खेत में रूठ गयी उम्मीदों की किस्मत, लॉकडाउन रौंद गया योजनाओं का बाजार Moradabad News
खेत में सब्जी छोड़ घरों को लौट रहे किसान। लॉकडाउन के कारण किसानों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना से हर क्षेत्र प्रभावित है।
मुरादाबाद (आशुतोष मिश्र)। यहां हसरतों का जहां लुट गया। अब हरियाली समृद्ध करने वाले हैं किसान जार-बे-जार हैं। शहर को भारी मात्रा में मौसमी सब्जी देने वाले किसान शहर की बेरुखी से दुखी हैं। उनका उत्पाद माटी के मोल हो गया है। हर बार की तरह खेतों में सब्जी की खेती लहलहाई,लेकिन वक्त ने इनकी हसरत मिट्टी में मिला दी।
यह किसी सिनेमा की पटकथा नहीं है बल्कि, रामगंगा की तलहटी में सब्जी और फलों की खेती करने वालों की जिंदगी का सच है। लॉक डाउन ने सब्जियों की खेती करने वालों को ऐसी पटकनी दी है कि वह खुलकर कराह भी नहीं सकते। कारण यह कि किसानों ने जमा पूंजी नदी के रेतीली मिट्टी में लगा दी। हरियाली भी आई, फसल उगी और सब्जियां भी आईं। लेकिन उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है। मिट्टी से जुड़े इन किरदारों की तकदीर ही मिट्टी- मिट्टी हो गई है।
बाजार ने दे दिया धोखा
प्रेम नगर का राजू और उसका पूरा कुनबा शुरू से राम गंगा के तट पर अपना आशियाना बना लिया । राजू के कुनबे ने ठेके पर 50 बीघा जमीन ली है। सोचा कि मेहनत करेंगे और सब्जियों से अपनी तकदीर में चार चांद लगाएंगे। शुरुआत में हुआ भी सब अच्छा। 30 बीघे में सब्जी और 20 बीघे में गेहूं की फसल की तैयारी हुई। गेहूं की पौध अच्छी आई लेकिन, बेहिसाब बारिश और मौसम की मार ने गेहूं की कमर तोड़ डाली। 30 बीघे में तोरई, करेला, लौकी, मिर्च, खीरा, टमाटर और काशीफल कि पैदावार भी शानदार हुई, लेकिन बाजार धोखा दे गया। राजू का कहना है कि पिछले 30 साल से हमारा घर इसी काम में जीता है लेकिन, पहली बार इतने खराब दिन देखने पड़े।
मजदूरी का भी पैसा निकाल पाना मुश्किल
राजू का कहना है कि 30 बीघे जमीन के लिए 90 हजार रुपये काश्तकार को चुकाना है। इतनी खेती में तीन लाख रुपए की लागत आई है। परिवार भर के लोगों का छह महीने का श्रम अलग से है। अब हालत यह है कि खेत में तैयार सब्जी माटी के मोल बिक रही है। हरा मिर्च, काशीफल, टमाटर और तुरई में अलग से मजदूरी का भी पैसा नहीं बच रहा है। साहूकार खेत से दो रुपए किलो किलोग्राम काशीफल, 7 रुपये मिर्च, 5 रूपए तरोई, चार रूपए करेला, 5 रुपये खीरा और टमाटर दो से तीन रूपए खरीद रहे हैं। अब हमारी मजबूरी हो गई है। बहुत सारी सब्जी खेत में ही छोड़ दें। तुरई, टमाटर और हरा मिर्च तोडऩे तक का पैसा नहीं निकल पा रहा है। यह पहली बार हुआ है कि लहलहाती फसल होने के बाद हम खाने को मोहताज हैं। ठेके पर ली गई जमीन का पैसा चुकाना ही है। मौसम ने अबकी रवि की फसल बर्बाद की और लॉकडाउन ने पूरा कारोबार चौपट कर दिया। मेरे इस खानदानी काम में पहला ऐसा अवसर आया है कि कुछ भी सूझ नहीं रहा है। अबकी राम गंगा का पानी डरा रहा है और आंखों के सामने टमाटर, तोरई, काशीफल और खीरा बर्बाद होना देख रहे हैं।