नौकरी छोड़ शिक्षा की लौ से रोशन कर रहे घरों के चिराग

पारुल रांझा नोएडा भागदौड़ भरी जिदगी के बीच पैसा कमाना ही लोगों के लिए लक्ष्य बन चुका है। क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 11:17 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 11:17 PM (IST)
नौकरी छोड़ शिक्षा की लौ से रोशन कर रहे घरों के चिराग
नौकरी छोड़ शिक्षा की लौ से रोशन कर रहे घरों के चिराग

पारुल रांझा, नोएडा: भागदौड़ भरी जिदगी के बीच पैसा कमाना ही लोगों के लिए लक्ष्य बन चुका है। काम और नौकरी को लेकर अल-सुबह से शुरू होने वाली आपा-धापी देर रात तक चलती है। ऐसे दौर में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो रुपयों के पीछे न दौड़कर दूसरों के लिए भी जीना चाहते हैं। सेक्टर-66 के रहने वाले पंकज शर्मा भी उन्हीं में से एक हैं। शहर की झुग्गी-झोपड़ियों से कोई आइएएस निकले. कोई आइपीएस, खिलाड़ी या फिर समाजसेवक बनकर समाज को नई दिशा दें, इसी उद्देश्य से जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने निजी कंपनी की अच्छी नौकरी छोड़ दी। अब वह जरूरतमंदों के बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाने के लिए शहर के अलग-अलग ग्रामीण इलाकों में छह सेंटर चला रहे हैं।

बच्चों को शिक्षित करने के लिए छोड़ी नौकरी: 34 वर्षीय पंकज शर्मा का सपना गरीब के खुरदुरे आंगन में खुशियों के दीप जलाने का है। ग्रामीण इलाकों व फुटपाथ पर जब उन्होंने बच्चों को शिक्षा के अधिकार से वंचित होते देखा तो नौकरी छोड़ उन्हें शिक्षित करने के बारे में सोचा। साथ ही उनके बचपन को संस्कारों से पोषित करके स्वर्णिम भविष्य की नींव मजबूत करने की ठान ली। जहां पहले वे दो बच्चों को झुग्गी झोपड़ी में पढ़ाते थे, अब संख्या 450 हो गई है। इसके लिए उन्होंने दद्दा फाउंडेशन भी बनाई है। वे अपनी टीम के साथ ग्रामीण इलाकों में जाकर बच्चों के अभिभावकों में शिक्षा के लिए जागरूकता पैदा करते है और बच्चों को स्कूल भेजने के लिए प्रेरित करते है। इनके प्रयासों से सैकड़ों बच्चे सरकारी निजी स्कूलों में पढ़ाई कर रहे हैं।

शिक्षा को बनाया जीवन का सहारा: पंकज शर्मा बताते हैं कि शिक्षक समाज की रीढ़ होते हैं। उन्हें बिना भेदभाव और स्वार्थ के ज्ञान बांटना चाहिए। गरीब बच्चों को पढ़ाने के लिए खुद से प्रेरणा मिली, उन्होंने शिक्षा को ही जीवन का सहारा बना दिया। बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा के साथ किताबें कापी, कलम, पेंसिल आदि सामग्री भी दी जाती है। किताबी शिक्षा के साथ वह बच्चों को नैतिक मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा भी देते हैं, जिससे वह बच्चे आगे चलकर देश के जिम्मेदार नागरिक बने। कोरोना काल में जरूरतमंदों को भोजन उपलब्ध कराने के लिए उन्होंने करीब 35 लाख रुपये खर्च किए थे।

chat bot
आपका साथी