विरासत में मिली संपत्ति का करें सम्मान

देश से हम और हमसे देश बनता है। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में बुधवार के अंक में प्रकाशित हुई कहानी हमें इसी बात को बता रही है। संस्कारशाला की कहानी का विषय सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान है। इन लाइनों से ही ज्ञात होता है कि सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान हमें हर रूप में करना चाहिए। विरासत में मिली संपत्ति भी हमारे लिए सम्मानित होनी जरूरी है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 22 Sep 2021 11:24 PM (IST) Updated:Wed, 22 Sep 2021 11:24 PM (IST)
विरासत में मिली संपत्ति का करें सम्मान
विरासत में मिली संपत्ति का करें सम्मान

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। देश से हम और हमसे देश बनता है। दैनिक जागरण की संस्कारशाला में बुधवार के अंक में प्रकाशित हुई कहानी हमें इसी बात को बता रही है। संस्कारशाला की कहानी का विषय 'सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान' है। इन लाइनों से ही ज्ञात होता है कि सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान हमें हर रूप में करना चाहिए। विरासत में मिली संपत्ति भी हमारे लिए सम्मानित होनी जरूरी है।

केशवपुरी स्थित सरस्वती शिशु मंदिर इंटर कालेज के प्रधानाचार्य सुशील कुमार ने कहा कि - भू-लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल है। फैला मनोहर गिरि हिमालय और गंगाजल जहां। यह संपूर्ण देश का उत्कर्ष है। जहां ऋषि भूमि है, वह भारतवर्ष है। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्तजी की उक्त पंक्तियां भारत को परिभाषित करती हैं। भारत की परंपरा, रीति-रिवाज, मान्यता, सभ्यता और संस्कृति भारत को सर्वोच्च बनाती है। प्राचीनकाल से ही भारत की संस्कृति 'वसुधैव कुटुंबकम्' की भावना से प्रेरित रही है। यहां नदियों, पहाड़ों, पत्थरों व वृक्षों को भी देवतुल्य मान कर उनको आदर और सम्मान दिया जाता रहा है। इसलिए भारत को देवस्थान कहां गया है, परंतु आज पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में हम अपनी प्राचीन संस्कृति के गौरव को भूलकर अपनी सभ्यता-संस्कृति के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हमारे वृक्ष, हमारी नदियां, हमारे पूजा स्थल, जिनको हमारे पूर्वजों ने संजोकर विरासत में हमें प्रदान किया था ताकि हम उनसे अमृत्व प्राप्त कर सकें, उनको हम कहीं न कहीं नुकसान पहुंचाने लगे हैं। आज देश से पहले हम अपने बारे में सोच और विचार करते हैं, परंतु देश हमें सब कुछ देता है। इसलिए हम भी अगली पीढ़ी को कुछ न कुछ देना सीखें और इसके लिए काम करें। इन पंक्तियों को चरितार्थ करते हुए हमें अपनी सार्वजनिक संपत्ति का सदैव सम्मान करना चाहिए। हमें विरासत में मिली अपनी समस्त संपत्ति को अपनी अगली पीढ़ी को विरासत में देने की सोच रखनी चाहिए। इस सोच को अपने अंदर पैदा करने की हमें बहुत आवश्यकता है। यदि हम उसको बढ़ा नहीं सकते तो कम से कम हमें जैसा प्राप्त होता है वैसा अगली पीढ़ी को देना चाहिए। उन्होंने कहा कि सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखने की सोच हमें बच्चों को शुरू से देनी चाहिए, ताकि वह देशहित सोचकर देश के लिए काम करते हुए आगे बढ़ें। वहीं संस्कारशाला की कहानी में ईमानदार अफसर के बच्चे के पास काम की वस्तुएं पुरानी होने के बाद भी उनकी कीमत समझने की बात सिखाई गई है, जो आज के समय में हर बच्चे को समझनी जरूरी है। अर्थात् देश में कितने भी नए आविष्कार से बाजार में नए सामान आ जाएं यदि आपके पास पुराना सामान उपयोगी है और वह आपके काम को पूरा कर रहा है तो हमें उसको वेस्ट नहीं करना चाहिए। चलती हुई वस्तु चाहे टीवी, घड़ी सहित कंप्यूटर आदि हो, उनको उपयोगी बनाकर काम करना भी देशहित में आता है। बच्चों को इसी प्रकार की आदतें डालनी जरूरी हैं, ताकि वह पुरानी वस्तुओं को बेकार समझकर न फेंकें।

- सुशील कुमार, प्रधानाचार्य, सरस्वती शिशु मंदिर इंटर कालेज, केशवपुरी

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