परमहंस आश्रम में उमड़ा श्रद्धालुओं रेला
देवोत्थान एकादशी के दिन परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ में स्वामी अड़गड़ानंद महराज के दर्शन को श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं के अपार समूह को संबोधित करते हुए अड़गड़ानंद महराज ने अपने प्रवचन में कहा कि जीव की अनन्त दशायें हैं।
जागरण संवाददाता, चुनार (मीरजापुर) : देवोत्थान एकादशी के दिन परमहंस आश्रम सक्तेशगढ़ में स्वामी अड़गड़ानंद महराज के दर्शन को श्रद्धालुओं का रेला उमड़ पड़ा। सत्संग के दौरान श्रद्धालुओं के अपार समूह को अड़गड़ानंद महराज ने संबोधित किया। प्रवचन में कहा कि जीव की अनन्त दशाएं हैं। इन दशाओं से हटकर जीव को भक्तिरूपी एकदशा मिल जाए, परमदेव परमात्मा का देवत्व प्रवाहित हो जाए, उसका बोध हो जाए और वह परमात्मा में ही समाहित हो जाय, यही एकादशी का रूप है। महराजश्री ने रामचरित मानस से उदाहरण देकर इसे और स्पष्ट किया। कवन जोनि जनमेउं जहं नाही। मैं खगेस भ्रमि भ्रमि जग माहीं।। देखेउं करि सब करम गोसाईं। राम भगति ए¨ह तन उर जामी। ताते मोहि परम प्रिय स्वामी।
उन्होंने कहा कि भक्ति का अर्थ है भगवान से जुड़ना। भक्ति से भगवान का दर्शन, स्पर्श और विलय प्राप्त होने के बाद न जनम होगा न मृत्यु। एक दशा मिल जाएगी, फिर उस दशा में कभी परिवर्तन न आएगा- यही शुद्ध एकादशी है। उन्होंने आगे कहा कि धर्म ही वह सीढ़ी है जिसपर चढ़कर इस एकरस एकदशा को प्राप्त किया जा सकता है। के नाम पर प्रचलित रूढि़यों का विरोध करते हुए स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान में धर्म अपना वास्तविक रूप खो चुका है, जिसके कारण जीव दु:खरूपी अनन्त दशाओं में फंसा है। यह सब इसलिए हुआ क्योंकि मनुष्य अपने धर्मशास्त्र से दूर होता गया। गीता रूपी धर्मशास्त्र स्वयं परमात्मा द्वारा ही कुरुक्षेत्र में प्रसारित किया था। अड़गड़ानंद महराज ने गीता का अध्ययन करने और उसके बताए मार्ग पर चलकर मोक्ष प्राप्त करने की सलाह दी। वेदों को गीता का विस्तृत रूप बताते हुए कहा कि विभिन्न देश-काल में पृथ्वी की विभिन्न भाषाओं में 'गीता' का ही संदेश महापुरुषों द्वारा उद्घाटित होता रहा है। इस प्रकार भारतभूमि का राष्ट्रीय ग्रंथ 'श्रीमद्भागवत गीता' है। इस दौरान व्यवस्था में वरिष्ठ संत नारद बाबा समेत अन्य लगे रहे। देर शाम तक श्रद्धालुओं के आने-जाने का क्रम लगातार चलता रहा।