बुढ़ाना तहसील पर क्रांतिकारियों ने कर लिया था कब्जा

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बुढ़ाना क्षेत्र के रणबांकु़रे भी पीछे नहीं रहे। बुढ़ाना तहसील के गांव परासौली में जमींदार खैराती खां ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए टैक्स और मालगुजारी देने से इन्कार कर अंग्रेजों को खदेड़ दिया था। इसका असर यह हुआ कि खैराती खां और जौला गांव के मीर पठान के नेतृत्व में क्षेत्र के लोगों ने तहसील पर कब्जा कर लिया और गोरों को पीठ दिखाकर भागना पड़ा था।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 12 Aug 2020 11:52 PM (IST) Updated:Thu, 13 Aug 2020 06:09 AM (IST)
बुढ़ाना तहसील पर क्रांतिकारियों ने कर लिया था कब्जा
बुढ़ाना तहसील पर क्रांतिकारियों ने कर लिया था कब्जा

मुजफ्फरनगर, संदीप चौधरी।

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में बुढ़ाना क्षेत्र के रणबांकु़रे भी पीछे नहीं रहे। बुढ़ाना तहसील के गांव परासौली में जमींदार खैराती खां ने अंग्रेजों का विरोध करते हुए टैक्स और मालगुजारी देने से इन्कार कर अंग्रेजों को खदेड़ दिया था। इसका असर यह हुआ कि खैराती खां और जौला गांव के मीर पठान के नेतृत्व में क्षेत्र के लोगों ने तहसील पर कब्जा कर लिया और गोरों को पीठ दिखाकर भागना पड़ा था।

मेरठ में 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का आगाज होने के बाद आसपास के जनपदों में तेजी से क्रांति का सूत्रपात हुआ। इसी क्रम में मुजफ्फरनगर के बाशिदों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह तेज कर दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में बुढ़ाना तहसील क्षेत्र भी पीछे नहीं रहा। क्षेत्र के गांव परासौली में जमींदार खैराती खां के नेतृत्व में लोगों ने विदोह कर दिया था और सरकारी देय व मालगुजारी देने से इन्कार कर दिया था।

छीन लिए थे अंग्रेजों के घोड़े

परासौली में विद्रोह की खबर पाकर अंग्रेज अधिकारियों ने पुलिस और घुड़सवार सैनिकों को विद्रोह का दमन करने के लिए भेजा था। इस दौरान भयंकर युद्ध हुआ और क्षेत्र के लोगों ने अंग्रेज सैनिकों के घोड़े तक छीन लिए थे और उन्हें पीट-पीटकर भगा दिया था। परसौली में फिरंगियों के पीठ दिखाकर भागने से क्षेत्र के लोगों का हौसला बढ़ गया था और विद्रोह की चिगारी तेजी से भड़क उठी थी।

तहसील पर कर लिया था कब्जा

परासौली में सरकारी अमले को भगाने के बाद खैराती खां और जौला गांव के मीर खां पठान के नेतृत्व में क्षेत्र के लोगों ने हमला कर बुढ़ाना तहसील पर कब्जा कर लिया था। अचानक हुए हमले के कारण फिरंगियों को विरोध करने का भी मौका नहीं मिला था। गांव जसाला के गुर्जरों ने भी इस हमले में पूरा साथ दिया था।

तहसीलदार ने शाहपुर में छुपकर बचाई थी जान

हमले के दौरान तहसीलदार बुढ़ाना भाग खड़ा हुआ था। उसने शाहपुर में एक पठान के घर छुपकर जान बचाई थी। उक्त पठान ने एक अंग्रेज युवती को भी अपने यहां शरण देकर अंग्रेजों के प्रति अपनी वफादारी दिखाई थी।

वीरांगनाओं ने भी दी थी प्राणों की आहुति

गंगा-जमुनी तहजीब की मिसाल जनपद में आजादी के लिए महिलाओं ने भी अपने प्राणों की आहुति दी थी। उस समय शामली और मुजफ्फरनगर एक ही जनपद था। शामली जिले की तहसील थी। स्वतंत्रता संग्राम में कैराना क्षेत्र की रहने वाली आशा देवी गुर्जर ने अंग्रेजों के खिलाफ नवयुवतियों की टोली बनाकर लड़ाई शुरू कर दी थी। आशा देवी के अलावा बसेड़ा कैराना की रहने वाली बख्तावरी देवी, भगवती देवी त्यागी, हबीबा खातून, शोभादेवी, मामकौर, भगवानी देवी, इंदरकौर, जमीला पठान, रहीमों राजपूत, राजकौर, रणबीरी वाल्मिकी आदि वीरांगनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई थी। कई वीरांगना संग्राम में अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते वीरगति को प्राप्त हो गई थी और पकड़े जाने पर 255 वीरांगनाओं को फांसी दी गई थी। इसके अलावा थानाभवन की काजी खानदार की असगरी बेगम को अंग्रेजों ने जिदा जला दिया था।

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