सियासी उथल-पुथल के बीच दिलचस्प होगा संग्राम

सियासी वैतरणी के ठहरे हुए पानी में कंकरों की उछाल ने धार के रुख का अदलना-बदलना शुरू कर दिया है। राजनीतिक शतरंज पर मोहरों के एक के बाद एक होते पाला बदल के खेल को नए समीकरणों के आगाज के तौर पर देखा जाने लगा है। मंगलवार को कांग्रेस के कद्दावर और किसान राजनीति का बड़ा चेहरा हरेंद्र मलिक ने कांग्रेस से किनारा कर इस अंदेशे को और पुख्ता कर दिया। उनके पुत्र और दो बार के विधायक रहे पंकज मलिक ने भी कांग्रेस की तरफ हाथ हिलाकर बाय-बाय बोल दिया। इससे पहले भी जिले की सियासी शतरंज पर कई मोहरे घोड़े वाली ढाई चाल चलकर सबको चौंका चुके हैं। हालांकि मुखालिफ खड़े सियासी सूरमाओं की चहलकदमी सत्ताधारी दल के खेमे में चिता बढ़ाने का सबब बन गई है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Oct 2021 11:49 PM (IST) Updated:Tue, 19 Oct 2021 11:49 PM (IST)
सियासी उथल-पुथल के बीच दिलचस्प होगा संग्राम
सियासी उथल-पुथल के बीच दिलचस्प होगा संग्राम

मुजफ्फरनगर, मनीष शर्मा। सियासी वैतरणी के ठहरे हुए पानी में कंकरों की उछाल ने धार के रुख का अदलना-बदलना शुरू कर दिया है। राजनीतिक शतरंज पर मोहरों के एक के बाद एक होते पाला बदल के खेल को नए समीकरणों के आगाज के तौर पर देखा जाने लगा है। मंगलवार को कांग्रेस के कद्दावर और किसान राजनीति का बड़ा चेहरा हरेंद्र मलिक ने कांग्रेस से किनारा कर इस अंदेशे को और पुख्ता कर दिया। उनके पुत्र और दो बार के विधायक रहे पंकज मलिक ने भी कांग्रेस की तरफ हाथ हिलाकर बाय-बाय बोल दिया। इससे पहले भी जिले की सियासी शतरंज पर कई मोहरे घोड़े वाली ढाई चाल चलकर सबको चौंका चुके हैं। हालांकि मुखालिफ खड़े सियासी सूरमाओं की चहलकदमी सत्ताधारी दल के खेमे में चिता बढ़ाने का सबब बन गई है।

अलग-अलग राजनीतिक दलों में अपने रणनीतिक-राजनीतिक कौशल का मुजाहिरा कर चुके हरेंद्र मलिक राजनीति के मंझे हुए खिलाड़ी माने जाते हैं। वह वर्ष 1985 में पहली बार विधायक बने। चार बार वह खतौली व बघरा से विधायक रहे हैं। काफी समय तक वह सपा में भी रहे। वर्ष 2002 में इंडियन नेशनल लोकदल से राज्यसभा सदस्य चुने गए। हालांकि इनलो के तत्कालीन अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला से उनकी तल्खी किसान मसीहा चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की तेरहवीं के दिन जगजाहिर हो गई थी, जब ओमप्रकाश चौटाला ने तल्ख अंदाज में राज्यसभा के रास्ते की दास्तां सुनाई। इससे पहले वर्ष 2004 में बेटे पंकज मलिक के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए। इससे इतर पूर्व राज्यसभा सदस्य हरेंद्र मलिक इससे पहले समाजवादी पार्टी के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं। कृषि कानूनों के विरोध में किसान आंदोलन में हरेंद्र मलिक सक्रिय रहे।

अदला-बदली ने बदले सियासी समीकरण

विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजने के साथ ही राजनीतिक दलों में बदला-बदली की गतिविधियां तेज हो गई हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हरेंद्र मलिक से पहले कई दिग्गजों ने राजनीतिक चौला बदला है। बसपा से सांसद रहे कादिर राणा ने हाल ही में लखनऊ पहुंचकर सपा का दामन थामा है। इससे पहले पूर्व राज्यसभा सदस्य राजपाल सैनी ने भी बसपा को अदविदा करकर सपा की सदस्यता ग्रहण की। राजपाल सैनी के बेटे शिवान सैनी खतौली से विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। वहीं, बसपा के जिलाध्यक्ष रहे कमल गौतम पंचायत चुनाव के दौरान रालोद में शामिल हो गए थे। उन्होंने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए। एक सप्ताह पूर्व भाकियू के मंडल महासचिव और उत्तराखंड़ प्रभारी राजू अहलावत ने भाजपा की सदस्यता के साथ ही सियासी पगड़ंड़ी पर कदम बढ़ाए है।

दिग्गजों का पाला बदलना भाजपा के लिए चुनौती

राजनीतिक अखाड़े में सियासी पहलवानों ने दांव-पेंच दिखाने शुरू कर दिए हैं। इससे भाजपा सूरमाओं की परेशानी बढ़ गई है। पार्टी के लिए पांच साल पूर्व का इतिहास दोहराना आसान नहीं रहेगा। हालांकि अभी गठबंधन तय नहीं हुआ है, लेकिन दिग्गज गठबंधन को ध्यान में रखकर ही पाला बदल रहे हैं।

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