गरीब बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनीं अंजू, समाजसेवा का जज्बा आपको भी कर देगा हैरान

Education of poor children गरीब बच्चों की शिक्षा के लिए बेहतर कार्य करने वाली अंजू से लोगों को सीख लेनी चाहिए। वह हर गरीब बच्चे को शिक्षा की मुख्यधारा से जोडऩे का काम कर रहीं हैं।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Sun, 12 Jul 2020 04:29 PM (IST) Updated:Sun, 12 Jul 2020 04:29 PM (IST)
गरीब बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनीं अंजू, समाजसेवा का जज्बा आपको भी कर देगा हैरान
गरीब बच्चों के लिए उम्मीद की किरण बनीं अंजू, समाजसेवा का जज्बा आपको भी कर देगा हैरान

रामपुर (भास्कर सिंह)। कहते हैं कि एक शिक्षित महिला दो परिवारों को ज्ञान की रोशनी देती है। अगर महिला अपनी शिक्षा का सही इस्तेमाल करे तो पूरे समाज को बेहतर बनाने में योगदान दे सकती है। शहर के मिस्टन गंज में रहने वाली अंजू मेहरोत्रा इसकी मिसाल हैं। वह घरेलू महिला हैं। आम महिलाओं की तरह पति और बच्चों की देखभाल करती हैं। इसके अलावा वह मुफलिसी (गरीबी) के चलते स्कूल न जाने वाले बच्चों को भी इल्म (शिक्षा) की रोशनी दिखा रही हैं। चार साल पहले उन्होंने इस मुहिम की शुरुआत की थी। तब उन्होंने गरीब बच्चों को ढूंढकर अपने स्तर से स्कूल में दाखिला दिलाया। स्कूल ड्रेस, किताबें आदि मुहैया कराई। बाद में अपनी जैसी और महिलाओं को जोड़ लिया और एक एनजीओ बना लिया। अब तक उनकी एनजीओ के माध्यम से 165 बच्चे स्कूलों में पढ़ रहे हैं।

ऐसे मिली प्रेरणा

अंजू बताती हैं कि वह एक दिन अपने पति विनीत मेहरोत्र के साथ कार से जा रही थी। कार का टायर पंक्चर हो गया। पंक्चर जुड़वाने के लिए रुके तो देखा वह मात्र 10 साल का बच्चा था। पंक्चर जोड़ते समय उससे बातचीत की तो उसने बताया कि पिता गरीब हैं। पढ़ाई करने के लिए पैसे नहीं हैं। मजबूरी में यह काम करता है। वहां से जाने के बाद भी बच्चे की बातें उनके दिमाग में घूमती रहीं। तब फैसला किया कि अपने क्षेत्र में ऐसे बच्चों की तलाश कर उन्हेंं स्कूल भेजेंगी। इसके बाद उन्होंने अपने घर के आसपास ऐसे तीन बच्चों को तलाश किया, जिनके माता-पिता मजदूरी करते थे। गरीबी के कारण तीनों बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। उन्होंने तीनों के माता-पिता से बात की। उन्हेंं पढ़ाई का महत्व समझाया। इसके बाद अपने पास से तीनों बच्चों का उनके घर के पास ही एक निजी स्कूल में दाखिला करा दिया। उनकी फीस, स्कूल ड्रेस, कापी किताबें आदि का खर्च अपने पास से किया। ऐसा करके मन को बहुत सुकून मिला। इसके बाद यह सिलसिला शुरू हो गया। उन्होंने अपनी जैसी सोच वाली महिलाओं को भी जोड़ा और अब एनजीओ बनाकर मुहिम को आगे बढ़ा रही हैं।

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