वर्तमान सामाजिक परिवेश को साकार करती कृति है स्पंदन

वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई की उत्कृष्ट लेखनी से निकली स्पंदन ऐसी ही उल्लेखनीय कृतियों में से एक है।

By Narendra KumarEdited By: Publish:Sat, 23 Feb 2019 02:30 PM (IST) Updated:Sat, 23 Feb 2019 02:30 PM (IST)
वर्तमान सामाजिक परिवेश को साकार करती कृति है स्पंदन
वर्तमान सामाजिक परिवेश को साकार करती कृति है स्पंदन

मुरादाबाद, जेएनएन। सामाजिक सरोकारों एवं समस्याओं से जुड़ी कृतियां सदैव से ही साहित्य का महत्वपूर्ण अंग रहीं हैं। वरिष्ठ रचनाकार अशोक विश्नोई की उत्कृष्ट लेखनी से निकली स्पंदन ऐसी ही उल्लेखनीय कृतियों में से एक है। जीवन के विभिन्न आयामों को सामने रखती, कुल 124 सुंदर गद्य-रचनाओं से सजी इस कृति में रचनाकार ने अपनी सशक्त लेखनी का सुंदर उदाहरण प्रस्तुत किया है।

सुंदर व सारगर्भित उद्बोधन

गद्य-कृति के प्रारंभ में कृति रचयिता अशोक विश्नोई के उत्कृष्ट व्यक्तित्व एवं कृतित्व का समर्थन करते हुए, डॉ. प्रेमवती उपाध्याय, डॉ. महेश दिवाकर, शिशुपाल मधुकर एवं विवेक निर्मल जैसे वरिष्ठ साहित्यकारों के सुंदर व सारगर्भित उद्बोधन मिलते हैं। तत्पश्चात, सुंदर गद्य-रचनाओं का क्रम आरंभ होता है। वैसे तो कृति की समस्त रचनाएं समाज में व्याप्त विद्रूपताओं का साकार चित्र प्रस्तुत करती है परंतु, कुछ रचनाएं विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। उदाहरण के लिए , पृष्ठ 31 पर उपलब्ध रचना...

लाओ कलम और कागज पर लिखो...,

समाज में व्याप्त अन्याय और शोषण को पूरी तरह सामने रख रही है, वहीं पृष्ठ 33 पर उपलब्ध रचना के माध्यम से रचनाकार कलुषित राजनीति पर कड़ा प्रहार करता है। रचना की अंतिम पंक्तियां देखिए -

श्री नेताजी की मृत्यु का समाचार गलत प्रकाशित हो गया था, वह अभी जिंदा हैं इसका हमें खेद है...

इसी क्रम में पृष्ठ 39 की रचना गंदी राजनीति से दूर रहने की स्पष्ट सलाह देती है। पृष्ठ 45 पर राष्ट्रभाषा हिंदी को समर्पित पंक्तियां..

मैंने, प्रत्येक भाषा की पुस्तक को पढ़ा महत्वपूर्ण शब्दों को रेखांकित किया..

सहज रूप से राष्ट्रभाषा की महिमा-गरिमा को व्यक्त कर देती है। कुल 124 बड़ी एवं छोटी गद्य-कविताओं से सजी यह कृति अंतत:, पृष्ठ 123 पर पूर्णता को प्राप्त होती है। हार-जीत के द्वंद्व को दर्शाती इस अंतिम रचना की प्रारंभिक पंक्तियां देखें....

मैं हारा नहीं हूं क्यों हारूं,

हारना भी नहीं चाहता...??

इस अंतिम रचना के बाद रचनाकार का विस्तृत साहित्यिक-परिचय कृति की गुणवत्ता को ऊंचाइयां प्रदान कर रहा है। यद्यपि रचनाओं पर शीर्षकों का न होना अखरता है परंतु, कृति निश्चित रूप से पठन-पाठन व चिंतन-मनन के योग्य है।

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आकर्षक सजिल्द-स्वरूप में छपकर तथा रचनाकार की उत्कृष्ट लेखनी एवं विश्व पुस्तक प्रकाशन जैसे उच्च स्तरीय प्रकाशन-संस्थान से होकर, एक ऐसी कृति समाज को उपलब्ध हुई है जो विभिन्न सामाजिक समस्याओं को न केवल साकार रूप में साहित्य-प्रेमियों के सम्मुख उपस्थित करती है अपितु, अप्रत्यक्ष रूप से उसका समाधान भी प्रस्तुत करती है। इसके लिए रचनाकार एवं प्रकाशन संस्थान दोनों ही, बहुत-बहुत साधुवाद के पात्र हैं।

समीक्षक राजीव प्रखर

 

कृति का नाम                        स्पंदन

रचनाकार                             अशोक विश्नोई

प्रकाशक                                विश्व पुस्तक प्रकाशन नई दिल्ली।

प्रकाशन वर्ष                           2018

कुल पृष्ठ                                 128

मूल्य                                      150/- मात्र 

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