सृजनात्मकता, चितन, तर्क अभिवृत्ति व अभिरुचि बढ़ाने में नई शिक्षा नीति महत्वपूर्ण

केबीपीजी कालेज के सामुदायिक भवन में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत नई शिक्षा नीति-चुनौतियां और समाधान विषय पर कार्यशाला गुरुवार को हुई। नीति विशेषज्ञ व राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मगरहा एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत डा. दिनेश कुमार यादव ने नए बदलाव के बारे में जानकारी दी।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 02 Dec 2021 06:44 PM (IST) Updated:Thu, 02 Dec 2021 06:44 PM (IST)
सृजनात्मकता, चितन, तर्क अभिवृत्ति व अभिरुचि बढ़ाने में नई शिक्षा नीति महत्वपूर्ण
सृजनात्मकता, चितन, तर्क अभिवृत्ति व अभिरुचि बढ़ाने में नई शिक्षा नीति महत्वपूर्ण

जागरण संवाददाता, मीरजापुर : केबीपीजी कालेज के सामुदायिक भवन में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत नई शिक्षा नीति-चुनौतियां और समाधान विषय पर कार्यशाला गुरुवार को हुई। नीति विशेषज्ञ व राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मगरहा एसोसिएट प्रोफेसर संस्कृत डा. दिनेश कुमार यादव ने नए बदलाव के बारे में जानकारी दी। भारतीय समाज बहु सांस्कृतिक लोकतांत्रिक समाज है, जिसमें शिक्षा के विभिन्न स्वरूप दिखाई देते हैं। सूचना क्रांति के इस दौर में छात्र-छात्राओं में सृजनात्मकता, स्वप्रत्यय, चितन, तर्क अभिवृत्ति, अभिरुचि क्षमता बढ़ाने में नई शिक्षा नीति महत्वपूर्ण है।

अध्यक्षता करते हुए प्राचार्य डा. अशोक कुमार सिंह ने कहा कि किसी भी नीति का उद्देश्य होता है कि वह संबंधित क्षेत्र की समस्याओं के कारणों को समझे व बताएं कि उन समस्याओं से कैसे निपटा जाए। नई शिक्षा नीति नव भारत निर्माण, समृद्ध, सर्जनशील व नैतिकता से परिपूर्ण भारत के निर्माण की परिकल्पना करती है। बदलते शिक्षा परिदृश्य में 21वीं सदी के अनुसार इसमें वांछनीय परिवर्तन किए गए हैं जो शिक्षा के स्तर को सुधारने में अवश्य मदद करेंगे। डा. वीरेंद्र सिंह ने कहा कि देश की तीसरी ऐसी शिक्षा नीति है, जो पुरानी शिक्षा नीतियों के गुण-दोष पर समीक्षा कर अपने साथ एक नया दृष्टिकोण ले कर आई है, जिसमें अनेक संभावनाएं तो भरी हैं लेकिन कुछ संशय के बादल भी।

इसलिए यह समझ लेना आवश्यक है की कब-कब क्या हुआ। स्वतंत्रता के बाद सर्वप्रथम 1948 में डा. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग का गठन हुआ था। 1952 में मुदलियार आयोग, पहला कोठारी आयोग (1964-1966) आया, जिसकी सिफारिशों पर आधारित 1968 में पहली बार महत्वपूर्ण बदलाव वाला प्रस्ताव पारित हुआ था। इस अवसर पर डा. अरविद मिश्र, डा. श्यामलता सिंह, डा. गौरीशंकर द्विवेदी, डा. शशांक शेखर द्विवेदी, डा. रेनु रानी सिंह, डा. रविन्द्र सिंह, डा. देवेंद्र पांडेय, डा. राकेश कुमार शुक्ल, डा. इंदुभूषण द्विवेदी, डा. अमिताभ तिवारी, डा. भानु प्रताप सिंह, डा. सुनीता त्रिपाठी, डा. अर्चना पांडेय, डा. शरद महरोत्रा रहे। संचालन डा. कुलदीप पांडेय ने किया।

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