ऊँ नम: शिवाय

ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर का महत्व सावन के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। पूरे सावन यहां शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। सावन के हर सोमवार को मंदिर में दूरदराज से शिवभक्तों की भीड़ जमा होती है। मंदिर में स्थित शिवलिग व खूबसूरत मूर्तियां आकर्षण का केंद्र है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 25 Jul 2021 06:55 PM (IST) Updated:Sun, 25 Jul 2021 06:55 PM (IST)
ऊँ नम: शिवाय
ऊँ नम: शिवाय

ग्रेटर नोएडा वेस्ट के बिसरख गांव स्थित प्राचीन शिव मंदिर का महत्व सावन के महीने में कई गुना बढ़ जाता है। मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। पूरे सावन यहां शिव भक्तों का तांता लगा रहता है। सावन के हर सोमवार को मंदिर में दूरदराज से शिवभक्तों की भीड़ जमा होती है। मंदिर में स्थित शिवलिग व खूबसूरत मूर्तियां आकर्षण का केंद्र है। मंदिर का इतिहास :

बिसरख गांव के प्राचीन शिव मंदिर का इतिहास लंकापति रावण से जुड़ा है। मान्यता है कि बिसरख क्षेत्र रावण के पिता ऋषि विश्रवा की तपोस्थली था। रावण के जन्म के लिए उन्होंने इसी मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। इसके बाद रावण का जन्म हुआ। प्राचीन शिवलिग को ऋषि विश्रवा ने ही स्थापित कर आराधना की थी। अष्टभुजाधारी यह शिवलिग आज भी गांव के प्राचीन मंदिर में मौजूद है। ऐसा शिवलिग हरिद्वार तक किसी मंदिर में नहीं मिलता।

मंदिर की विशेषता :

प्राचीन शिव मंदिर के बारे में विशेषता है कि सावन में शिवलिग के दर्शन मात्र से ही मनोकामना पूरी हो जाती है। लोग दूरदराज के इलाकों से यहां अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। चर्चित तांत्रिक चंद्रास्वामी ने इस मंदिर पर यज्ञ कराया था। इस दौरान उन्होंने शिवलिग की खुदाई कराई थी। बीस फुट खुदाई के बाद भी शिवलिग का छोर नहीं मिला। इसके बाद खुदाई बंद करा दी गई थी। खुदाई के दौरान एक 24 मुखी शंख मिला था, जिसे चंद्रास्वामी अपने साथ ले गए थे। खुदाई के दौरान एक गुफा भी मिली थी, जो पास के खंडहरों में जाकर समाप्त हो गई।

वर्जन..

बिसरख क्षेत्र ऋषि विश्रवा की प्रमाणिक तपोस्थली है। मान्यता है कि रावण का जन्म मंदिर के समीप ऋषि के आश्रम में हुआ था। सावन में शिवलिग की विशेष पूजा होती है।

-रामदास, मंदिर के पुजारी श्रद्धालु अपनी मनोकामना लेकर आते हैं। गांव में आज भी लोग दशहरा पर रावण का दहन नहीं करते। मंदिर में स्थापित शिवलिग की गहराई का कोई अनुमान नहीं है।

-नितिन भाटी, बिसरख

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