Hindi Diwas 2021 : हिंदी हमारी प्राणशक्ति है, इसके बिना हम अधूरे, हिंदी को हमें अपने संस्कारों में करना होगा शामिल

Hindi Diwas 2021 हिंदी अब केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है बल्कि विदेश में भी अपनी धाक जमा रही है। इंटरनेट मीडिया के जमाने में हिंदी और सशक्त हुई है। हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या अब बढ़ी है।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Tue, 14 Sep 2021 07:33 AM (IST) Updated:Tue, 14 Sep 2021 07:33 AM (IST)
Hindi Diwas 2021 : हिंदी हमारी प्राणशक्ति है, इसके बिना हम अधूरे, हिंदी को हमें अपने संस्कारों में करना होगा शामिल
हिंदी दिवस पर दैनिक जागरण की ओर से कराई गई संगोष्ठी में साहित्यकारों ने रखे विचार

मुरादाबाद, जेएनएन। Hindi Diwas 2021 : हिंदी अब केवल अपने देश तक ही सीमित नहीं है, बल्कि विदेश में भी अपनी धाक जमा रही है। इंटरनेट मीडिया के जमाने में हिंदी और सशक्त हुई है। हिंदी का प्रयोग करने वालों की संख्या अब बढ़ी है। विश्व भर के अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी में पठन-पाठन हो रहा है। इसके साथ चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। चुनौती अपने घर में ही हैं। चुनौती है हिंदी के मूल और वास्तविक स्वरूप को बचाने की, भाषा के सही उच्चारण की अंग्रेजी के प्रयोग के बढ़ते दबाव की। हिंदी को उसका वास्तविक स्थान तभी मिलेगा जब हम इसे संस्कारों में शामिल करें।

हिंदी बोलने और उसके प्रयोग में गर्व का अनुभव करें। चुनाैती केवल एक स्तर पर नहीं अनेक स्तर पर हैं, हिंदी की सेवा करने वालों को उन्हें पहचान कर उन्हें हिंदी को मजबूत करने के लिए प्रयास करने होंगे। हिंदी हमें घुट्टी में मिली है, अगर आपका अपनी भाषा के प्रति लगाव नहीं है तो अपने राष्ट्र के प्रति भी सम्मान नहीं हो सकता। हिंदी हमारी प्राणशक्ति। यह बातें दैनिक जागरण की ओर से हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में एमआइटी सभागार में कराए गई संगोष्ठी में अध्यक्षता कर रहे यश भारती से सम्मानित वरिष्ठ नवगीतकार डा. माहेश्वर तिवारी ने कहीं।

संगोष्ठी में सभी वक्ताओं ने माना कि हिंदी की वैश्विक पहचान बनी है, प्रयोग बढ़ा है, विदेश से भारत आने वाले भी अब हिंदी के महत्व को समझते हुए हिंदी सीखने लगे हैं। लेकिन, इससे से संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता। सभी मानना था कि आज हिंदी की मजबूती में बाजार का भी योगदान कम नहीं है। हिंदी के बढ़ते प्रयोग के कारण ही गूगल को भी हिंदी टाइपिंग और वाइस रिकार्डिंग की सुविधा देनी पड़ी। सभी ने वर्तमान की चुनौतियों से निपटते हुए हिंदी की मजबूती के लिए सुझाव दिए।

शायर जिया जमीर ने कहा कि अपनी भाषा में बोलना एक सुकून देता है। जब आप बहुत अधिक खुश होते हैं, या दुखी होते हैं तो स्वत: ही बोली अपनी मातृभाषा में ही निकलनी है। हिंदी में कोई कमी नहीं है, यह एक वैज्ञानिक भाषा है। अंग्रेजी भाषियों के सामने हिंदी बोलने में हीन भावना नहीं, बल्कि अपनी भाषा के प्रति गर्व महसूस करने की जरूरत है।नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योग का कहना है कि हिंदी हमारे रोम-रोम में रची बसी है। हिंदी इतनी समृद्ध और मजबूत है कि दूसरी भाषाओं के शब्द आकर समाहित हो गए और उनका हिंदीकरण हो गया, इससे हिंदी मजबूत हुई है। हिंदी न कभी कमजाेर थी, न है और न होगी। हिंदी को अपने घर आंगन में पल्लवित करें। अपनी भाषा को शुद्ध रूप में प्रयोग करने की, एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हिंदी संस्कार के रूप में प्रदान करने की।

हास्य कवि एवं व्यंगकार फक्कड़ मुरादाबादी ने बताया कि हिंदी एक ऐसी भाषा है, जो ऊर्जा का संचार करती है। हर भाव को प्रदर्शित करने के लिए हिंदी के पास अलग शब्दावली है। लेकिन, व्याकरण की दृष्टि से देखा जो तो हिंदी के सामने सबसे अधिक परेशानी हिंदी वालों ने ही खड़ी की है। परिवर्तन निश्चित ही होना चाहिए और उसे स्वीकार भी करना चाहिए। समय के साथ स्वयं को बदलाव करने में भी मजबूती है।वरिष्ठ व्यंगकार मक्खन मुरादाबादी का कहना है कि हिंदी की दशा और दिशा को लेकर केवल नकारात्मक भाव दिखाना भी गलत है। इसके लिए हमें अपने घर के अंदर ही देखना होगा। अगर हमारे घरों में बच्चों ने रामचरित मानस का पाठ नहीं किया तो फिर किसी को दोष नहीं दिया जा सकता। हम हिंदी के स्वयं सरंक्षक बनें तो कोई खतरा नहीं है। ज्ञान सभी भाषाओं में हैं और उसे ग्रहण करने में कोई बुराई नहीं है। पर भाषा का जो सौंदर्य हिंदी में है, वह किसी और में नहीं।

बाल साहित्यकार डा. राकेश चक्र ने कहा कि हिंदी एक संस्कार है और उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है। हिंदी जोड़ने की भाषा है और यही कारण है कि वह लगातार समृद्ध हो रही है। युवा पीढ़ी भी हिंदी के प्रति पहले की तुलना में अधिक संवेदनशील हुई है, बस जरूरत उन्हें इसके साथ जोड़ने की जरूरत है।कृष्ण कुमार नाज ने बताया कि हिंदी की दुर्दशा की बात की जाती है, तो यह सबसे पहले हमारे घरों से ही होती है। हम अपने बच्चों को अंग्रेजी के शब्द सिखाने में अधिक रुचि दिखाते हैं, चाहे खुद को अंग्रेजी न आती हो। इसलिए शुरुआत अपने ही घर से करें। अपने बच्चों में हिंदी के प्रति भी उतनी रुचि पैदा करें। उन्हें सही उच्चारण करने से लेकर शब्दों के सही प्रयोग सिखाएं तो उनकी भी रुचि हिंदी के प्रति जागेगी। आज तो जो जितनी भाषा जानता है, उतना ही ज्ञानी माना जाता है।

साहित्यकार डा. अजय अनुपम ने बताया कि परिवर्तन हमारे जीवित होने का प्रमाण है। हम दुनिया भर के शब्दों का प्रयोग अपनी भाषा में करते हैं। भाषा सरलता को अपनाती है। जो हमें सरल लगता है, उसे ही प्रयोग करते हैं। इसी फेर में उर्दू, अरबी, फारसी, अंग्रेजी के शब्द भाषा में ऐसे शामिल हुए कि उनका हिंदीकरण हो गया। इसलिए भाषा के प्रति सजगता और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है। भाषा के प्रति कठोर न हों तो हिंदी का प्रयोग और अधिक बढ़ेगा।कवि मयंक शर्मा ने बताया कि आज हिंदी के महत्व को सभी समझ रहे हैं। एक समृद्ध भाषा को वह स्थान नहीं मिला, जो मिलना चाहिए था। लेकिन, बाजार ने हिंदी के महत्व को समझा है, तभी गूगल ने इंटरनेट मीडिया पर हिंदी टाइपिंग की सुविधा प्रदान की। फिर भी हिंदी के अधिक से अधिक प्रयोग के साथ पाठक वर्ग बढ़ाने की जरूरत है।

डा. अर्चना अहलावत ने बताया कि हिंदी को अंग्रेजी की तरह व्यवहार में प्रयोग की आवश्यकता अधिक है। कार्यालयों में सभी लोग अंग्रेजी के प्रयोग पर जोर देते हैं और बाहर निकलने ही हिंदी बोलने लगते हैं। हमें हर जगह एक समान होने में झिझक नहीं होनी चाहिए। हिंदी का प्रयोग स्वाभिमान के साथ करने से ही हिंदी मजबूत होगी।मधुबाला त्यागी ने बताया कि हिंदी के महत्व को आज हर कोई समझ रहा है। पर उसकी मजबूती बाजारीकरण से नहीं स्वयं से होनी चाहिए। यह तभी संभव है जब हिंदी भाषी भी हिंदी बोलने में खुद को गर्वित महसूस करें।

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