वाह रे नवाब! लोगों की आह पर भी आप बेपरवाह

हे कलियुग के नवाब, आपके रहमोकरम पर ही तो नागरिक ¨जदा हैं। जिसे चाहें नाव पर झुलाएं या फिर गंगा में डूबोएं और जिसको चाहें आसमां में उड़ाएं। अब तो लगता है मानो सूरज के उगने व डूबने के अलावा सब कुछ आपके इशारों पर ही निर्भर है। हो भी क्यों न, यह सब तो सियासी खेल है।

By JagranEdited By: Publish:Sun, 18 Nov 2018 08:07 PM (IST) Updated:Sun, 18 Nov 2018 11:23 PM (IST)
वाह रे नवाब!  लोगों की आह पर भी आप बेपरवाह
वाह रे नवाब! लोगों की आह पर भी आप बेपरवाह

हे कलियुग के नवाब, आपके रहमोकरम पर ही तो नागरिक ¨जदा हैं। जिसे चाहें नाव पर झुलाएं या फिर गंगा में डुबोएं और जिसको चाहें आसमां में उड़ाएं। अब तो लगता है मानो सूरज के उगने व डूबने के अलावा सब कुछ आपके इशारों पर ही निर्भर है। हो भी क्यों न, यह सब तो सियासी खेल है। तभी तो कोई भी श्रेय लेने में आप नहीं पिछड़ते। चार माह पहले नवाब खेतों तक पानी पहुंचाने के लिए बाणसागर परियोजना का बटन दबा गए। भले ही किसानों को पानी के लिए पानी-पानी होना पड़ा। लगे हाथ चुनार में गंगा पुल को भी सौंप गए लेकिन नागरिक तो काफी दिनों तक दूसरे सहारे भटकते रहे। सियासतदानों ने भी खूब खेल खेला। श्रेय लेने की भी होड़ लगी रही। फिर क्या, जब पुल रियल में चालू हुआ तो भी श्रेय लेने की जोरआजमाइश हुई। जो भी हो, देर से ही सही लेकिन नागरिक का भला हुआ सो वह भी चुनार पुल पर कदमताल करने लगा।

लेकिन 12 बरस पहले से तैयार हो रहे भटौली पुल का तो कोई पुरसाहाल नहीं। अच्छा किया क्योंकि इतने लंबे समय से चालू होने की बाट जोह रहे पुल को नवाब की अहमियत कैसे पता चलेगी। इसे पूरा होने का श्रेय लेने की शायद नवाब जरूरत नहीं समझते। इधर से मां गंगा के सीने को चीरते हुए नावों पर हिचकोले खाते जाने वाले नागरिकों के मतों व दिक्कतों से भी शायद आपको सरोकार नहीं। नवाब व हाकिमों ने नावों पर सवार होने को लेकर नागरिक की जलालत नहीं देखी। तभी तो उनसे पीपा पुल भी छीन लिया और गंगा में गोता लगाने के लिए बेसहारा छोड़ दिया। फिर भी पुल चालू होते ही श्रेय लेने की नवाबों में होड़ लगेगी। हरी झंडी दिखेगी तभी नागरिक कदमताल कर सकेगा। लेकिन नागरिक भी अब ज्यादा इंतजार करने के मूड में नहीं है। पिछले 12 वर्षों से उसकी उम्मीदों पर पानी फिर रहा है। शहर पहुंचने के लिए नागरिक नाव पर सवार होने के लिए आज भी जान जोखिम में डालने को मजबूर है। पुल तो अपनी नियति मान बिलख रहा है लेकिन नागरिक अब मानने को तैयार नहीं है। नवाब की बयानबाजी से लेकर अफसरों की आरामफरोशी देख वह टूट चुका है। पिछले बरस 3 करोड़ रुपये गंगा में बहते हुए नागरिक ने देखा तो कलेजा मुंह को आ गया। लूट मचाने वालों की कुटिलता और सियासी खेल को नागरिक एक दशक से देख आह भरता रहा है।

रोजाना की समस्या, संघर्ष, पीड़ा और नवाब की अनदेखी से आजिज नागरिक सड़क पर दो-दो हाथ करने के लिए उतर पड़ा है। उसने अपना हक पाने के लिए बिगुल फूंक दिया है। कचहरी में नागरिक ने जुलूस निकाल प्रदर्शन किया तो हाकिमों के पेशानी पर बल पड़ गए। कुछ नागरिकों ने पुल पर पहुंच कर आवाज बुलंद की तो नवाबों की आंखें भी खुल गईं। चलो भई, राहत की बात है हमारे नवाब ने सख्ती दिखाई तो विभागीय हाकिम भी सक्रिय हुए और महीनेभर की तिथि नियत कर दी। लेकिन यह क्या, पहले भी तो तिथियां आई थीं और बीत गईं। पुल तो जस का तस बना रहा। नवाब व हाकिम ने तो नागरिक का भरोसा भी तोड़ दिया। फिर भी कोई बात नहीं, मां ¨वध्यवासिनी की कृपा से अब पुल बनने का भरोसा पुन: जगा है। सो पता चला कि पुल के निर्माण ने भी गति पकड़ ली।

उम्मीदों से भरे नागरिक ने घर वापसी के लिए आज फिर नाव पर बाइक चढ़ा खुद सवार हुआ तो उसकी निगाहें पुल के सामने शोर मचाती पोकलैंड व जेसीबी पर पड़ी तो खुशी से उछल पड़ा। तभी उसकी नजरें गंगा की लहरों पर अठखेलियां करती संध्या के सूरज की लालिमा से इनायत हुईं तो वह प्राकृतिक छटा से ओतप्रोत हो गया। सौंदर्यबोध में खोया बाइक सवार नागरिक भोर के सूरज की लालिमा बिखरने तक पुल पर आवागमन करते हुए दिवास्वप्न में ही उलांचे मारने लगा..।

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