जंगल में लकड़ी बीनने वाली महिलाओं को कराया अभिव्यक्ति का बोध, बना रहीं सशक्त

गरीब और श्रमिक घरों की महिलाएं जब जंगल में जलावन की लकड़ी बीनने जातीं तो वनकर्मियों की कुचेष्टा का शिकार बनतीं। ऐसी खबरें पढ़कर उनकी आवाज बुलंद करने पहुंची मधु सैलानी ने महिलाओं में इतना आक्रोश भर दिया कि उन्होंने वनकर्मियों को पेड़ से बांध दिया। इससे जिला प्रशासन की कुर्सी हिल गई और प्रशासन को झुकना पड़ा। अभिव्यक्ति के बोध से निर्बल महिलाओं को सशक्त बनाने का ऐसा कारनामा करने वाली मधु आज भी महिलाओं के लिए शब्द वाहिका बनी हैं।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 22 Jan 2019 11:12 PM (IST) Updated:Tue, 22 Jan 2019 11:12 PM (IST)
जंगल में लकड़ी बीनने वाली महिलाओं को कराया अभिव्यक्ति का बोध, बना रहीं सशक्त
जंगल में लकड़ी बीनने वाली महिलाओं को कराया अभिव्यक्ति का बोध, बना रहीं सशक्त

सतीश रघुवंशी, मीरजापुर :

गरीब और श्रमिक घरों की महिलाएं जब जंगल में जलावन की लकड़ी बीनने जातीं तो वनकर्मियों की कुचेष्टा का शिकार बनतीं। ऐसी खबरें पढ़कर उनकी आवाज बुलंद करने पहुंची मधु सैलानी ने महिलाओं में इतना आक्रोश भर दिया कि उन्होंने वनकर्मियों को पेड़ से बांध दिया। इससे जिला प्रशासन की कुर्सी हिल गई और प्रशासन को झुकना पड़ा। अभिव्यक्ति के बोध से निर्बल महिलाओं को सशक्त बनाने का ऐसा कारनामा करने वाली मधु आज भी महिलाओं के लिए शब्द वाहिका बनी हैं।

मूलरूप से राजस्थान के नागौर जिला निम्होल गांव की रहने वाली मधु सैलानी बीते 35 वर्षों से मीरजापुर के आवास विकास कालोनी में रहती हैं। समाज में खासकर महिलाओं के लिए उन्होंने विवाह के बाद से ही काम करना शुरू किया। नब्बे के दशक में वनकर्मियों को पेड़ से बांधने की घटना से सुर्खियों में आई मधु कहती हैं कि जो महिलाएं आवाज नहीं उठा पातीं, उनके लिए मैं शब्द वाहिका बनकर काम करती हूं और उनकी बात को शासन प्रशासन तक पहुंचाने का काम किया जाता है। वर्तमान में भी मधु सैलानी अभिव्यक्ति की वाहक बनकर गरीब, मजबूर और बेसहारा महिलाओं के हक की लड़ाई लड़ती हैं। इन्होंने शराब के ठेकों के खिलाफ, दहेज हत्या के खिलाफ, बालिका शिक्षा के लिए कई बड़े आंदोलन खड़े किए और खुद उसकी अगुवाई की। इससे जिले की महिलाओं के बीच मधु का दर्जा साथी के रूप पुख्ता होता चला गया। बाबा आम्टे बने प्रेरक

मधु बताती हैं कि उनके पिता भी समाजसेवा से आजीवन जुड़े रहे। बचपन में बाबा आम्टे के साथ कुछ समय बीता जिससे उनकी कार्यशैली ने बहुत प्रभावित किया। इसके बाद जब विवाह हुआ तो फिर से गांव, गरीब और मजलूम महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया। इस काम में ग्राम्य समृद्धि परिषद संस्था भी उनकी मदद करता है। मधु बताती हैं कि उनके सफर में हमसफर ने तो बीच में साथ छोड़ दिया लेकिन बेटे सुशोधन व बेटी सुजाता का उन्हें पूरा सहयोग मिलता है। विरोध व अपमान से भी नहीं डिगीं

मधु कहती हैं कि उनके इन कार्यों से कई बार लोगों का विरोध झेलना पड़ता है, कुछ लोग अपमानित करने की कोशिश भी करते हैं लेकिन वे रास्ते से नहीं डिगा पाते हैं। मधु कहती हैं दुनिया बहुत तेजी से बदली है, नई तकनीक ने अभिव्यक्ति को नई धार दी है लेकिन जिले की महिलाएं अभी भी घूंघट में सिसक रही हैं और उन्हें तभी आजादी मिलेगी जब वे अभिव्यक्ति को हथियार बनाकर रणक्षेत्र में उतरेंगी।

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