अपनी और अपनों की जान बचानी है तो हाथ जुड़वाओ..घर चले जाओ

मनीष शर्मा मुजफ्फरनगर उष्टाणां च विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्धभा। परस्परं प्रशंसति अहो रूपम अहो ध्वनि ।। ऊंट की शादी में एक गधा गीत गा रहा था। गधा ऊंट से कह रहा है कि वाह..! आपका रूप सुंदर है और ऊंट कह रहा था कि वाह..! आपकी आवाज कितनी मधुर है। लेकिन हकीकत से हर कोई वाकिफ है। मुजफ्फरनगर में महासुभाषितसंग्रह का श्लोक फिलवक्त जीवंत है। सियासत और सिस्टम एक-दूसरे को मेहनतकश बताते हुए तारीफों के पुल बांध रहे हैं। जहां ऊंट और गधे के संवाद में तालियां बजाने वाले आप ही हैं। हालात ऐसे हैं कि तालियां बजाते-बजाते कब आपके आंसू निकल पड़ेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। सोचना आपको है। अस्पतालों में न बेड हैं और न ही आक्सीजन। श्मशानों में चिता की अग्नि शांत नहीं हो रही है जबकि कब्रिस्तानों में खुदाई एडवांस है। अपनी और अपनों की जान बचानी है तो हाथ जुड़वाओ और घर चले जाओ। भलाई इसी में है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 10 May 2021 11:43 PM (IST) Updated:Mon, 10 May 2021 11:43 PM (IST)
अपनी और अपनों की जान बचानी है तो हाथ जुड़वाओ..घर चले जाओ
अपनी और अपनों की जान बचानी है तो हाथ जुड़वाओ..घर चले जाओ

मनीष शर्मा, मुजफ्फरनगर

उष्टाणां च विवाहेषु गीतं गायन्ति गर्धभा।

परस्परं प्रशंसति अहो रूपम अहो ध्वनि: ।।

ऊंट की शादी में एक गधा गीत गा रहा था। गधा ऊंट से कह रहा है कि वाह..! आपका रूप सुंदर है और ऊंट कह रहा था कि वाह..! आपकी आवाज कितनी मधुर है। लेकिन, हकीकत से हर कोई वाकिफ है। मुजफ्फरनगर में महासुभाषितसंग्रह का श्लोक फिलवक्त जीवंत है। सियासत और सिस्टम एक-दूसरे को मेहनतकश बताते हुए तारीफों के पुल बांध रहे हैं। जहां ऊंट और गधे के संवाद में तालियां बजाने वाले आप ही हैं। हालात ऐसे हैं कि तालियां बजाते-बजाते कब आपके आंसू निकल पड़ेंगे कुछ कहा नहीं जा सकता। सोचना आपको है। अस्पतालों में न बेड हैं और न ही आक्सीजन। श्मशानों में चिता की अग्नि शांत नहीं हो रही है, जबकि कब्रिस्तानों में खुदाई एडवांस है। अपनी और अपनों की जान बचानी है तो हाथ जुड़वाओ और घर चले जाओ। भलाई इसी में है।

रविवार रात शहर के एक निजी अस्पताल में आक्सीजन खत्म होने से दर्जनों मरीजों की जान पर बन आई। क्या यह आक्सीजन एकाएक खत्म हुई होगी। क्या डाक्टरों को जरा भी अंदाजा नहीं हुआ कि उनके पास कितना बैकअप है? अगर नहीं तो समझ लीजिए कि आपकी और आपके अपनों की जान किनके हाथों में है। हालांकि, अस्पताल का दावा है कि उन्होंने रात में ही चार घंटे की आक्सीजन रहने की बात तीमारदारों को बता दी थी। कई तीमारदारों ने साफ कहा कि उन्होंने छोटे अफसरों से लेकर डीएम तक के फोन कई-कई बार मिलाए, लेकिन फोन नहीं उठा। सिक्के का दूसरा पहलू और भी घिनौना है। कोरोना की जद में आने पर मुजफ्फरनगर मेडिकल कालेज में मरीज को भर्ती कराना जंग जीतने से कम नहीं। यहां के एक जिम्मेदार अधिकारी का वैसे तो फोन उठता नहीं। अगर गलती से उठ भी गया तो वह अपना ताअरुफ्फ खुद को प्रधानमंत्री और गृहमंत्री का करीबी बताकर करने के बाद कुछ सुनते हैं। इन महाशय ने पिछले दिनों एक मंत्री को मरीज को भर्ती करने की सिफारिश पर ऐसा झिड़का कि मंत्री जी की बोलती बंद हो गई। अब सोचिए कि हालात किस कद्र बिगड़ चुके हैं। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक तो सब ठीक है। श्मशान घाटों में रात दस बजे तक होते शवों के अंतिम संस्कार असलियत बयां करने और चेताने के लिए काफी हैं। अगर आप अब भी नहीं संभले तो भगवान ही आपका रखवाला है।

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कोविड अस्पताल नोच डालेंगे

कभी खाली तो कभी भरे सिलेंडर के लिए मारामारी मची है। ज्यादातर लोग होम आइसोलेशन में हैं, लेकिन जरा-सी चूक ने अस्पताल का रास्ता दिखाया तो निजी कोविड अस्पताल नोच डालने के लिए बेताब हैं। अस्पताल में किसी तरह बेड का इंतजाम हो भी गया तो डेढ़ से दो लाख रुपये जाते ही जमा कराने होंगे। भीतर मरीज को कुछ मिलेगा या नहीं, जिदा बचेगा या नहीं, ऊपर वाला ही जानता है। हालांकि, शासन-प्रशासन ने 11 हजार रुपये रोजाना की दर तय की है। ऐसा नहीं कि हुक्मरानों को जानकारी नहीं। बस उन्हें इंतजार है तो ''लिखित शिकायत'' का। ''अहो रूपम अहो ध्वनि:'' के इस बेसुरे आलाप में जान पर आपकी बनी है तो अपनी जान बचाइए..!

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