत बिल्डर ने 32 माला पर निर्माण किया है। चूंकि बिल्डर ने 24 माले की बिल्डर को सेक्शन प्लान में अप्रूव कराया था। इसके बाद फ्लोर एरिया रेशियो (एफएआर) के तहत उसने 40:40 माले की बिल्डिंग तैयार करने की अनुमति ली है। इसलिए उसे यह अनुमति प्रदान की गई है। हालांकि एमराल्ड कोर्ट की आरडब्ल्यूए ने सीधा आरोप लगाया था कि यह टावर लैंड यूज कर बिल्डर ने ग्रीन बेल्ट में तैयार किया गया है, जो पूरी तरह से गलत है।
इसके बाद हाई कोर्ट ने बिल्डर के 32वें माले के निर्माण पर ही रोक लगाकर उसे गिराने का आदेश दिया था, लेकिन प्राधिकरण के भ्रष्ट अधिकारियों ने हाई कोर्ट के आदेश का पालन न कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी, जिसका आज फैसला सुरक्षित हो गया, जिसमें प्राधिकरण अधिकारियों की कार्य प्रणाली को कठघरे तक में खड़ा कर दिया गया।