International Day Against Drug Abuse : नशे की चपेट में युवा, घनी आबादी वाले मेडिकल स्टोर पर बिक रहीं नशीली दवाएं
ड्रग्स अफीम और स्मैक की जगह अब कुछ दवाओं ने ले ली है। युवा इन दवाओं की लत का शिकार हो रहे हैं। शहर की घनी आबादी वाले मेडिकल स्टोरों पर धड़ल्ले से नशीली दवाएं देकर युवाओं की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है।
मुरादाबाद, जेएनएन। ड्रग्स, अफीम और स्मैक की जगह अब कुछ दवाओं ने ले ली है। युवा इन दवाओं की लत का शिकार हो रहे हैं। शहर की घनी आबादी वाले मेडिकल स्टोरों पर धड़ल्ले से नशीली दवाएं देकर युवाओं की जिंदगी से खिलवाड़ किया जा रहा है। इस बार नशारोधक दिवस पर भी कोई जागरूकता कार्यक्रम नहीं हो रहा है। कोरोना काल से पहले स्वयं संस्थाओं आदि की ओर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था। लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो रहा है।
नशीली दवाओं की रोकथाम के लिए औषधि प्रशासन की टीम मेडिकल स्टोर पर छापामार अभियान चलाकर नशीली दवाओं की रोकथाम के लिए काम करती है। कोरोना ही दूसरी लहर में हालात ये रहे कि दवा के साथ उपकरणों के दाम कंट्रोल करने में पूरा तंत्र सक्रिय रहा। घनी आबादी वाले मेडिकल स्टोर से युवाओं को नशीली दवा देने का काम जारी रहा। सौ रुपये वाला डबल दाम में बेचा गया। अभी भी स्थिति यही है। संक्रमितों की संख्या कम होने के बाद भी मेडिकल स्टोर की चेकिंग नहीं की गई। अधिकतर वारसी नगर, प्रिंस रोड, करूला, लाइनपार आदि क्षेत्रों में नशाखोर को पहचानने के बाद ही नशीली दवा दी जाती है।
दिमाग पर पड़ता है असर : मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. नीरज गुप्ता ने बताया कि नशीली दवाओं का इस्तेमाल करने वाले युवाओं के दिमाग पर इसका पूरा असर पड़ता है। उनके सोचने-समझने की क्षमता भी कम हो जाती है। समय से इलाज होने पर उनकी समस्या कम हो जाती है। नशामुक्ति केंद्रों में भी उन्हें इलाज देकर स्वस्थ करने का प्रयास किया जाता है लेकिन, वापस आने के बाद फिर दोबारा यही स्थिति रहती है।
नशे वाली दवाओं की बिक्री पर रोक लगाने के लिए लगातार छापामार कार्रवाई की जा रही है। प्रयास किया जाता है कि किसी भी मेडिकल स्टोर पर नशीली दवाएं नहीं बेची जा सकें।
मुकेश कुमार जैन, औषधि निरीक्षक