इच्छाओं को कम कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन: मुनि प्रणम्य

श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र वहलना में दशलक्षण महापर्व के चौथे दिन बुधवार को उत्तम शौच धर्म के तहत नित्य नियम अभिषेक शान्तिधारा एवं विधान-पूजन हुआ। मुनिश्री प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि इच्छाओं को कम कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन किया जा सकता है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 26 Aug 2020 11:58 PM (IST) Updated:Wed, 26 Aug 2020 11:58 PM (IST)
इच्छाओं को कम कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन: मुनि प्रणम्य
इच्छाओं को कम कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन: मुनि प्रणम्य

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र वहलना में दशलक्षण महापर्व के चौथे दिन बुधवार को 'उत्तम शौच' धर्म के तहत नित्य नियम अभिषेक, शान्तिधारा एवं विधान-पूजन हुआ। मुनिश्री प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि इच्छाओं को कम कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन किया जा सकता है।

श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र वहलना में दशलक्षण महापर्व पर मंदिर कमेटी महामंत्री राजकुमार जैन ने बुधवार को 'उत्तम शौच धर्म' की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि अहंकार तो पराई चीज है, विनयशील के लिए सब चीज सुलभ हैं। छल, कपट, मायाचारी, धोखा देने वाले अस्वस्थ रहते हैं। उत्तम शौच के बीच सरलता-सहजता होनी चाहिए। मनुष्य जितना सरल-सहज होगा, वह उतना ही खुश होगा। बनावटी जीवन जीने वाले हमेशा दुखी रहते हैं। कशाय, इच्छाओं की ज्वाला खतरनाक है। दशलक्षण धर्म में उत्तम शौच धर्म की व्याख्या की गई। संयम, त्याग की भावना है। नित्य नियम अभिषेक, शान्तिधारा एवं विधान पूजन करने वालों में सुबोध जैन, नीष जैन, विजय जैन, अभिषेक जैन, आदित्य जैन, विप्लव जैन, चन्द्र कुमार जैन, अमित जैन, दिनेश जैन आदि शामिल रहे।

पंचायती मंदिर जैन मिलन में मुनिश्री 108 प्रणम्य सागर महाराज ने ससंघ के सानिध्य में दशलक्षण महापर्व में बुधवार को उत्तम शौच धर्म पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस प्रकार मिट्टी का डला सिर पर नहीं रखा जा सकता, जब तक वह मिट्टी चिकनी होकर, अपने आसपास के वातावरण से लोभ छोड़कर चाक से ऊपर उठकर कलश नहीं बन जाती, तब तक उसे सिर के ऊपर नहीं रखा जा सकता। उसी प्रकार मनुष्य के उत्थान के लिए लोभ छोड़कर ऊपर उठना ही होगा। लोभ ही माया को जन्म देता है। मोह और कषाय आत्मा से जुड़ी हुई हैं। हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए सुबह (जन्म) से शाम (मृत्यु) तक दौड़ते रहते हैं, लेकिन कभी भी तृप्त नहीं होते। इच्छा एक वस्तु की पूरी हुई तो दूसरी की जागृत हो जाती है। हम लोभ और कषाय के कारण ही बच्चों जुड़े हैं और मंदिर जाते हैं। मुनिश्री के प्रवचन सुनते हैं, व्रत उपवास आदि करते हैं। उन्होंने कहा कि हमें अंतरंग शांति के लिए इच्छारहित बनने की कोशिश करनी चाहिए। इच्छाओं को सीमित कर ही उत्तम शौच धर्म का पालन कर सकते हैं।

इसी के साथ गुरुदेव का 46वां अवतरण दिवस भी भक्तिपूर्वक व सानंद मनाया गया। मुनिश्री के पाद प्रक्षालन, पूजन कर शास्त्र दान दिए गए। गुरुवार को महापर्व में उत्तम सत्य धर्म का पूजन होगा।

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