Rampur Hunar Haat : कमाल का हुनर, हरियाणा के सुरेंद्र ऊंट की खाल से तैयार कर रहे खूबसूरत जूते

Rampur Hunar Haat लैदर के जूते बनाना सुरेंद्र का पुश्तैनी काम है। इनके दादा और परदादा भी जूते बनाते रहे हैं। लेकिन सुरेंद्र ने इस कारीगरी को और खूबसूरत रूप बना दिया है। वह बहुत सुंदर जूते बनाते हैं। प्योर लैदर के जूते तैयार करते हैं।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Sat, 23 Oct 2021 11:48 AM (IST) Updated:Sat, 23 Oct 2021 11:48 AM (IST)
Rampur Hunar Haat : कमाल का हुनर, हरियाणा के सुरेंद्र ऊंट की खाल से तैयार कर रहे खूबसूरत जूते
हरियाणा के हिसार से रामपुर हुनर हाट में आए सुरेंद्र की कारीगरी है कमाल की।

मुरादाबाद [मुस्लेमीन]।  Rampur Hunar Haat : हरियाणा के ह‍िसार ज‍िले से रामपुर हुनर हाट में आए सुरेंद्र कुमार के हाथों की कारीगरी कमाल है। वह ऊंट की खाल पर खबूसूरत फूल पंखुड़ी बनाते हैं और फिर इसी से जूते तैयार करते हैं। जूतों पर सुंदर डिजाइन देख ग्राहक भी खिंचे चले आते हैं। उनके स्टाल पर ग्राहकों की भी भीड़ लगी रहती है। लैदर के जूते बनाना सुरेंद्र का पुश्तैनी काम है। इनके दादा और परदादा भी जूते बनाते रहे हैं। लेकिन, सुरेंद्र ने इस कारीगरी को और खूबसूरत रूप बना दिया है। वह बहुत सुंदर जूते बनाते हैं। प्योर लैदर के जूते तैयार करते हैं। वह ज्यादातर जूते ऊंट की खाल से बनाते हैं।

बताते हैं कि 180 रुपये किलो क्लीन खाल खरीदते हैं। इसके बाद इसे कटिंग करते हैं। इसपर अपने हाथ से डिजाइनिंग कर फूल पंखुड़ी बनाते हैं। ऐसा करने के बाद जूते तैयार करते हैं। उनके परिवार में छह सदस्य हैं और सभी लैदर के जूते बनाते हैं। जूते बनाने का सारा काम हाथ से करते हैं। इनके स्टाल पर 250 रुपये से लेकर 600 रुपये तक का जूता है। सुरेंद्र का कहना है कि यहीं जूता मार्केट में एक हजार से ज्यादा में मिलता है। बड़े शोरूम पर तो इसकी कीमत कई गुना ज्यादा वसूली जाती है। हुनर हाट में कोई टैक्स नहीं लिया जा रहा है, इसलिए यहां सामान भी सस्ता मिल रहा है।

हुनर हाट से बढ़ा कारोबार : सुरेंद्र कहते हैं कि भारत सरकार का अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय हुनर हाट का आयोजन कर बहुत ही अच्छा काम कर रहा है। इसे और बढ़ावा देने की जरूरत है। इससे दस्तकारों और शिल्पकारों को बड़ा फायदा हुआ है। उनके हुनर को पहचान मिली ही है। उनका कारोबार भी बढ़ा है। अब बाहर से भी उन्हे आर्डर मिलने लगे हैं। पहले वह अपने इलाके में ही बेच पाते थे। कुछ दुकानदार जूते खरीदते थे जो दाम तय करने में मनमानी करते थे। लेकिन, अब ऐसा नहीं है। अब वह खुद अपनी मर्जी से दाम तय करते हैं।

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