Independence Day : अंग्रेजों के घोड़ों की टॉप सुनकर सहम जाते थे मुरादाबाद के लोग

Independence Day History Importance and Significance अंग्रेजों का जमाना देख चुके लोग आज भी गुलामी की बात करते ही सहम जाते हैं। उन्‍हें अंग्रेजों के हर जुल्‍म याद हैं।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Sat, 15 Aug 2020 04:48 PM (IST) Updated:Sat, 15 Aug 2020 04:48 PM (IST)
Independence Day : अंग्रेजों के घोड़ों की टॉप सुनकर सहम जाते थे मुरादाबाद के लोग
Independence Day : अंग्रेजों के घोड़ों की टॉप सुनकर सहम जाते थे मुरादाबाद के लोग

मुरादाबाद (मोहसिन पाशा)। अंग्रेजी हुकूमत को मैंने बहुत करीब से देखा है। उस समय मेरी उम्र करीब 25 साल थी। हिंदुस्‍तान के लोगों के गुलामों जैसे सुलूक किया जाता था। हमारे गांव में अंग्रेजों का सिपाही घोड़े पर सवार होकर आता था। खौफ इतना था कि उनके घोड़ों की टॉप के आवाज सुनकर ही लोग घरों में दुबक जाते थे। हमारे बुजुर्गों ने देश की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी दी है। इसलिए आज हम आजादी के सांस ले रहे हैं। किसी का खौफ नहीं है। आजादी के बाद हिंदुस्‍तान  तेजी से बदल रहा है। सड़कें बनी हैं और गांवों में खुशहाली आई है। 

मुरादाबाद के सम्भल रोड स्थित फत्तेहपुर खास गांव के 95 साल के बुजुर्ग शौकत अली से हमारी बात हुई। कहने लगे हमने अंग्रेजों का दौर देखा है। वह तो हिंदुस्‍तान  के लोगों को दुश्मन की तरह देखते थे। आम आदमी पर बहुत जुल्म होता था। कुछ चापलूस लोग ही उनके खास हुआ करते थे। देश की आजादी के बाद 1952 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ। सम्भल के ताहरपुर गांव में मंगलवार को लगने वाला बाजार ही ग्रामीण इलाके के लोगों के लिए जरूरी सामान खरीदने का जरिया था। दूधिया मंगलवार को दूध का पैसा बांटा करते थे। इसलिए हर गांव का व्यक्ति जरूरी सामान खरीदने बाजार पहुंचता था।

जवाहर लाल नेहरू की सभा 

मैं भी अपने वालिद के साथ हर बाजार को जाता था। इसी बाजार में चुनावी सभा हुई थी। इस दौरान मैंने पंडित जवाहर लाल नेहरु को पहली बार देखा था। उनका जोशीला भाषण सुनकर लगा था कि हम अब पूरी तरह से आजाद हैं। हाजी अबरार हुसैन और हाजी खलील अहमद का क्रेशर था। वह और उनके भाई सराफत हुसैन क्रेशर में कच्ची खांड बनाने का काम करते थे। वक्त के साथ सबकुछ बदलता चला गया। चीनी मिलें लगने पर क्रेशर खत्म हो गया। अब तो देश तेजी के साथ आगे बढ़ा है। शहर ही नहीं गांव की हर गली भी पक्की बन गई है। वरना चौमासे (बरसात का मौसम) में गांवों में घरों से निकलना ही मुश्किल होता था। लोग अनाज से बदले घर का जरूरी सामान दुकानों से खरीदते थे। हमारे गांव में उस समय लाला ओमप्रकाश गुप्ता की दुकान हुआ करती थी। उनके भाई गुलशन भी किराने की दुकान थी। करीब 30 साल पहले इन दोनों की परिवारों ने गांव छोड़ दिया। लेकिन, इनके परिवार के लोगों से आज भी पूरे गांव का लगाव है। 

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