मां पार्वती के आशीर्वाद से पांडवों ने पाया था अक्षय पात्र
पौराणिक तीर्थनगरी शुकतीर्थ में महाभारतकालीन प्राचीन माता पार्वती मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना है। मंदिर में स्थापित मां पीतांबरा बगलामुखी की 81 फुट उंची मूर्ति की पूजा-अर्चना को दूरदराज से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर निर्माण कार्य के दौरान की गई खुदाई में महाभारतकालीन कुआं निकलने से इसका पौराणिक महत्व और बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने हस्तिनापुर से चलकर पहला पड़ाव इसी जगह किया था।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। पौराणिक तीर्थनगरी शुकतीर्थ में महाभारतकालीन प्राचीन माता पार्वती मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना है। मंदिर में स्थापित मां पीतांबरा बगलामुखी की 81 फुट उंची मूर्ति की पूजा-अर्चना को दूरदराज से श्रद्धालु आते हैं। मंदिर निर्माण कार्य के दौरान की गई खुदाई में महाभारतकालीन कुआं निकलने से इसका पौराणिक महत्व और बढ़ जाता है। ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान पांडवों ने हस्तिनापुर से चलकर पहला पड़ाव इसी जगह किया था।
उत्तर भारत की पौराणिक तीर्थनगरी शुकतीर्थ गंगा की तलहटी में वर्ष 1995 पूर्व में खुदाई के दौरान महाभारतकालीन प्राचीन पार्वती मंदिर दिखाई दिया था। नगरी के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् डा. अयोध्या प्रसाद मिश्र महाराज ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और माता पार्वती, काली मां, सरस्वती और लक्ष्मीजी के साथ बजरंगबली की मूर्ति स्थापित कराई। इसके अलावा पीतांबरेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना कराकर अष्टधातु की शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित कराई। वही, मंदिर प्रांगण में मां पीतांबरा बगलामुखी की 81 फुट उंची भव्य प्रतिमा का निर्माण कराया। हवन-यज्ञ, अनुष्ठान के लिए यज्ञशाला भी बनी है। देशभर से श्रद्धालु माता पार्वती मंदिर में दर्शन व पूजा-अर्चना के लिए यहां आते हैं। श्रद्धालु मंदिर में कई दिनों तक अनुष्ठान करते हैं। ज्योतिषविद् डा. अयोध्या प्रसाद मिश्र महाराज बताते हैं माता पार्वती मंदिर की प्राचीनता का महाभारतकालीन कई उल्लेख है। मां पार्वती के आशीर्वाद से पांडवों ने अक्षय पात्र पाया है।
खोदाई में निकला महाभारतकालीन कुआं
मंदिर में इन दिनों निर्माण कार्य चल रहा है। कथा हाल व श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए 50 कमरे बनाए गए हैं। बीते माह नींव की खोदाई करते समय प्राचीन कुआं निकला था। बताया जाता है कि महाभारत काल में वनवास के दौरान पांडव हस्तिनापुर से चलकर पहली बार शुकतीर्थ नगरी में रुके थे। यहां पर द्रौपदी ने इसी कुएं से पानी लेकर भोजन बनाया था।