लोगों के मुंह में मिठास घोल रही लीची

खतौली क्षेत्र की लीची लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है। मंडियों और बाजारों में लीची की बहार है। बागों में पेड़ लीची के फसल से लदे हुए हैं। यहां पैदा होने वाली उम्दा किस्म की लीची की अन्य राज्यों से भी मांग है। बाहरी राज्यों में भी लीची भेजी जा रही है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 13 Jun 2021 11:30 PM (IST) Updated:Sun, 13 Jun 2021 11:30 PM (IST)
लोगों के मुंह में मिठास घोल रही लीची
लोगों के मुंह में मिठास घोल रही लीची

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। खतौली क्षेत्र की लीची लोगों के मुंह में मिठास घोल रही है। मंडियों और बाजारों में लीची की बहार है। बागों में पेड़ लीची के फसल से लदे हुए हैं। यहां पैदा होने वाली उम्दा किस्म की लीची की अन्य राज्यों से भी मांग है। बाहरी राज्यों में भी लीची भेजी जा रही है।

खतौली तहसील क्षेत्र के फुलत, चंदसीना, जावन, रायपुर नंगली, अंबरपुर, नावला व घनश्यामपुरा गांवों में बड़े क्षेत्रफल में लीची के बाग हैं। चंदसीना में कुंवर हर्षवर्धन सैकड़ों बीघा जमीन में लीची का बाग है। इसके अलावा अन्य गांवों में 30 से 50 बीघा तक किसान लीची के उत्पादक हैं। लगभग एक दर्जन गांवों में लीची की पैदावार होती है। सीजन में लीची का लाखों रुपये का कारोबार होता है। खतौली क्षेत्र में बीदाना, गोला, कलकत्ती व सुराही आदि किस्म की लीची पैदा होती है। लीची का सीजन तकरीबन 40 दिन का रहता है। दिल्ली-राजस्थान तक पहुंच रही

कस्बे की लीची का स्वाद दूर-दराज तक मशहूर है। यहां की लीची दिल्ली, गुरुग्राम, हरियाणा व राजस्थान के साथ आसपास के जिलों में भी आपूर्ति की जा रही है। बागवान शफवान पारा, यूनुस, दिलशाद व यामीन का कहना है कि लीची की आपूर्ति की खूब मांग आ रही है। लीची विदेशों में भी निर्यात की जा चुकी है। पशु-पक्षियों से करना पड़ता है बचाव

बागवानों को कहना है कि लीची की फसल को चमगादड़, तोते, गीदड़, गिलहरी व उदबिलाऊ आदि नुकसान पहुंचाते हैं। पशु-पक्षियों से बचाव के लिए बागबान दिन-रात रखवाली करते हैं। लीची की फसल को पशु-पक्षियों से बचाने के लिए पेड़ों के आसपास बारीक जाल लगाया जाता है।

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