लौट के नहीं जाना अब मुझे शहरों की ओर

Þलौट के नहीं जाना मुझे शहरों की पनाह में गांव में जीना है और मरना है अपने गांव मेंÞ। कुछ इससे ही मिलती-जुलती पंक्तियां इन दिनों गांवों में अनायास ही सुनाई पड़ रही है। दरअसल कोरोना संकट के दौरान शहरों में लॉकडाउन में फंसे एवं अब अपने गांव में लौट चुके प्रवासी श्रमिकों के मुंह से कुछ ऐसे ही बोल सुनाई पड़ रहें हैं। शहरों से लौटे श्रमिक लॉकडाउन में मिले दंश को याद कर सिहर उठते हैं एवं उनकी कड़वी यादों से उबर कर अब अपने गांव में ही जिदगी की नई पारी शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। कई गांवों में हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिक मुंबई सूरत दिल्ली बंगलुरू हैदराबाद एवं देश के अन्य बड़े शहरों से लौटकर गांव आए हुए हैं।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 06 Jun 2020 06:52 PM (IST) Updated:Sat, 06 Jun 2020 10:54 PM (IST)
लौट के नहीं जाना अब मुझे शहरों की ओर
लौट के नहीं जाना अब मुझे शहरों की ओर

जासं, जमालपुर (मीरजापुर) : लौट के नहीं जाना मुझे शहरों की पनाह में, गांव में जीना है और मरना है अपने गांव में'। कुछ इससे ही मिलती-जुलती पंक्तियां इन दिनों गांवों में अनायास ही सुनाई पड़ रही है। दरअसल कोरोना संकट के दौरान शहरों में लॉकडाउन में फंसे एवं अब अपने गांव में लौट चुके प्रवासी श्रमिकों के मुंह से कुछ ऐसे ही बोल सुनाई पड़ रहें हैं। शहरों से लौटे श्रमिक लॉकडाउन में मिले दंश को याद कर सिहर उठते हैं एवं उनकी कड़वी यादों से उबर कर अब अपने गांव में ही जिदगी की नई पारी शुरू करने की तैयारी कर रहे हैं। कई गांवों में हजारों की संख्या में प्रवासी श्रमिक मुंबई, सूरत, दिल्ली, बंगलुरू, हैदराबाद एवं देश के अन्य बड़े शहरों से लौटकर गांव आए हुए हैं।

तमाम प्रवासी श्रमिक एक सपना संजोए शहर गए थे। प्रवासी श्रमिकों ने कोरोना लॉकडाउन के दौरान आपबीती करूण अंदाज में बयां किया लेकिन अब फिर कब जाना है? इस प्रश्न को सुनकर तौबा-तौबा करते नजर आए। ऐसे ही प्रवासी श्रमिकों में एक है, कमलेश बिद जो विकास खंड के धोबही गांव के निवासी हैं। बात करने पर उन्होंने कारूणिक अंदाज में कुछ इस तरह अपना दु:ख सुनाया कि वहां उपस्थित सभी लोग अवाक रह गए। कमलेश ने बताया कि एक सप्ताह बिस्किट एवं पानी पर जीवनयापन करने के बाद अब शहर जाने की बात सोचकर ही रूह कांप जाती है। उसने बताया कि फरवरी माह में जीवन को बेहतर अंजाम देने के हौसले के साथ भारत की आर्थिक राजधानी मायानगरी मुंबई पहुंच गया लेकिन कुछ दिन काम करने के बाद ही कोरोना महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन हो गया एवं दोनों शिफ्टों के श्रमिक एक कमरे में पैक हो गए। बड़ी मुश्किल से श्रमिक स्पेशल ट्रेन से प्रतापगढ़ पहुंचा। गांव आने पर लगा कि अब जीवन बच गया । परिवार वालों की मर्जी से शपथ लिया कि अब फिर कभी शहर नहीं जाऊंगा। कमलेश ने गांव पर ही सब्जी की दुकान खोल लिया है एवं उसी के सहारे परिवार का भरण-पोषण कर रहा है। इसी तरह तमाम ऐसे मजदूर है जो शहर को बाय कर लौट आए हैं एवं अपने स्वरोजगार से परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।

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मुंबई के शांताक्रुज में रहकर आटो चलाता था। लॉकडाउन लगने के बाद रोजगार विहिन होने पर 14 मई को ट्रेन से घर वापस लौटा एवं अब पत्नी के श्रृंगार की दुकान पर हाथ बंटा रहा हूं। लॉकडाउन के दौरान शहर के संघर्षों को याद कर शहर जाने की सारी इच्छाएं समाप्त हो गई है।

विजय कुमार गुप्ता, ओड़ी निवासी। मथुरा में रहकर दिहाड़ी मजदूरी का काम करता था। लॉकडाउन के दौरान कई रात और दिन लाई खाकर और पानी पीकर बिताई। मथुरा से पैदल ही घर को 13 मई को पहुंचा। क्वारंटाइन अवधि के बाद गांव मे जोड़ाई का कार्य कर रहा हूं। शहर से अच्छा तो अपना गांव ही है।

चिरंजीव बियार, ओड़ी निवासी। मुंबई से ट्रेन से 28 मई को घर वापस लौटा, अब घर पर ही रहकर क्वारंटाइन के बाद मनरेगा योजना में काम कर परिवार का पालन पोषण करूंगा लेकिन वापस मुंबई नहीं जाऊगा।

मेहराब, धोबहीं निवासी। मुंबई के शांता क्रुज में रहकर टैंपों चलाता था, लॉकडाउन की कड़वी यादों से शहर वापस जाने की इच्छा समाप्त हो गई है। अब घरवाह पर ही रहकर कोई धंधा कर परिवार का पोषण करूंगा।

जवाहर लाल, ओड़ी निवासी।

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