Independence Day : आजादी के पहले दिन दीपावली, होली एक साथ मनाई गई
Independence Day History Importance and Significance
सम्भल, जेएनएन।आज पूरा देश आजादी के 74 वे वर्ष का जश्न मनाने की तैयारी रहा है। हर कोई नीले आसमान के नीचे स्वतंत्र सांसेंं ले रहा हैं। न कोई बंधन न कोई रोक- टोक हर किसी को हर चीज की आजादी है, लेकिन जिस दिन देश आजाद हुआ और लोगोंं ने आजादी की पहली सांस ली तो लोगों को उन बीरों की याद आई जिन्होंने ने आजादी के लिए हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। आजादी की पहली सुबह पूरा शहर आजादी के जश्न में डूबा हुआ था। हर तरफ ढोल ताशों के साथ देश भक्ति के गीतों की धूम थी। उस दिन सभी धर्मो के लोग एक साथ आतिशबाजी छोड़ व एक दूसरे को आबिर गुलाल लगाकर आजादी की खुशी मना रहे थे। आजादी के पहले दिन पूरा शहर दूल्हन की तरह सजा हुआ था। ऐसा लगा रहा था कि दीपावली, होली आदि सभी त्योहार एक साथ हो।
नगर के मोती मुहल्ला निवासी (90) वर्षीय लाला श्रीगोपाल ने बताया कि जब देश आजाद हुआ तो उसकी उम्र 15 वर्ष की थी। आजादी की पहले दिन सुबह से हर तरफ जश्न मनाया जा रहा था। नगर की प्रमुख सड़कों के साथ गली मुहल्लों की सड़कों के दोनों ओर चूना पड़ा हुआ। हर कोई आपस में गले मिल रहे थे और सभी बस एक ही बात कर रहे थे कि वर्षो बाद अंग्रेजों की गुलामी के बाद आजादी की सांस मिली है। हर तरह ढोल, ताशे व आतिशबाजी की गूंज आ रही थी। पूरे शहर में युवाओं की टोली गली मुहल्लों के साथ पूरे शहर की सड़कों पर आजादी की मस्ती में झूम रहे थे। परिवार में खुशी व जश्न के चलते लग रहा था कि आज कोई बड़ा त्योहार है।
रामपुर जिले के गांव चकारी व हाल निवासी नगर के मयूर विहार आवास विकास (80) वर्षीय चौधरी शिव ङ्क्षसह ने कहा कि देश आज 74वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। साल 1947 में आज ही के दिन हमारा देश दासता की जंजीरों से मुक्त हुआ था। यह आजादी न केवल अंग्रेजी शासन से मिली थी, बल्कि विदेशी सोच और सलीके भी यहीं से खत्म हुए थे। उसकी उग्र छोटी थी लेकिन आजादी वाले दिन पूरे गांव के लोग आतिशबाजी छोड़ रहे थे तथा एक दूसरे को गुलाल लगाकर आजादी का जश्न मना रहे थे। पहला दिन था जिस दिन गांव में दीपावली व होली एक साथ मनाई गई। उसके बाद ऐसा माहौल कभी नहीं देखा गया। हर बार 15 अगस्त पर उस दिन की याद ताजा हो जाती है।
नगर के सम्भल गेट निवासी विष्णु लाल गुप्ता ने बताया कि आजादी के समय उसकी उम्र 12 वर्ष की रही थी। 15 अगस्त 1947 की सुबह हर मायने में नई थी। आजादी की हवा में सांस लेना तो नया था ही, साथ ही हर कोई ङ्क्षहदुस्तानी जश्न मनाने में डूबा हुआ था। घर के बुजुर्ग आपस में कह रहे थे कि अब सबकुछ हमारा है, हमेशा हमेशा के लिए। उस दिन सभी ने नये कपड़े पहने घर में मां ने पकवान बनाए। रिश्तेदारों के साथ मिलने वाले घर आए। मां व पिता उन लोगों को गले लगाकर आजादी की पहली सुबह की शुभकामनाएं दे रहे थे। शाम को पापा उसको शहर में घुमाने ले गए तो शहर में हर मुहल्ले व बाजारों तरफ देश भक्ति के गीत गूंज रहे थे, जगह- जगह स्टाल लगाकर लोग मिठाई बांट रहे थे। मां व अन्य परिजनों के साथ उसने भी घर के बाहर दीये जलाए। तो उसने मां से पूछा आज दीपावली है, तो मां ने कहा कि बेटा दीपावली से भी बहुत बड़ा दिन है आज सभी को आजादी मिली है।