संवेदना बनीं साक्षी..गंगा दे रही विसर्जन की गवाही

जिदा थे तो घर-आंगन में खूब महकते रहे लेकिन जिदगी के मौन होते ही रिश्ते-नातों ने मुंह मोड़ लिया। समय ऐसी कठिन परीक्षा ले रहा है कि नश्वर शरीर को अपनों का कंधा तक नहीं मिल रहा है। मोक्ष के लिए अस्थियां विसर्जन के लिए तरस रही हैं। इनके लिए संवेदना और इंसानियत साक्षात हो रही हैं। श्मशान में लावारिस रखी अस्थियों को क्रांतिकारी बिटिया ने विजर्सित किया है। इसके चलते संवेदना साक्षी बनी है तो मां विसर्जन की गवाही दे रही हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 11:21 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 11:21 PM (IST)
संवेदना बनीं साक्षी..गंगा दे रही विसर्जन की गवाही
संवेदना बनीं साक्षी..गंगा दे रही विसर्जन की गवाही

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। जिदा थे तो घर-आंगन में खूब महकते रहे, लेकिन जिदगी के मौन होते ही रिश्ते-नातों ने मुंह मोड़ लिया। समय ऐसी कठिन परीक्षा ले रहा है कि नश्वर शरीर को अपनों का कंधा तक नहीं मिल रहा है। मोक्ष के लिए अस्थियां विसर्जन के लिए तरस रही हैं। इनके लिए संवेदना और इंसानियत साक्षात हो रही हैं। श्मशान में लावारिस रखी अस्थियों को क्रांतिकारी बिटिया ने विजर्सित किया है। इसके चलते संवेदना साक्षी बनी है तो मां विसर्जन की गवाही दे रही हैं।

कर्मकांड के पथ पर चली क्रांतिकारी बिटिया

शहर के श्मशान घाट पर कोविड-19 महामारी के काल में कई हस्तियां और आमजन अकाल मौत का शिकार हुए हैं। शहर निवासी साक्षी ट्रस्ट वेलफेयर की अध्यक्ष क्रांतिकारी बेटी शालू सैनी श्मशान घाट पर एक लावारिस शव का अंतिम संस्कार करने के लिए गई थीं। यहां अंतिम क्रिया के दौरान उसने लावारिस रखीं अस्थियों को देखा तो रहा नहीं गया। व्यवस्थापक से पूरे मामले की जानकारी ली। यह उन शवों की अस्थियां थीं, जिन्हें अपनों का कंधा तक नहीं मिला है। कोरोना के डर से स्वजन अस्थियां एकत्र करने नहीं पहुंच सके हैं। गुरुवार को शालू लगभग 12 अस्थियों को एकत्र कर शुक्रताल घाट पर पहुंचीं। यहां विधि-विधान के बाद मां गंगा की गोद में अस्थियां विसर्जन की गई। इससे इन मृतकों को मोक्ष के साथ आत्मा को शांति मिल सके। वह बताती हैं कि कोरोना काल में संगठन के साथ मिलकर लावारिस शवों का क्रियाकर्म और भूखों को भोजन कराने का सिलसिला जारी रखेंगी। बदनसीब मृतक या स्वजन!

महामारी के महासंकट में रिश्तों की डोर भी कच्ची हो गई है। वायरस का सबसे अधिक असर रिश्तों पर दिखाई दे रहा है। इसकी गवाही श्मशान में जलती चिताएं और कब्रिस्तान में दफन होते शव बता रहे हैं। जिले में प्रतिदिन कई शव ऐसे पहुंच रहे हैं, जिन्हें अपनों का कंधा नहीं मिल रहा है। बीमारी के डर और कोरोना की गाइडलाइन ने रिश्तों पर बर्फ जमा दिया है। ऐसे में कहना गुरेज नहीं होगा कि बदनसीब ये जलती चिताएं हैं या हताश और विवश स्वजन। खैर, समय बीत जाएगा, लेकिन गैरों की दिली संवेदना और इंसानियत मौजूदा समय में साक्षात हो रहे हैं।

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