UP Panchayat Election Result: अति आत्मविश्वास के भंवर में डूबी भाजपा, टिकैत ने बिगाड़ा गणित

यूपी पंचायत चुनावों में पहली बार उतरी भारतीय जनता पार्टी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। साल भर से चुनावी मोड में चल रही भाजपा पर किसान आंदोलन और कोरोना का संक्रमण भारी पड़ा। केंद्र और प्रदेश सरकार के मंत्री सांसद और विधायक पार्टी की नैया पार नहीं लगवा सके।

By Himanshu DwivediEdited By: Publish:Wed, 05 May 2021 09:13 AM (IST) Updated:Wed, 05 May 2021 09:13 AM (IST)
UP Panchayat Election Result: अति आत्मविश्वास के भंवर में डूबी भाजपा, टिकैत ने बिगाड़ा गणित
यूपी पंचायत चुनाव में मेरठ जिला पंचायत सदस्‍य विजेता लिस्‍ट।

संतोष शुक्ल, मेरठ। पंचायत चुनावों में पहली बार उतरी भारतीय जनता पार्टी अति आत्मविश्वास का शिकार हो गई। साल भर से चुनावी मोड में चल रही भाजपा पर किसान आंदोलन और कोरोना का संक्रमण भारी पड़ा। केंद्र और प्रदेश सरकार के मंत्री, सांसद और विधायक पार्टी की नैया पार नहीं लगवा सके। हालात का अंदाजा इसी से लगाएं कि मेरठ के 33 वार्डो में भाजपा महज पांच पर जीत सकी, जबकि रालोद और बसपा को आठ-आठ सीटों पर कामयाबी मिली। दूसरी ओर बिजनौर, गाजियाबाद, शामली, बागपत समेत आसपास के कई जिलों में भी भाजपा को बड़ा झटका लगा है। ज्यादातर विधायक अपने क्षेत्रों में वोट नहीं दिला पाए। क्षेत्रीय अध्यक्ष मोहित बेनीवाल का असमंजस और कार्यकर्ताओं की नाराजगी पार्टी पर भारी पड़ गई। उधर, रालोद, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की सियासी जमीन जरूर बन गई।

दिग्गजों से नहीं संभला किसान फैक्टर

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मेरठ को राजनीतिक राजधानी का दर्जा हासिल है। किसान आंदोलन का केंद्र होने की वजह से यहां पर भाजपा को सर्वाधिक विरोध ङोलने की आशंका थी। यही वजह थी कि पार्टी ने न केवल प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव और प्रदेश संगठन महामंत्री सुनील बंसल को पश्चिमी यूपी के दौरे पर भेजा, बल्कि किसानों के विरोध को संभालने के लिए केंद्रीय मंत्री एवं कैबिनेट मंत्री समेत दिग्गजों की फौज भी उतारी थी। केंद्रीय मंत्री डा. संजीव बालियान किसानों के बीच कई बार गए, लेकिन आंदोलन का असर कम नहीं हुआ। मुजफ्फरनगर में भाजपा पंचायत की 45 में से सिर्फ 13 सीटें जीत सकी जबकि 17 निर्दलीय ने मैदान मार लिया। शामली की तीन विस सीटों में भाजपा के दो विधायक और अपना सांसद है।

कैबिनेट मंत्री सुरेश राणा भी इसी क्षेत्र के हैं, जहां 19 सीटों में महज चार पर भगवा फहरता मिला, जबकि रालोद के खाते में पांच सीटें गईं। बागपत में रालोद ने भाजपा को बैकफुट पर धकेल दिया। यहां 20 वार्डो में रालोद को नौ और भाजपा को चार ही सीट पर जीत नसीब हुई। बिजनौर में भाजपा की बड़ी छीछालेदर हुई, जहां 56 वार्डो में उसे महज सात सीटें मिलीं। दूसरी ओर सपा ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की जबकि 20 सीटों पर निर्दलीय हावी रहे। यहां बसपा को पांच व रालोद को चार सीटों पर कामयाबी मिली। गाजियाबाद, बुलंदशहर, अमरोहा, हापुड़, रामपुर और मुरादाबाद में ज्यादातर स्थानों पर पार्टी पिछड़ी मिली। गत दिनों मुरादाबाद के दौरे पर पहुंचे मुख्यमंत्री योगी ने माना था कि इस मंडल में पार्टी को मजबूत करने के बाद ही पश्चिम में ताकत बढ़ेगी। लेकिन यहां सपा ने भाजपा को मीलों पीछे छोड़ दिया।

टिकैत ने भी बिगाड़ा गणित

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ पिछले साल दिसंबर में आंदोलन तेज हुआ। भारतीय किसान यूनियन के नेता चौधरी राकेश टिकैत व चौधरी नरेश टिकैत ने गत चार माह में 15 से ज्यादा जिलों में दो दर्जन से ज्यादा रैलियां कर भाजपा को घेरा। इसी आधार पर रालोद भी सियासी जमीन बनाने में जुटा रहा। भाजपा ने आंदोलन को निष्प्रभावी बनाने के लिए न सिर्फ दिग्गजों को उतारा, बल्कि बूथ स्तर पर लगातार बैठकें कर पंचायत चुनावों में प्रचंड जीत हासिल कर किसानों को साधने की रणनीति बनाई लेकिन किसान भाजपा के पाले में नहीं आया, वहीं उपेक्षा से भाजपा कार्यकर्ता चिढ़ता गया। विधायकों का संगठन से झगड़ा और कार्यकर्ताओं के बीच अलोकप्रियता भी पार्टी की हार की वजह बनी। 14 संसदीय सीटों के 71 विधानसभा क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले पंचायत वार्डो का टिकट मेरठ से तय किया गया। विधायकों की राय पर टिकट दिए गए। इसके बाद भी पार्टी का यह हाल बताता है कि आने वाले दिनों में पार्टी को नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। 

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