विजय दिवस: रणभूमि में हर पग पर इंजीनियर्स ने भी उठाए हथियार Meerut News

1999 के कारगिल युद्ध के अलावा सेना की ओर से चलाए गए ऑपरेशन रक्षक ऑपरेशन कांगो और ऑपरेशन बैटल एक्स में दी गई उनकी शहादत सिर को गर्व से उठा देती है।

By Taruna TayalEdited By: Publish:Fri, 26 Jul 2019 05:03 PM (IST) Updated:Fri, 26 Jul 2019 05:03 PM (IST)
विजय दिवस: रणभूमि में हर पग पर इंजीनियर्स ने भी उठाए हथियार Meerut News
विजय दिवस: रणभूमि में हर पग पर इंजीनियर्स ने भी उठाए हथियार Meerut News
मेरठ, [अमित तिवारी]। युद्ध भूमि हो या फिर शांत भूमि, सेना में हर किसी की योग्यता और जिम्मेदारी अलग होती है। पर बात जब देश के आन, बान और शान की हो तो हर किसी का केवल एक ही धर्म होता है। दुश्मन को उसकी औकात दिखा कर देश से खदेड़कर बाहर करना। भारतीय सेना के लड़ाकू जवानों के हर दुर्गम रास्ते को सुगम बनाने वाले इंजीनियर्स ने भी कारगिल युद्ध में कुछ ऐसा ही किया। जरूरत पड़ी तो इंजीनियरिंग के उपकरण छोड़कर हथियार उठा लिए और दुश्मन से दो-दो हाथ किया। छावनी में तैनात 2 इंजीनियर रेजिमेंट के नाम भी कुछ ऐसे ही कारनामे दर्ज है।
हर मोर्चे पर रहे तैनात
कारगिल के ऑपरेशन विजय के दौरान 2 इंजीनियर रेजिमेंट 3 इन्फैंट्री डिवीजन के साथ पश्चिम में कारगिल से उत्तर में सियाचिन ग्लेशियर और पूरब में चुशुल तक तैनात थी। छह मई को ऑपरेशन शुरू होने के बाद रेजिमेंट के इंजीनियर्स ने सैनिकों के लिए पहाड़ियों पर रास्ते बनाए, माइन फील्ड से विस्फोटकों को निकाला और कारगिल में जगह-जगह पर माइन भी बिछाए। लड़ाई के समय रेजिमेंट की एक कंपनी ने उपकरण छोड़ हथियार उठा लिया और लड़ाई में दुश्मन का सामना किया।

कारगिल में इन जगहों पर रही तैनाती

इंजीनियर रेजिमेंट कारगिल में बटालिक, याल्डोर, चोरबाटला सब-सेक्टर, कारगिल, द्रास, मस्कोह सब-सेक्टर और हानिफ सब-सेक्टर में तैनात रहे। रेजिमेंट को इस साहस व वीरता के लिए जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड यूनिट साइटेशन और थिएटर ऑनर कारगिल से नवाजा गया। वर्ष 1971 के बाद 2 इंजीनियर रेजिमेंट मद्रास सैपर्स की पहली रेजिमेंट थी जिसे यह सम्मान मिला।

इन कार्यो को दिया अंजाम
ऑपरेशन विजय के दौरान रेजिमेंट के इंजीनियर्स ने 102 किमी एनिमल ट्रांसपोर्ट व फूट टैंक बनाया। 26 चीता हेलीपैड और चार एमआइ-17 हेलीपैड बनाए। दुश्मन के चार माइन फील्ड भेदने में सफल रहे और 1002 माइन बेअसर किया। दुश्मन के बरसते गोलों के बीच गंडरमैन और हरकाबहादुर ब्रिज की मरम्मत की। इनके अलावा गन एरिया, गन पिट, जमीन के भीतर ऑपरेशन रूम, सिग्नल सेंटर, कमांड पोस्ट और हवाई ट्रॉली सिस्टम को भी बनाया।

कैप्टन प्रधान ने अकेले निकाले 70 से अधिक माइन

कारगिल में ऑपरेशन के दौरान लगातार दो दिनों से बारूदी सुरंगों को भेद कर सैनिकों के लिए जगह बनाने के बाद प्लाटून काफी थक गई थी। ऐसे में आराम करने की बजाय कैप्टन रूपेश प्रधान ने दुश्मन के बारूदी सुरंगों में बिछे माइन को बेअसर करने का काम अकेले जारी रखा। लाइन ऑफ कंट्रोल पर मंथो ढालो के उत्तर में 125 माइन चिन्हित किए और 70 से अधिक अकेले ही बेअसर कर दिया। सुरक्षा की चिंता छोड़ माइन को निकालने में जुटे कैप्टन प्रधान के चेहरे पर ही एक बारूद फट जाने से वह जख्मी हो गए। इस वीरता के लिए कैप्टन रूपेश प्रधान को वीर चक्र से नवाजा गया। वह आज भी सेना में सेवाएं दे रहे हैं।
रेजिमेंट को मिले यह सम्मान
थिएटर ऑनर : कारगिल
जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड यूनिट एप्रीसिएशन
वीर चक्र : एक
सेना मेडल-मरणोपरांत : एक
सेना मेडल : दो
सीओएएस कमेंडेशन कार्ड : छह
जीओसी-इन-सी नॉर्दर्न कमांड कमेंडेशन कार्ड : 14
इन्होंने दी शहादत
कैप्टन अमरदीप सारा
लेफ्टिनेंट अमित कौल
सैपर जयवेलु
सैपर कार्तिकेयन
सैपर सेख अब्दुल 

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