सम्भल के चन्दौसी आने पर जेठानंद की दुकान पर घंटों बैठतेे थे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह

Former Chief Minister Memories of Kalyan Singh जब भी बाबूजी चन्दौसी आते तो जेठानंद से मिलना कभी नहीं भूलते थे। उनकी किराना की दुकान पर पहुंचकर घंटों राजनीतिक चर्चा होती थी। इतना ही नहीं दुकान पर तमाम लोग आते थे और फिर वहां पर घंटों वार्ता का दौर चलता।

By Samanvay PandeyEdited By: Publish:Mon, 23 Aug 2021 05:22 PM (IST) Updated:Mon, 23 Aug 2021 05:22 PM (IST)
सम्भल के चन्दौसी आने पर जेठानंद की दुकान पर घंटों बैठतेे थे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह
शोक में बंद की जेठानंद ने दुकान, नहीं रुके आंखों से आंसू।

मुरादाबाद, [भगवंत सिंह]। Former Chief Minister Memories of Kalyan Singh : जब भी बाबूजी चन्दौसी आते तो जेठानंद से मिलना कभी नहीं भूलते थे। उनकी किराना की दुकान पर पहुंचकर घंटों राजनीतिक चर्चा होती थी। इतना ही नहीं दुकान पर तमाम लोग आ जाते थे और उसके बाद वहां पर घंटों वार्ता का दौर चलता। जेठानंद से उनका लगाव का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जब भी चन्दौसी का कोई व्यक्ति उनसे मिलता तो वह उनके बारे में जरूर जानकारी करते थे। निधन की सूचना पर जेठानंद को भी इतना दुख हुआ कि वह दुकान बंद कर घर चले गए और रविवार को भी दुकान में ताला लटका रहा। आंस से आंसू भी नहीं रुक रहे हैं।

यहां बता दे गांव देवापुर के बाद उनके साले नगर के गोपाल मुहल्ला में आकर रहने लगे। उन्हीं के बगल मेंं जेठानंद परचून की दुकान चलाते है। जब भी बाबूजी अपनी ससुराल आते थे तो सुबह को चाय नाश्ता करने के बाद और रात को भोजन करने के बाद जेठानंद की दुकान पर जरूर बैठते थे और वहीं पर घंटों बैठकर रणनीति बनाते थे। जेठनंद भी उन्हें जीजा मानने लगा। इसी रिश्ते के चलते जेठानंद की मां बाबूजी के आने पर अपने घर ले जाकर खाना खिलाती थी और दामाद के रिश्ते से उनको कुछ भेंट भी देती थी। बाबूजी जेठानंद और उनके परिवार को कभी नहीं भूल सके। उनके ससुराल से जो भी जाता तो जेठानंद के साथ उनके परिवार की खैर खबर जरूर लेते थे। बाबूजी के निधन पर जेठानंद को भी बेहद दुख है और शनिवार की रात जानकारी होने पर रविवार को अपनी दुकान नहीं खोली और पूरा दिन उनकी आंखों की आंसू नहीं रुके।

ससुराल में रहा गम का माहौल, कुछ लोग चले गए अलीगढ़ : बाबूजी के निधन का दुख प्रदेेश के तमाम लोगों को है, लेकिन उनके परिवार के बाद अगर सबसे ज्यादा कोई दुखी है तो वह चन्दौसी है। क्योंकि चन्दौसी में उनके साले रहते थे और उनका भी यहां के लोगों से बहुत लगाव था। चन्दौसी के तमाम लोगों को वह देखते ही पहचान लेते थे। कुछ लोग ऐेसे भी थे जो उनसे समय-समय पर मिलने के लिए जाते रहते थे। जैसे ही शनिवार की रात उनके निधन की सूचना मिली तो पूरी चन्दौसी के साथ ससुराली गम में डूब गए। उनके सालों के घर पर रविवार को वह चहल-पहल नजर नहीं आई जो प्रत्येक दिन आती थी। कुछ लोग अलीगढ़ के लिए भी रवाना हो गए है।

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