एडवांस : कॉलम : कैंपस से

बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत दाखिला लेने के लिए आवेदन की प्रक्रिया चल रही है। गरीब व वंचित वर्ग से आने वाले अभिभावक अपने बच्चों के सुखद भविष्य का सपना बुन रहे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 Jul 2020 08:53 PM (IST) Updated:Thu, 16 Jul 2020 08:53 PM (IST)
एडवांस : कॉलम : कैंपस से
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सपनों को पहना रहे अमलीजामा बाल शिक्षा अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत दाखिला लेने के लिए आवेदन की प्रक्रिया चल रही है। गरीब व वंचित वर्ग से आने वाले अभिभावक अपने बच्चों के सुखद भविष्य का सपना बुन रहे हैं। इन सपनों को अमलीजामा पहनाने के लिए बेसिक शिक्षा कार्यालय में कर्मी लगातार काम कर रहे हैं। तय ड्यूटी से अधिक समय काम कर वे आवेदनों की जांच प्रक्रिया पूरी कर रहे हैं। जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी धीरेंद्र कुमार के नेतृत्व में देवेंद्र कौशिक, कपिल खटाना आदि कर्मचारी 10 से 11 घंटे तक रोजाना ड्यूटी निभा रहे हैं। उनका कहना है कि लॉटरी निकलने का समय नजदीक आ रहा है। ऐसे में आवेदनों की जांच प्रक्रिया तेजी से चल रही है। सुबह साढ़े आठ बजे आते हैं। शाम को साढ़े छह से साढ़े सात बजे तक काम चलता है। सुबह-शाम आवेदनों की जांच प्रक्रिया चलती है। दोपहर का समय अभिभावकों से पूछताछ में ही बीत जाता है।

शिक्षा लोन की आसान हो प्रक्रिया परीक्षा के परिणाम आने शुरू हो चुके हैं। उच्च शिक्षण संस्थान दाखिले की तैयारी में जुट गए हैं। दाखिले लेने वाले अधिकतर विद्यार्थियों का कहना है कि कोरोना संक्रमण काल में अभिभावकों की नौकरी जाने से फीस जमा करने में वे असमर्थ हैं। ऐसे में सरकार आसान शर्त पर विद्यार्थियों को शिक्षा लोन देने की पहल कर सकती है। ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ ग्रेटर नोएडा के प्रधानाचार्य डॉ.लोकेश शर्मा ने बताया कि इस वर्ष दाखिले के लिए आने वाले अधिकतर विद्यार्थी फीस देने में असमर्थ हैं। सरकार ऐसे विद्यार्थियों को उद्यमियों की तर्ज पर 50 हजार से एक लाख रुपये तक का लोन उपलब्ध करा सकती है। बैंक गारंटी के तौर पर शैक्षिक दस्तावेज रख सकती है। अभिभावकों की जमानत ले सकती है। इससे दो सेमेस्टर की फीस की व्यवस्था हो जाएगी। अर्थव्यवस्था को पटरी पर आने में अभी वक्त लग सकता है। शिक्षकों पर भारी, फीस की जिम्मेदारी कोरोना संक्रमण काल ने हर जगह व्यापक असर डाला है। नौकरी, व्यापार, उद्योग, धंधे आदि प्रभावित हुए हैं। शिक्षण व्यवस्था भी अछूती नहीं। अब जब नौकरी चली गई या फिर वेतन में कटौती हो गई, तो भला अभिभावक फीस जमा भी करें, तो कैसे। ऐसी ही कुछ स्थिति शिक्षण संस्थाओं की भी है। इन शिक्षण संस्थाओं का कहना है कि फीस न आने की स्थिति में वे शिक्षक व कर्मचारियों का वेतन कैसे देंगे? अन्य खर्च कैसे उठाएंगे? ऐसे में कई स्कूल व शिक्षण संस्थानों ने शिक्षकों को फीस वसूलने की जिम्मेदारी दी है। क्लास टीचर आए दिन अभिभावकों को फोन कर फीस जमा करने के लिए कह रहे हैं। शिक्षक भी नौकरी के दबाव में फोन कर फीस के लिए कहने को मजबूर हैं। जहां अभिभावक पारिवारिक स्थिति खराब होने से फीस जमा कराने में असमर्थ हैं, वहीं शिक्षण संस्थाएं वेतन देने और खर्चा चलाने के लिए फीस लेने को मजबूर हैं। ड्यूटी के प्रति सजग कासना स्थित राजकीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जिम्स) को कोविड लेवल-2 श्रेणी का अस्पताल बनाया गया है। इसे मेडिकल स्टाफ की मेहनत ही कह सकते हैं कि बड़े पैमाने पर लोग यहां से स्वस्थ होकर घर जा रहे हैं। हालांकि संस्थान का पूरा मेडिकल स्टाफ ही दिन-रात कोरोना की ड्यूटी में लगा हुआ है। नोडल अधिकारी डॉ.सौरभ श्रीवास्तव की कड़ी मेहनत भी छिपी नहीं है। कोविड अस्पताल बनने के बाद से डॉ.सौरभ श्रीवास्तव ने एक भी दिन छुट्टी नहीं ली है। उनकी लगन देखकर अन्य स्टाफ को भी प्रेरणा मिल रही है और कोरोना संक्रमितों के उपचार में जीन-जान से जुटे हुए हैं। डॉ.सौरभ कहते हैं कि कर्तव्य के प्रति सजग रहना ही चिकित्सकीय धर्म है। इस महामारी में छुट्टी लेकर आराम करना बेमानी है। जब तक इस बीमारी का कोई तोड़ नहीं निकल जाता, चैन से नहीं बैठेंगे।

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