शहरनामा
सुबह के नौ बज रहे थे। हाल में करीब 20 कुर्सियां रखी हुई थीं। सामने प्रधानमंत्री का संबोधन चल रहा था पर कुर्सियों पर कोई बैठा नहीं था। राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चौथे तल पर स्वास्थ्यकर्मी और स्टाफ टीका लगने से पहले की तैयारी में जुटे थे।
..तो ये वो संबोधन नहीं
सुबह के नौ बज रहे थे। हाल में करीब 20 कुर्सियां रखी हुई थीं। सामने प्रधानमंत्री का संबोधन चल रहा था, पर कुर्सियों पर कोई बैठा नहीं था। राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चौथे तल पर स्वास्थ्यकर्मी और स्टाफ टीका लगने से पहले की तैयारी में जुटे थे। इस सबके बीच एक अधेड़ उम्र के सुरक्षाकर्मी खाली कुर्सियों को देखकर उम्र में छोटे अपने साथी से नाराजगी जाहिर कर रहे थे। बताइए, प्रधानमंत्री जिनका हौसला बढ़ाने के लिए सुबह से टीवी पर आ गए हैं और यहां हर कोई अपने काम में व्यस्त है। अरे भाई, इतने लोगों के बीच 20 लोग भी ऐसे नहीं, जो बैठ जाएं। वहां से गुजर रहे स्वास्थ्यकर्मी शुभम ने ये सुन लिया और रुक गए। दोनों को देखा और बोले, चचा अभी प्रधानमंत्री दूसरी योजनाओं पर बात कर रहे हैं। हमारा हौसला बढ़ाने के लिए 10:30 बजे संबोधन करेंगे। तब आपको सभी लोग कुर्सी पर दिखेंगे।
उल्टा डाक्टर से जाना हाल
कोरोना पर आखिरी प्रहार राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान के चौथे तल पर जारी था। हर कोई उस आधे घंटे के बीतने का इंतजार कर रहा था, जिसमें टीके का प्रभाव सामने आना था। समय बीता और सबकुछ ठीक रहा। टीका लगने के अहसास और जेहन में चल रही हलचल जानने के लिए मीडिया बेसब्री से स्वास्थ्यकर्मियों का इंतजार कर रही थी। संस्थान के निदेशक ब्रिगेडियर डॉ.राकेश शर्मा ने सबसे पहला टीका लगवाया था। मीडिया से मुखातिब होने के लिए उनके साथ उनकी पत्नी डॉ. अर्चना गुप्ता भी पहुंचीं। सवाल उठने लगे, डॉक्टर साहब कैसा लग रहा है। कोई परेशानी तो नहीं। जी तो नहीं मिचला रहा। सिरदर्द, बदन दर्द। चलिए खुद ही बताइए, क्या दिक्कत हो रही है। सवाल सुनकर डॉ.गुप्ता थोड़ी देर शांत रहे और फिर मुस्कुराते हुए बोले-सब समय का फेर है। पहले डॉक्टर हाल पूछते थे। अब उल्टा उनसे हाल पूछा जा रहा है। सभागार ठहाके से गूंज उठा। ठंड में धरने की तपिश
ठंड ने सूरज की तपिश भी हल्की कर रखी है। उधर धरने की गर्मी से किसानों के हौसले बुलंद हो रहे हैं। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण कार्यालय के बाहर किसान पिछले चार दिन से नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत सुविधाओं की मांग को लेकर धरने पर बैठे हैं। महिलाएं व पुरुषों की संख्या करीब बराबर है। सुनील फौजी के नेतृत्व में किसानों की हुंकार उन अन्य संगठनों तक भी पहुंचने लगी है। उन्होंने समर्थन के लिए मौजूदगी भी दर्ज कराई है। पिछले दिनों भी किसानों के एक संगठन ने लीजबैक के मामले को लेकर धरना दिया था। इसके बाद प्राधिकरण को बैकफुट पर आना पड़ा था और दोबारा जांच शुरू की गई थी। प्राधिकरण एक बार फिर धरने से घिर तो चुका है, लेकिन इस बार नियम के तहत की गई कार्रवाई से वह भी मजबूत है। हालांकि हक और नियम की इस लड़ाई से आम जनता परेशान नहीं है।
साहब से पहले एक्टिव सिटीजन
कई बार नाम संबंधित के व्यक्तित्व को पूरी तरह से दर्शा देते हैं। 'जैसा नाम वैसा काम।' इन शब्दों के साथ ग्रेटर नोएडा का एक्टिव सिटीजन संगठन पूरा न्याय कर रहा है। प्राधिकरण हो या जिला प्रशासन के साहब। इनसे पहले ही ये जागरूक संगठन शहरवासियों को उनकी समस्याओं के निराकरण की जानकारी वाट्सएप ग्रुप पर दे देता है। यहां तक कि साहब लोगों की शहर में चल रही कार्रवाई की जानकारी संगठन के संयोजक हरेंद्र भाटी संबंधित विभाग से पहले ही जारी कर देते हैं। संगठन की मजबूती का अहसास इस बात से लगाया जा सकता है कि जैसे ही कोई जानकारी इनके द्वारा इंटरनेट मीडिया पर साझा की जाती है, अधिकारियों को पक्ष रखना पड़ जाता है। इनकी जागरूकता से आलाधिकारी भी खुश हैं, क्योंकि जो चीज उन तक नहीं पहुंच पाती, उसे ये संगठन पहुंचा देता है। अब तो शहर में आम है कि साहब से पहले सिटीजन।