Independence Day : देश के लिए बोलना ही आजादी है, तब अंग्रेजों से डरते थे लोग
जिगर कालोनी के रहने वाले 83 वर्षीय राधारमण ने देखी थी आजादी की पहली सुबह। उस दौर के कई संस्मरण आज भी उनके दिमाग में बने हुए हैं।
मुरादाबाद। आज लोग अपने देश के लिए खड़े हैं, उसके लिए बोल रहे हैं। वक्त आने पर उसके लिए लड़ भी रहे हैं। यही तो आजादी है, जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिया था। नहीं तो वह भी वक्त था जब अपने ही देश के लिए बोलने पर भी अंग्रेजों का डर था। यह कहना है जिगर कालोनी निवासी 83 वर्षीय राधा रमण गुप्ता का। उन्होंने आजादी के सुबह देखी थी, उनके जेहन में उस सुबह की धुंधली यादें आज भी जिंदा हैं।
चार अप्रैल 1937 में जन्मेंं राधारमण आजादी के वक्त महज दस साल के थे और अपने माता-पिता के साथ पीलीभीत में रहते थे। कपड़े और बर्तन की दुकान थी। आजादी की बात करते ही उनकी आंखे चमक उठती हैं और बूढ़ी हो चुकी जुबान भी नौजवानों की तरह बातें करने लगती है। उस समय को याद करते हुए वह बताते हैं आजादी के दिन का नजारा ही अलग था। लोग, खुश थे और उनकी खुशी में ईमानदारी झलक रही थी क्योंकि, इस आजादी के लिए हर किसी ने बहुत कुछ बलिदान किया था। आगे बताते हैं कि उन्हेंं याद है कि उस समय जो भी व्यक्ति देश के लिए काम करता था, उसे पारिवारिक समस्याओं से दूर रखा जाता था। जिससे, उसका पूरा ध्यान देश पर ही रहे।
हमें मिटानी होगी आपस की लड़ाई
राधा रमण कहते हैं कि आजादी से पहले लोग देश हित की बात कहते हुए भी डरते थे। कयोंकि अंग्रेजी सरकार उन्हेंं सजा देती थी, इसलिए सारे काम चोरी छुपे होते थे। हमारे पूर्वजों ने इसी आजादी के लिए कई जानें कुर्बान करीं हैं। यही कारण है कि हम अब कुछ भी बोल सकते हैं और कर सकते हैं। लेकिन, हमें आपस की लड़ृाई खत्म करनी होगी। एक दूसरे के प्रति गलत भावना खत्म करनी होगी। क्योंकि, हमारे सेनानी कभी नहीं चाहते थे कि भारत के लोग आपस में ही लड़ें।