एक जोड़ी कपड़े में जीवन संगिनी ललिताजी को ले गए थे शास्त्रीजी

जागरण संवाददाता मीरजापुर परिवार में शादी विवाह का माहौल था। दुल्हा बनकर 16 मई 1928 क

By JagranEdited By: Publish:Thu, 01 Oct 2020 07:33 PM (IST) Updated:Thu, 01 Oct 2020 07:33 PM (IST)
एक जोड़ी कपड़े में जीवन संगिनी ललिताजी को ले गए थे शास्त्रीजी
एक जोड़ी कपड़े में जीवन संगिनी ललिताजी को ले गए थे शास्त्रीजी

जागरण संवाददाता, मीरजापुर : परिवार में शादी विवाह का माहौल था। दुल्हा बनकर 16 मई 1928 को मीरजापुर के गैबी घाट पहुंचे थे। आंगन में शादी विवाह संबंधी सामान रखा जाने लगा। यह देख पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने सामान को रखे जाने से मना कर दिया। दहेज में कुछ भी ले जाने से इन्कार कर दिया, उन्होंने शगुन में केवल चांदी का सिक्का लिया था। वह खुद ही दुल्हन के लिए खद्दर की धोती लाए थे। सामानों को छोड़ केवल एक जोड़ी कपड़े में जीवन संगिनी ललिताजी को ले गए। परिवार की महिला सदस्य पुष्पा मोहन पत्नी स्व. मदन मोहन श्रीवास्तव ने दैनिक जागरण के साथ अपनी पुरानी स्मृतियों को याद करते हुए बताया।

उन्होंने बताया कि उस समय ससुराल पक्ष के लोग हैरत में पड़ गए लेकिन वे शास्त्री जी की सहजता को सहर्ष स्वीकार कर लिया और उसी धोती में दुल्हन बनीं ललिताजी की विदाई की गई। यही नहीं, शास्त्रीजी ने दहेज में कुछ भी ले जाने से इंकार कर दिया था। इस पर वैवाहिक समारोह में जुटे रिश्तेदार व आसपास के लोग भी हतप्रभ हो गए थे। आखिरकार शगुन के तौर पर शास्त्रीजी ने मात्र चांदी का एक सिक्का ही अपने साथ ले गए थे। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री सादगी, सरलता व सौम्यता के प्रतीक थे। आज भी गनेशगंज के लल्लन बाबू की गली स्थित उनका ननिहाल उनकी यादों को संयोए हुए है, वहीं आज भी गैवीघाट स्थित उनका ससुराल मानों उन दिनों की दास्ता को बयां कर रहा है। गैबी घाट में पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्रीजी की पत्नी ललिताजी के घर तक पहुंचने वाले रास्ते को ललिता मार्ग घोषित किया गया। उनके घर में वह आंगन आज भी सुरक्षित व संरक्षित है जहां पर लाल बहादुर शास्त्री का विवाह संपन्न हुआ था। कई बार लोगों ने आंगन का पत्थर बदलकर संगमरमर लगवाने के लिए जोर डाला लेकिन परिवार के लोगों का कहना है कि इस आंगन से शास्त्री जी व दादी बुआ यानी ललिता शास्त्रीजी की अनगिनत यादें जुड़ी हैं। इसी वजह से इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया।

----------------

सहेज रहे उनकी यादें

ललिताजी के परिवार के लोग उनके विचारों और परंपरा को सहेजने में जुटे हैं। ललिता शास्त्री प्राथमिक स्कूल, ललित शास्त्री स्कूल से उनकी विचारधारा को आगे बढ़ाने का कार्य कर रहा है। परिवार के सदस्यों का मानना है कि ऐसी महान हस्तियों से पारिवारिक संबंध होना अपने आप में बड़ी बात है। हम उनकी विरासत को जितना भी संभाल पाएं, यही हमारी ओर से उनके लिए सच्ची श्रद्धांजलि है।

---------------

सुरक्षा दस्ते को मोड़ पर ही रोक दिया

दिसंबर 1965 का सर्द दिन यहां के लोगों को आज भी नहीं भूलता। प्रधानमंत्री बनने के बाद पहली बार ससुराल पहुंचे लाल बहादुर शास्त्री ने गैबी घाट मोड़ पर ही सुरक्षा दस्ते को रोक दिया। वे पैदल ही पत्नी ललिताजी के आवास की ओर निकल पड़े। यहां उनके मित्र रहे हीरा बाबू से गले मिलने के बाद वे घर में गए और सबसे मुलाकात की। परिवार के लोगों ने बताया कि उनकी इसी आत्मियता के लोग कायल रहे। वे जब भी किसी से मिलते तो हमेशा हाथ जोड़कर प्रणाम करते थे।

--------------

जब छुपकर ननिहाल पहुंचे शास्त्रीजी तो पसीने पसीने हुए सुरक्षाकर्मी

परिवार के सदस्य प्रशांत श्रीवास्तव पुत्र स्व. अरूण कुमार श्रीवास्तव (बुआ के लड़के) ने बीते दिनों को याद करते हुए बताया कि प्रधानमंत्री बनने के बाद स्व. लाल बहादुर शास्त्री का मीरजापुर में आगमन हुआ। देर रात लगभग 1.30 बजे अचानक कमरे से गायब हो गए और जाकर लल्लन बाबू की गली गनेशगंज अर्थात ननिहाल में सो गए। सुरक्षाकर्मियों को जैसे ही मामूल हुआ उनके पैरो के नीचे से मानों जमीन ही खिसक गई हो। सभी सुरक्षाकर्मी पसीने से तर बतर हो रहे थे।

-----------

मित्र के घर से वापस लौटने पर सुरक्षाकर्मियों ने पिता को रोका

परिवार के सदस्य प्रशांत श्रीवास्तव पुत्र स्व. अरूण कुमार श्रीवास्तव (बुआ के लड़के) ने बताया कि प्रधानमंत्री बनने के बाद लौटने पर सुरक्षा बेहद सख्त थी। सुरक्षाकर्मियों की इजाजत के कहीं भी जाने की इजाजत नहीं थी। पिता स्व. अरूण कुमार श्रीवास्तव बिना बताए अपने मित्र से मिलने चले गए। वापस लौटने के बाद सुरक्षाकर्मी घर में घुसने नहीं दे रहे थे, शास्त्रीजी के कहने पर अंदर प्रवेश मिला।

chat bot
आपका साथी