जिले के पांच योद्धाओं ने दी थी कारगिल युद्ध में शहादत

कारगिल युद्ध को 22 वर्ष बीत चुके हैं। सरहद की रक्षा के लिए रणबांकुरों का बलिदान लोगों के दिलों में आज भी जिदा है। जिले के पांच योद्धाओं ने वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में आपरेशन विजय के दौरान दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 12:09 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 12:09 AM (IST)
जिले के पांच योद्धाओं ने दी थी कारगिल युद्ध में शहादत
जिले के पांच योद्धाओं ने दी थी कारगिल युद्ध में शहादत

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। कारगिल युद्ध को 22 वर्ष बीत चुके हैं। सरहद की रक्षा के लिए रणबांकुरों का बलिदान लोगों के दिलों में आज भी जिदा है। जिले के पांच योद्धाओं ने वर्ष 1999 के कारगिल युद्ध में 'आपरेशन विजय' के दौरान दुश्मन के छक्के छुड़ाते हुए अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया था। उनकी शौर्य गाथा नई पीढ़ी में प्रेरणा भर रही है। जिले में 26 जुलाई को कारगिल शहीदों की 22 वीं बरसी श्रद्धा के साथ मनाई जायेगी।

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नरेंद्र राठी ने पहाड़ी पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाए

कारगिल युद्ध में शहीद हुए बुढ़ाना के गांव इटावा निवासी नरेंद्र राठी ने दुश्मन के छक्के छुड़ाए। पांच जून को काक्षर की पहाड़ी पर दुश्मन सैनिकों ने उनकी टुकड़ी पर बम से निशाना साधा, जिसमें वह वीरगति को प्राप्त हुए। शहीद की पत्नी अनिता देवी को अपने पति की शहादत पर गर्व है।

--- बचन सिंह ने फतह की थी तोलोलिग की चोटी गांव पचेंड़ाकलां निवासी लांस नायक बचन सिंह को 12 जून 1999 में आपरेशन विजय के तहत उनकी बटालियन द्वितीय राजपूताना राइफल्स को तोलोंलिग की चोटी पर कब्जा करने का आदेश प्राप्त हुआ। चारों ओर से बरसती गोलियों के बीच लांस नायक ने अदम्य साहस दिखाते हुए अपने साथियों के साथ तोलोंलिग की चोटी पर विजय प्राप्त कर ली। शत्रु से लोहा लेते हुए बचन सिंह शहीद हो गए।

--- खालूबार शिखर पर शहीद हुए थे वीर रिजवान

बुढ़ाना क्षेत्र के गांव विज्ञाना निवासी शहीद रिजवान त्यागी को बटालिक सेक्टर में 22 ग्रेनेडियर्स को खालूबार शिखर पर प्वाइंट 4812 और 5287 के इलाके पर कब्जा करने का टास्क मिला था। तीन जुलाई को शाम छह बजे खालूबार शिखर पर दुश्मन की सेना से सामना हुआ, लेकिन बर्फ पड़ने से धुंध हो गई थी। ग्रेनेडियर रिजवान त्यागी ने दो साथियों के साथ 40-50 मीटर दक्षिण की तरफ दुश्मन पर जवाबी हमला बोल दिया। दोनों पैरों और दाहिने हाथ में गोली लगने से रिजवान घायल हो गये थे। इसके बावजूद गोला फेंकते गए और वीरगति को प्राप्त हुए।

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बेटे की शहादत पर गर्व भोपा क्षेत्र के गांव बेलड़ा निवासी अमरेश पाल 12 माहर रेजिमेंट में भर्ती हुए थे। कारगिल युद्ध में उन्होंने दुश्मनों से लोहा लेते हुए विजय पताका फहराई थी। दुश्मनों की गोली लगने से वीरगति को प्राप्त हुए। शहीद के पिता फूल सिंह व मां अतरकली अपने बेटे के खोने का गम भुला नहीं पाए हैं। बेटे का नाम आते ही उनकी आंखों में आंसू झलकने लगते हैं। वह कहते हैं कि बेटे ने देश के लिए शहादत दी, इसका गर्व भी है।

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सतीश ने दुश्मनों के दांत कर दिये थे खट्टे

खतौली क्षेत्र के गांव फूलत निवासी सतीश कुमार 238 इंजीनियर रेजिमेंट में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध में उन्होंने दुश्मनों से लोहा लेते हुए देश के लिए अपने प्राणों का न्यौछावर कर दिया। शहीद की पत्नी विमलेश को अपने पति की शहादत पर गर्व है। वह कहती है कि बेटा अतुल व बेटी रुपाली और झलक भी अपने पिता की तरह देश की रक्षा करेंगे।

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