पश्चिमी सभ्यता को छोड़कर ग्रहण करे अपने संस्कार व संस्कृति
असमोली थाना क्षेत्र के गांव सैदपुर जसकोली में सातवें दिन की कथा सुनाते हुए आचार्य विजय स्वरूप ने कहा की संस्कार ही मनुष्य की सफलता का मूल आधार है। अपने संस्कार संस्कृति सभ्यता पूरे संसार में सबसे श्रेष्ठ है।
सम्भल, जेएनएन। असमोली थाना क्षेत्र के गांव सैदपुर जसकोली में सातवें दिन की कथा सुनाते हुए आचार्य विजय स्वरूप ने कहा कि संस्कार ही मनुष्य की सफलता का मूल आधार है। अपने संस्कार, संस्कृति, सभ्यता पूरे संसार में सबसे श्रेष्ठ है। आज लोग पश्चिमी सभ्यता की अंधी दौड़ में अपने संस्कार को भूलने लगे है और इस कारण ही हमारा खाना, पहनावा सब अपने संस्कारों के विपरीत है। हमारा व्यवहार पश्चिम के रंग में रंगने लगा है। हमारे देश की देव संस्कृति और देवताओं जैसा व्यवहार है। परोपकार, सब की सेवा, सबका सम्मान, सबका सहयोग, समरसत्ता, संवेदना समंजस्य, सौहार्द, सरलता, दया, क्षमा यह हमारे संस्कार हैं। उन्होंने कहाकि हमारे जीवन में यह सभी गुण होंगे तभी जीवन महान बनेगा। आज लोग पशुओं जैसा जीवन जी रहे हैं। मां, बहन, बेटी, बड़े छोटे को पशु न माने इसी प्रकार मनुष्य है। कलयुग में अपने धर्म ग्रंथ एवं इतिहास को पढऩा और अपने शास्त्रों के अनुसार जीवन जीना चाहिए। आज की संतान माता-पिता को जवाब देती है बड़ों के प्रति सम्मान नहीं यह संस्कारों का पतन है। आचार्य विजय स्वरूप ने सभी युवा भाई बहनों से कहा आज ही इन विचारों को अपना लो और अपने माता-पिता को लौटकर जवाब नहीं देना चाहिए। कुछ कहना है तो सभ्यता के साथ सुझाव दें, ऊंचे स्वर में माता-पिता से बात नहीं करें। जो माता-पिता का सम्मान रखते हैं उसी से भगवान प्रसन्न होते हैं। उसी को सब देव शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस कथा को सुनकर हस्तिनापुर के धर्म सम्राट राजा परीक्षित ने सात दिन शुक्रताल में कथा सुनी और परीक्षित जी की परमगति हो गई देवताओं ने परीक्षित के ऊपर फूलों की वर्षा की।