भोर भइल हे सूर्य गोसइया, जय हो छठी मइया..

जागरण संवाददाता मीरजापुर भोर की पहली किरण के फूटने से पहले का वक्त प्रकाश अंधकार

By JagranEdited By: Publish:Thu, 11 Nov 2021 05:46 PM (IST) Updated:Thu, 11 Nov 2021 05:46 PM (IST)
भोर भइल हे सूर्य गोसइया, जय हो छठी मइया..
भोर भइल हे सूर्य गोसइया, जय हो छठी मइया..

जागरण संवाददाता, मीरजापुर : भोर की पहली किरण के फूटने से पहले का वक्त, प्रकाश अंधकार को पूरी कोशिश से पीछे धकेल रहा था। घाट पर मद्धिम सा उजाला चारों ओर बिखर रहा था। घाट से कुछ दूर पेड़ की डालियों पर बैठी चिड़ियों की चहचहाहट तेज होती जा रही थी। वहीं घाट पर श्रद्धालुओं का समूह पूजा-पाठ, भजन में जुटा था। उगते सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ छठ पर्व का समापन हो गया।

गुरुवार तड़के से ही सूर्य देवता को अ‌र्घ्य देने का बेसब्री से इंतजार हो रहा था। इसी के साथ चार दिवसीय छठ पर्व संपन्न हो गया। सूर्य देवता के अवतरित होते ही कचहरी घाट, बरियाघाट, गंगा राम घाट, पक्का घाट व फतहां घाट के आसपास चहल-पहल, भजनों की आवाजें अचानक तेज हो उठीं। घाट पर जुड़े श्रद्धालु विशेषकर महिलाएं जल में खड़े होकर अ‌र्घ्य देने लगीं। वे अपनी संतान, घर-परिवार के कल्याण की कामना कर रही थीं। लोक-आस्था का पर्व छठ गुरुवार सुबह उदयाचलगामी सूर्य को अ‌र्घ्य देने के साथ ही संपन्न हो गया। कुछ ने गाय के दूध से भी अ‌र्घ्य दिया। इसके बाद प्रसाद वितरण किया। प्रसाद लेने के लिए घाटों पर काफी भीड़ दिखी। कुछ महिलाएं तो आंचल फैलाकर प्रसाद मांग रही थीं। कुछ मांग में सिदूर लगवाकर पैर छू रही थीं। चार दिवसीय अनुष्ठान के चौथे दिन अ‌र्घ्य के बाद तीन दिन से व्रत महिलाओं ने अन्न-जल ग्रहण कर पारण किया। सूर्योदय होते ही घाटों पर आतिशबाजी भी हुई। पूजन के बाद प्रसाद वितरण किया गया। घाट पर मेले जैसा नजारा था।

गंगा तट पिछले चार दिन से भक्ति और त्योहार के उल्लास से भरे थे। घाटों पर पारंपरिक छठ गीत की गूंज के साथ ही बुधवार की शाम गंगा तट पर छठ पूजा का शुभारंभ हुआ था। श्रद्धालुओं ने छठ माता की वेदियों पर फल-फूल प्रसाद चढ़ाकर पूजा-अर्चना की। गुरुवार को घाट का त्योहार घर लौट आया। लग रहा है अभी से अगले वर्ष का छठ पर्व घाट पर होने वाली रौनक का इंतजार करने लगा है, पर उससे पहले श्रद्धालु घाटों पर जो गंदगी छोड़ गए हैं वक्त उसकी साफ-सफाई का है। छठ पर्व को लेकर पुलिस प्रशासन की चाक-चौबंद व्यवस्था थी, जहां पीले सिदूर को नाक से मांग तक सजाए महिलाओं का रैला और गन्ने के गट्ठर सिर पर रखे पुरुष बड़ी संख्या में नजर आ रहे थे। गौरतलब है कि छठ व्रत अविवाहित लड़कियां नहीं रखतीं।

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